Hindi, asked by Anonymous, 11 months ago

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Answered by chaudharyji85
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आज का समय टेक्नोलॉजिकल रेवोल्यूशन का है। रोज़ ही नए-नए गैजेट्स आ रहे हैं।


(तस्वीरों का इस्तेमाल प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है।)   लाइफस्टाइल डेस्क: आज का समय टेक्नोलॉजिकल रेवोल्यूशन का है। रोज़ ही नए-नए गैजेट्स आ रहे हैं। इससे हमारी लाइफ़स्टाइल काफी प्रभावित हुई है। खासकर कम्युनिकेशन के क्षेत्र में तकनीकी बदलाव का असर काफी देखने को मिल रहा है। अब ज़माना पूरी तरह से स्मार्टफोन का आ गया है। खास बात ये है कि स्कूल जाने वाले बच्चे भी स्मार्टफ़ोन से लैस नज़र आते हैं, जबकि देखा जाए तो उन्हें इसकी ज़रूरत नहीं। वैसे तो कई स्कूलों में बच्चों को मोबाइलफ़ोन ले जाने पर पाबंदी है, बावजूद इसके देखने में आता है कि कम उम्र बच्चे और किशोर स्मार्ट फ़ोन का यूज़ करते हैं। इसके कई बुरे प्रभाव हैं। आज हम आपको बच्चों पर पड़ने वाले गैजेट के कुछ बुरे प्रभावों के बारे में बताने जा रहे हैं।   1-समय की बर्बादी    स्मार्टफ़ोन यूज़ करने वाले बच्चों और किशोरों का काफी समय इसकी वजह से बर्बाद होता है। जो समय उन्हें पढ़ने-लिखने में देना चाहिए, वह स्मार्टफ़ोन पर फेसबुकऔर वॉट्सऐप में बीत जाता है। किशोरों की मानसिक क्षमता ऐसी नहीं होती कि वो कोई खास विचार फेसबुक पर डाल सकें या किसी अच्छे ग्रुप से जुड़ कर ढंग की बातें सीख सकें। इस पर ज़्यादातर समय वो दोस्तों के साथ चैटिंग में व्यतीत कर देते हैं। अनजान लोगों से फ्रेंडशिप करना और उनसे चैट करना या फ़िर दोस्तों के साथ ही चैट करना उनकी आदत बन जाती है। इससे उनका बहुत नुकसान होता है। आज लाइफ़ इतनी फास्ट और बिजी हो गई है कि पेरेंट्स के लिए ये संभव नहीं कि हर समय बच्चों पर नज़र रख सकें। ऐसे में, उनका बहक जाना आसान होता है।   आज गैजेट के कारण बच्चों किस तरह से प्रभावित हो रहे हैं, जानने के लिए क्लिक कीजिए आगे की स्लाइड्स पर...
अनसोशल होने लगते हैं बच्चे    ये देखा गया है कि जो बच्चे और किशोर गैजेट्स क ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं, वे परिवार और समाज से कटने लगते हैं। स्कूल से आने के बाद घंटों वे अपना समय मोबाइल देखते हुए ही बिताते हैं। कई किशोर तो इसके इस हद तक एडिक्ट हो जाते हैं कि वो खाते समय भी मोबाइल पर नज़रें गड़ाए रखते हैं। कई तो मोबाइल देखते-मैसेज पढ़ते, मैसेज का रिप्लाय करते, वॉट्सऐप पर जोक्स पढ़ते और उन्हें शेयर करते ही अपना सारा समय बिता देते हैं। इसका असर उनकी पढ़ाई पर पड़ता है। उनका परफॉर्मेंस लगातार खराब होता जाता है।



3-गलत लोगों के संपर्क में आने का ख़तरा    गैजेट यूज़ करने वाले बच्चों और किशोरों के ग़लत संपर्क में आने का ख़तरा ज़्यादा होता है। ठीक है कि बच्चा घर से बाहर नहीं निकलता और पेरेंट्स समझते हैं कि जब ये बाहर जाता ही नहीं तो ग़लत संगत में कैसे पड़ेगा, लेकिन ऐसा नहीं है। फेसबुक और वॉट्सऐप पर आसानी से वह गलत लोगों के संपर्क में आ सकता है। फेसबुक पर फेक आईडी बना कर कई एंटी-सोशल एलिमेंट सक्रिय रहते हैं, जिनके कॉन्टैक्ट में आकर बच्चा बहक सकता है, ग़लत रास्ते पर बढ़ सकता है और हो सकता है कि इस बारे में उसके पेरेंट्स को कुछ भी पता न हो।



4-स्किल डेवलप नहीं हो पाना   बच्चे और किशोर जब गैजेट्स का ज़्यादा यूज़ करने लगते हैं, तो उनकी स्किल डेवलप होने में दिक्कत होती है। सही ढंग से पढ़ने-लिखने के लिए काफी समय देना पड़ता है। लेकिन जब ज़्यादा समय गैजेट्स ही ले लेते हैं, तो समय नहीं बच पाता और इससे लिखने-पढ़ने-समझने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है। कई बार बच्चे रियल वर्ल्ड से अलग किसी अनजानी दुनिया के वासी लगते हैं। वो चीज़ों को ग़लत तरीके से समझने लगते हैं और कई बार एग्जाम में भी ग़लत उत्तर लिख देते हैं।



5-हेल्थ पर बुरा असर    गैजेट्स का यूज़ करने वाले बच्चों के हेल्थ पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। इसकी वजह ये है कि वो फिजिकल एक्टिविटीज़, जैसे खेल-कूद और एक्सरसाइज़ से दूर होने लगते हैं। घर से बाहर निकलना उनका कम होता जाता है। उनका दायरा बहुत सीमित हो जाता है। खान-पान की आदतें भी सही नहीं रहतीं। गैजेट्स का एडिक्ट हो जाने पर वे नींद भी पर्याप्त नहीं ले पाते। जाहिर है, धीरे-धीरे उन्हें हेल्थ से जुड़ी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।



6-गलत आदतें    गैजेट्स के असर से बच्चों में कई तरह की ग़लत आदतें भी विकसित होने लगती हैं। कई बच्चे ऑनलाइन अश्लील सामग्री के संपर्क में आ जाते हैं। अश्लील मैसेज का आदान-प्रदान करना, अश्लील फोटो शेयर करना और ऑनलाइन अश्लील चैट करना ऐसी आदतें हैं, जो गैजेट्स की वजह से बच्चों-किशोरों में जड़ जमाने लगती हैं।



6-धोखा देना    बच्चे ये भलीभंति समझते हैं कि वो क्या ग़लत कर रहे हैं। इसका पता पेरेंट्स-टीचर को न चले, इसलिए वे उन्हें धोखा देने की कोशिश करते हैं। चैट के लिए वे कई तरह की सिंबॉलिक लैग्वेज का इस्तेमाल करते हैं, जो बड़े लोग कतई नहीं समझ सकते। ये कोड लैंग्वेज उनके ग्रुप में ही समझी जाती है। अगर पेरेंट्स ये देख भी लेते हैं तो वे समझा देते हैं कि ये एक तरह का गेम है। ये मनोवैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। अभी हाल में ही मनोवैज्ञानिकों ने इस समस्या पर ध्यान देना शुरू किया है और इसे गंभीर ख़तरा बताया है, क्योंकि यह बच्चों की मानसिकता को ही बदल देता है।



7-ये हैं प्रचलित कोडवर्ड    XO – Hugs, Kiss, Love, LIMRL – लेट्स मीट इन रियल लाइफ़, ADR – ऐड्रेस, LDR- long distance relationship, LTNS – long time not see. ये तो कुछ उदाहरण हैं। बच्चे अपने ग्रुप में इस तरह के कई कोडवर्ड्स का इस्तेमाल करते हैं। आगे चल कर यह प्रवृत्ति उनकी पर्सनैलिटी पर बुरा असर ही डालती है।         






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