Hindi, asked by impiyushpandey, 5 months ago

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Answered by Anonymous
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उत्तर:

(1)

भक्ति-साधना और समाज-सुधार में परस्पर

विरोधी कार्य इसलिए नही है क्योंकि यदि हमारी सेवा-भावना निष्काम है तो हम समाज-सेवि होते हुए भी भक्त हो सकते हैं इसके विपरीत अगर हम भक्त होते हुए भी वासना से अछूते नही है, तो हम साधारण संसारी जीव हैं।

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(2)

सकामता से अभिप्राय है अपने स्वार्थ से प्रेरित

होकर कार्य करना। जिस व्यक्ति का उद्देशय स्वार्थ

न होकर सर्वथा परमार्थ अथवा परोपकार होता है

वह व्यक्ति कभी भी सकाम होने का दोषी नही हो सकता।

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(3)

विषमताएं मात्र आर्थिक न होकर समाज में फैली विकराल रूप धारण किये वो हैं जो निरे जन्म के आधार पर एक व्यक्ति को उत्तम और दूसरे को अधम बताती हैं, एक को पुज्य और दूसरे को अस्पृश्य बताती हैं।

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(4)

समाज में फैली विषमताओं का अंत केवल मनुष्यों को यह समझाकर किया जा सकता है की जन्मता सभी मनुष्य समान हैं, और सबको श्रेष्ठ एवं सुखी बनने का समान अधिकार है।समाज में समता लाने के लिए उस रूढ़ि एवं परम्परा का समूल नष्ट करना आवश्यक है जो की यह भाव जागती है की कोई व्यक्ति किसी से केवल कर्म से नही बल्कि जन्म से श्रेष्ठ हो सकता है।

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(5) "विषमता" शब्द का विपरीत- (१) समता

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(6) "परोपकार" शब्द में उपसर्ग है- (३) पर

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