Please anyone explain me this poem please but don't spam......Chapter Name: सूर के पद
Answers
1)
मैया, कबहिं बढ़ैगी चोटी?
किती बार मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी।
तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं, ह्नै है लाँबी-मोटी।
काढ़त-गुहत न्हवावत जैहै, नागिन सी भुइँ लोटी।
काचौ दूध पियावत पचि-पचि, देति न माखन-रोटी।
सूर चिरजीवौ दोउ भैया, हरि-हलधर की जोटी।
कबहिं – कब
किती – कितनी
पियत – पिलाना
अजहूँ – आज भी
बल – बलराम
बेनी – चोटी
लाँबी-मोटी – लंबी-मोटी
काढ़त – बाल बनाना
गुहत – गूँथना
न्हवावत – नहलाना
नागिन – नागिन
भुइँ – भूमि
लोटी – लोटने लगी
काचौ – कच्चा
पियावति – पिलाती
पचि-पचि – बार-बार
माखन – मखक्न
चिरजीवी – चिरंजीवी
दोउ – दोनों
हरि-हलधर – कृष्ण-बलराम
जोटी – जोड़ी
प्रसंग – प्रस्तुत पद हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक “वसंत भाग-3” में सूरदास द्वारा रचित ‘सूरदास के पद’ से अवतरित है। इसमें सूरदास जी ने श्री कृष्ण की बाल लीला का वर्णन किया है।
व्याख्या – सूरदास जी बताते हैं कि श्री कृष्ण बालपन में यशोदा से पूछते हैं कि उनकी चोटी कब बढ़ेगी, यह आज तक क्यों नहीं बढ़ी। वह माँ यशोदा से शिकायत करते हैं कि तुम मुझसे कहती थी की जैसे बलराम भैया की लंबी-मोटी चोटी है, मेरी भी वैसी हो जायेगी। तू मेरे बाल बनाती है, इन्हें धोती है पर यह नागिन की तरह भूमि पर क्यों नहीं लोटती। तू मुझे सिर्फ बार-बार दूध पिलाती है, मक्खन व रोटी खाने को नहीं देती। इसलिए ये बड़ी नहीं होती। सूरदास जी कहते हैं की ऐसी सुन्दर लीला दिखाने वाले दोनों भाई कृष्ण और बलराम की जोड़ी बनी रहे।
(2)
तेरैं लाल मेरौ माखन खायौ।
दुपहर दिवस जानि घर सूनो ढूँढ़ि-ढँढ़ोरि आपही आयौ।
खोलि किवारि, पैठि मंदिर मैं, दूध-दही सब सखनि खवायौ।
उफखल चढ़ि, सींवेफ कौ लीन्हौ, अनभावत भुइँ मैं ढरकायौ।
दिन प्रति हानि होति गोरस की, यह ढोटा कौनैं ढँग लायौ।
सूर स्याम कौं हटकि न राखै तैं ही पूत अनोखौ जायौ।
लाल – बेटा
माखन – मक्खन
दुपहर – दोपहर
ढूँढ़ि – खोजकर
आपही – अपने आप
किवारि – दरवाजा
पैठि – घुसकर
सखनि – दोस्त/मित्र
उखल – ओखली
चढि – चढ़ना
सींके – छिका
अनभावत – जो अच्छा न लगे
भुइँ – भूमि
ढरकायौ – गिरना
हानि – नुक्सान
होति गोरस – गाय के दूघ से बने पदार्थ
ढोटा – लड़का
हटकि – हटाकर
पूत – पुत्र
अनोखौ – अनोखा
जायौ – जन्म देना