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अहिंसा का पालन करने वाला व्यक्ति न तो किसी का शत्रु होता है न कोई उसका शत्रु होता है। वह मानव का आदर करता है व आदर पाता है। वास्तव में हिंसा यदि शरीर की शक्ति है, तो अहिंसा आत्मा की अदृश्य शक्ति है। आत्मिक शक्ति होने के कारण ही अहिंसा को सब धर्मों में श्रेष्ठ या परम धर्म माना गया है।
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