Hindi, asked by mailshekharshirage, 9 months ago

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Answered by ShakuntalamGhosh
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चांद और मंगलग्रह पर कदमताल कर रहे वैज्ञानिक युग में भी अंधविश्वास का कायम रहना वाकई चिंता का विषय है। इस संवेदनशील मुद्दे पर जनजागरूकता के लिए ना तो सरकार चिंतित है और ना ही स्वयंसेवी संस्थाएं सक्रिय दिखती हैं। खासकर गांव-गिरांव में यह सामाजिक बुराई ज्यादा दिखाई देती है। शास्त्रों में नारी की पूजा की सलाह दी गई है, पर इसके उलट पुरुष सार्वजनिक रूप से उसे प्रताड़ना देने से नहीं चूक रहे। ग्रामीण परिवेश में आए बदलाव पर गौर करें तो शहरों से ज्यादा मोबाइल फोन गांव के युवक-युवतियों के हाथ में नजर आते हैं, बिजली नहीं है, पर टेलीविजन घर-घर बैट्री और जनरेटर से चल रहे हैं। जगह-जगह साइबर कैफे तक खुले हैं। खेती-किसानी के क्षेत्र मेंबैलों की जोड़ी की जगह ट्रैक्टर और आधुनिक मशीनों ने काफी पहले ही ले ली थी। शिक्षा के क्षेत्र में लैपटॉप और कंप्यूटर का प्रयोग भी आम हो चला है, लेकिन इन सबके बावजूद अंधविश्वास आज भी लोगों के दिमाग में जगह बनाए हुए है। बच्चों की तबीयत खराब होने पर पहले डॉक्टर के पास जाने के बजाए मिर्च झोंककर नजर उतारना, गंभीर बीमारी पर ओझा को बुलाकर झाड़-फूंक कराना और यहां तक कि मौत हो जाने के बाद शव को घर में रखकर पूजा-अनुष्ठान करा जीवन के लौटने की आस करना आज भी आदत बनी हुई है। सूबे के कई जिले तो ऐसे हैं जहां देवी-देवताओं के मंदिरों में लगने वाले सालाना मेले में महिलाएं झूमती हैं, लोग यह विश्वास करते हैं कि इनपर देवी-देवता की विशेष कृपा आती है। यहां तक कि कानून-व्यवस्था के लिए जिम्मेदार लोग भी अंधविश्वास के शिकार हो जाते हैं। डायन के शक में महिला को प्रताड़ना की खबरें तो अक्सर सुर्खियों में रहती हैं।

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Shakuntalam

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