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आल्हा ऊदल के गाने बुंदेलखंडी में गाए जाते हैं चंदेल राजाओं के राजकवि जगनिक ने अपने महाकाव्य में आल्हा उदल की वीरता का बखान किया था
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भोजपुरी में करीब 30-40 वर्षों से विदेशिया का प्रचार हुआ है गाने वालों के अनेक समूह इन्हें गाते हुए देहात में फिरते हैं उधर के जिलों में विशेषकर बिहार में विदेशिया से बढ़कर दूसरे गाने लोकप्रिय नहीं है इन गीतों से अधिकतर रसिका प्रिया और प्रिया और प्रियाओ की बात रहती है परदेसी प्रेमी की और इनसे करुणा और बिरहा का रस बरसता है
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