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वृक्षों से संबंधित 5 श्लोक :-
1. छायां ददाति शशिचन्दनशीतलां यः सौगन्धवन्ति सुमनांसि मनोहराणि । स्वादूनि सुन्दरफलानि च पादपं तं छिन्दन्ति जाङ्गलजना अकृतज्ञता हा ॥
भावार्थ :
जो वृक्ष चंद्रकिरणों तथा चंदन के समान शीतल छाया प्रदान करता है, सुन्दर एवं मन को मोहित करने वाले पुष्पों से वातावरण सुगंधमय बना देता है, आकर्षक तथा स्वादिष्ट फलों को मानवजाति पर न्यौछावर करता है, उस वृक्ष को जंगली असभ्य लोग काट डालते हैं । अहो मनुष्य की यह कैसी अकृतज्ञत है ।
2. पुष्पिताः फलवन्तश्च तर्पयन्तीह मानवान् ।
2. पुष्पिताः फलवन्तश्च तर्पयन्तीह मानवान् ।वृक्षदं पुत्रवत् वृक्षास्तारयन्ति परत्र च ॥
भावार्थ :
फलों और फूलों वाले वृक्ष मनुष्यों को तृप्त करते हैं । वृक्ष देने वाले अर्थात् समाजहित में वृक्षरोपण करने वाले व्यक्ति का परलोक में तारण भी वृक्ष करते हैं ।
3. तडागकृत् वृक्षरोपी इष्टयज्ञश्च यो द्विजः ।
तडागकृत् वृक्षरोपी इष्टयज्ञश्च यो द्विजः ।एते स्वर्गे महीयन्ते ये चान्ये सत्यवादिनः ॥
भावार्थ :
तालाब बनवाने, वृक्षरोपण करने, अैर यज्ञ का अनुष्ठान करने वाले द्विज को स्वर्ग में महत्ता दी जाती है; इसके अतिरिक्त सत्य बोलने वालों को भी महत्व मिलता है ।
4. तस्मात्तडागं कुर्वीत आरामांश्चैव रोपयेत् ।
तस्मात्तडागं कुर्वीत आरामांश्चैव रोपयेत् ।यजेच्च विविधैर्यज्ञैः सत्यं च सततं वदेत् ॥
भावार्थ :
उपर्युक्त बातों को दृष्टि में रखते हुए मनुष्य को चाहिए कि वह तालाबों का निर्माण करे/करवाए; बाग-बगीचे बनवाए; विविध प्रकार के यज्ञों का अनुष्ठान करे; और सत्य बोलने का संकल्प ले।
5. तस्मात् तडागे सद्वृक्षा रोप्याः श्रेयोऽर्थिना सदा ।
तस्मात् तडागे सद्वृक्षा रोप्याः श्रेयोऽर्थिना सदा ।पुत्रवत् परिपाल्याश्च पुत्रास्ते धर्मतः स्मृताः ॥
भावार्थ :
इसलिए श्रेयस् यानी कल्याण की इच्छा रखने वाले मनुष्य को चाहिए कि वह तालाब के पास अच्छे-अच्छे पेड़ लगाए और उनका पुत्र की भांति पालन करे । वास्तव में धर्मानुसार वृक्षों को पुत्र ही माना गया है ।