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chapter name: maha yagya ka puraskar
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7) सामने वृक्षों का कुंज और कुआँ देखा तो सेठ जी ने थोड़ा देर रुककर विश्राम और भोजन करने का निश्चय किया। पोटली से लोटा-डोर निकालकर पानी खींचा और हाथ-पाँव धोए। उसके बाद एक लोटा पानी ले पेड़ के नीचे आ बैठे और खाने के लिए रोटी निकालकर तोड़ने ही वाले थे कि क्या देखते हैं एक कुत्ता हाथ भर की दूरी पर पड़ा छटपटा रहा था। भूख के कारण वह इतना दुर्बल हो गया कि अपनी गर्दन भी नहीं उठा पा रहा था। यह देख सेठ का दिल भर आया और उन्होंने अपना सारा भोजन धीरे-धीरे कुत्ते को खिला दिया।
8) धन्ना सेठ ही पत्नी के अनुसार स्वयं भूखे रहकर चार रोटियाँ किसी भूखे कुत्ते को खिलाना ही महायज्ञ है।
9)महायज्ञ का पुरस्कार कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सच्चा यज्ञ वह है जो निःस्वार्थ भाव से प्राणीमात्र की भलाई के लिए किया गया कार्य हो। हमें सभी प्राणियों पर दया करनी चाहिए। मुसीबत के समय दूसरों की सहायता करना ही हमारी सच्ची ईश्वर सेवा है और यही हमारा परम कर्तव्य भी है।
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