Hindi, asked by vikingthelegend, 22 days ago

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Answered by jagvirdangi2
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जीवन एक तरह से युद्ध के समान होता है इस जीवनरूपी नैया में समय समय पर परेशानियां भी आती रहती हैं। समय समय पर विभिन्न विपत्तियां आती हैं। इन विपत्तियों में हमें अपनों की पहचान हो पाती है। दुख मुसीबत में ही परम मित्र की सत्यता का प्रमाण मिलता है। किसी ने यहां तक कहा है कि सच्चा प्यार तो भी मिल जाता है लेकिन सच्चा मित्र मिलना बहुत मुश्किल है। कौन हमारा अच्छा मित्र है जो सदैव हमारे हित के बारे में ही सोचता है और कौन हमारा बुरा मित्र है, इसकी पहचान होना अति आवश्यक है। अच्छे मित्र के बारे में श्रीरामचरितमानस में जिक्र किया है। आइए आज हम आपको श्रीरामचरितमानस की मित्र की पहचान आधारित कुछ बेहतरीन सूक्तियों के बारे में बताएंगे जिनसे हमें सच्चे मित्र के लक्षण के बारे में पता चलेगा।

1/5 मित्र के दुख से होता है दुख

जे ना मित्र दुःख होहिं । बिलोकत पातक भारी ॥

निज दुःख गिरी संक राज करी जाना। मित्रक दुःख राज मेरु समाना ॥

रामचरितमानस की यह चौपाई कहती है कि जो मनुष्य अपने मित्र के कष्ट को अपना कष्ट या दुख नहीं समझता है, ऐसे लोगों को देखने मात्र से पाप लगता है। कहने का अर्थ है कि ऐसे लोगों से सदैव दूरी बनाए रखनी चाहिए। इसके साथ ही जो व्यक्ति अपने बड़े से बड़े दुख को धूल की तरह मानता है वहीं मित्र के धूल के जैसे कष्ट को किसी पहाड़ की तरह मानता है, असल में वही सच्चा मित्र है।

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2/5 गलत काम करने से रोके

जिन्ह के असी मति सहज ना आई। ते सठ कत हठी करत मिताई ॥

कुपथ निवारी सुपंथ चलावा । गुण प्रगटे अव्गुनन्ही दुरावा ॥

रामचरितमानस के अनुसार, जो लोग स्वाभाव से कम बुद्धि के होते हैं, मूर्ख होते हैं ऐसे लोगों को आगे बढ़कर कभी किसी के साथ

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