Please can you explain me thechapter rid ki haddi
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HELLO........
प्रस्तुत एकांकी ‘रीढ़ की हड्डी’ श्री जगदीश चन्द्र माथुर द्वारा रचित है। यह एकांकी लड़की के विवाह की एक सामाजिक समस्या पर आधरित है। इस एकांकी में वुफल छह पात्रा हैं-रामस्वरूप, उनका नौकर रतन, रामस्वरूप की पत्नी प्रेमा, उनकी बेटी उमा, शंकर वेफ पिता गोपाल प्रसाद तथा शंकर। पूरा एकांकी एक मामूली से सजे कमरे में खेला गया है।
उमा को देखने के लिए गोपाल प्रसाद और उनका लड़का शंकर आने वाले हैं। रामस्वरूप और उनका नौकर कमरे को सजाने में लगे हुए हैं। तख़्त पर दरी और चादर बिछाकर, उस पर हारमोनियम रखा गया है। नाश्ता आदि भी तैयार किया गया है। इतने में ही वहाँ प्रेमा आती है और कहती है कि तुम्हारी बेटी तो मुँह फुलाए पड़ी हुई है, तभी रामस्वरूप् कहते हैं कि उसकी माँ किस मर्ज की दवा है। जैसे-तैसे वे लोग मान गए हैं। अब तुम्हारी बेवकूफी से सारी मेहनत बेकार चली जाए तो मुझे दोष मत देना। तब प्रेमा कहती है, तुमने ही उसको पढ़ा-लिखाकर सिर चढ़ा लिया है। मैंने तो पौडर-वौडर उसके सामने लाकर रखा है, पर वह इन सब चीशों से नप़ फरत करती है। रामस्वरूप कहते हैं, न जाने इसकदिमाग कैसा है!
उमा बी॰ए॰ तक पढ़ी हुई है, परंतु रामस्वरूप लड़के वालों को दसवीं तक पढ़ी बताते हैं क्योंकि लड़के वालों को कम पढ़ी-लिखी लड़की चाहिए। नाश्ते में टोस्ट रखने वेफ लिए मक्खन नहीं है। रामस्वरूप् ने नौकर रतन को मक्खन लाने के लिए भेजा है। बाहर जाते हुए रतन देखता है कि कोई घर की ओर बढ़ रहा है। वह मालिक को बताता ही है कि थोड़ी देर में दरवाजा खटकता है और दरवाजा खुलने पर गोपाल प्रसाद और उनका लड़का शंकर आते हैं। रामस्वरूप उनका स्वागत करते हैं। दोनों बैठकर अपने ज़माने की तुलना नए ज़माने से करते हैं। अपनी आवाज़ और तरीके को बदलते हुए गोपाल प्रसाद कहते हैं, ‘‘अच्छा तो साहब ‘बिजनेस’ की बातचीत की जाए।’’ वे शादी-विवाह को एक ‘बिजनेस’ मानते हैं। रामस्वरूप उमा को बुलाने के लिए जाते हैं तभी पीछे से गोपाल प्रसाद अपने बेटे शंकर से कहते हैं कि आदमी तो भला है। मकान-वकान से हैसियत बुरी नहीं लगती है, पर यह तो पता चले कि लड़की कैसी है? वे अपने बेटे को झुककर बैठने पर डाँटते हैं। रामस्वरूप दोनों को नाश्ता कराते हैं और इध्र-उध्र की बातें भी करते हैं। गोपाल प्रसाद लड़की की सुंदरता के बारे में पूछते हैं तो रामस्वरूप् कहते हैं, वह तो आप खुद देख लीजिएगा। फिर जन्मपत्रियों के मिलाने की बात चलती है तो रामस्वरूप कहते हैं कि मैंने उन्हें भगवान के चरणों में रख दिया है, आप उन्हें मिला हुआ ही समझ लीजिए। बातचीत के साथ ही गोपाल प्रसाद लड़की की पढ़ाई-लिखाई के बारे में भी पूछना चाहते हैं। वे कहते हैं कि हमें तो मैट्रिक पास बहू चाहिए। मुझ उससे नौकरी तो करानी नहीं है।
उमा को बुलाने पर वह सिर झुकाए तथा हाथ में पान की तश्तरी लिए आती है। उमा के लगे चश्मे को देखकर गोपाल प्रसाद और शंकर दोनों एक साथ बोलते हैं-चश्मा! रामस्वरूप चश्मा लगाने की वजह को स्पष्ट कर देते हैं। दोनों संतुष्ट हो जाते हैं। गोपाल प्रसाद उमा की चाल, चेहरे की छवि देखते हुए गाने-बजाने के बारे में भी पूछते हैं। सितार उठाकर गीत सुनाती हुई उमा की नज़र उस लड़के पर पड़ती है तो वह उसे पहचान कर गाना बदं कर देती है। फिर उमा से उसकी पेंटिंग-सिलाई के बारे में पूछा जाता है। इसका उत्तर रामस्वरूप दे देते हैं। तब गोपाल प्रसाद उमा से कुछ इनाम-विनाम जीतने के संबंध् में पूछते हुए उमा को ही उत्तर देने के लिए कहते हैं। रामस्वरूप भी उमा से ही जवाब देने के लिए कहते हैं।
और मज़बूत आवाज मेंद्ध मैं क्या जवाब दूँ, बाबूजी। जब कुर्सी-मेज़ बेची जाती है, तब दुकानदार मेज़-कुर्सी से कुछ नहीं पूछता, केवल खरीददार को दिखा देता है। पसंद आ जाए तो अच्छा, वरना........।
रामस्वरूप क्रोधित होकर उसे डाँटते हैं।
उमा - अब मुझे कहने दीजिए, बाबूजी। ...... ये जो महाशय मुझे खरीदने आए हैं, ज़रा इनसे पूछिए तो कि क्या लड़कियों के दिल नहीं होता? क्या उनके चोट नहीं लगती है? लड़कियाँ मज़बूर भेड़-बकरियाँ हैं क्या, जिन्हें कसाई अच्छी तरह देख-भालकर ...... ?
गोपाल प्रसाद (ताव में आकर) - रामस्वरूप बाबू, क्या आपने मुझे मेरी इज्ज़त उतारने के लिए यहाँ बुलाया था?
उमा - आप इतनी देर से मेरी नाप-तोल कर रहे हैं, इसमें हमारी बेइज्जती नहीं हुई? और ज़रा अपने साहबज़दे से पूछिए कि अभी पिछली फरवरी में ये लड़कियों के होस्टल के आस-पास क्यों चक्कर काट रहे थे? और ये वहाँ से केसे भगाए गए थे?
गोपाल प्रसाद - तो क्या तुम काॅलेज़ में पढ़ी हो?
उमा -हाँ, पढ़ी हूँ। बी॰ए॰ पास किया है। मैंने न तो कोई चोरी की और न ही आपके पुत्र की तरह इधर-उधर ताक-झाँक कर कायरता का प्रदर्शन किया।
गोपाल प्रसाद खड़े हो जाते हैं और रामस्वरूप को बुरा-भला कहते हुए, अपने बेटे के साथ दरवाजे की ओर बढ़ते हैं।
उमा (पीछे से कहती है) - जाइए, जरूर जाइए। घर जाकर जरा यह पता लगाइए कि आपके लाडले बेटे की रीढ़ की हड्डी है भी या नहीं।
गोपाल प्रसाद और उनका लड़का दरवाज़े से बाहर चले जाते हैं और
प्रेमा आती है। उमा रो रही है। यह सुनकर रामस्वरूप खड़े हो जाते हैं ।
रतन आता है - बाबू जी, मक्खन! सभी उसकी तरफ देखने लगते हैं
और एकांकी समाप्त हो जाता है।
HOPE IT WILL HELP U. . . . . . . . . .
PLZ MARK MY ANSWER AS BRAINLIEST! ! ! ! ! !
प्रस्तुत एकांकी ‘रीढ़ की हड्डी’ श्री जगदीश चन्द्र माथुर द्वारा रचित है। यह एकांकी लड़की के विवाह की एक सामाजिक समस्या पर आधरित है। इस एकांकी में वुफल छह पात्रा हैं-रामस्वरूप, उनका नौकर रतन, रामस्वरूप की पत्नी प्रेमा, उनकी बेटी उमा, शंकर वेफ पिता गोपाल प्रसाद तथा शंकर। पूरा एकांकी एक मामूली से सजे कमरे में खेला गया है।
उमा को देखने के लिए गोपाल प्रसाद और उनका लड़का शंकर आने वाले हैं। रामस्वरूप और उनका नौकर कमरे को सजाने में लगे हुए हैं। तख़्त पर दरी और चादर बिछाकर, उस पर हारमोनियम रखा गया है। नाश्ता आदि भी तैयार किया गया है। इतने में ही वहाँ प्रेमा आती है और कहती है कि तुम्हारी बेटी तो मुँह फुलाए पड़ी हुई है, तभी रामस्वरूप् कहते हैं कि उसकी माँ किस मर्ज की दवा है। जैसे-तैसे वे लोग मान गए हैं। अब तुम्हारी बेवकूफी से सारी मेहनत बेकार चली जाए तो मुझे दोष मत देना। तब प्रेमा कहती है, तुमने ही उसको पढ़ा-लिखाकर सिर चढ़ा लिया है। मैंने तो पौडर-वौडर उसके सामने लाकर रखा है, पर वह इन सब चीशों से नप़ फरत करती है। रामस्वरूप कहते हैं, न जाने इसकदिमाग कैसा है!
उमा बी॰ए॰ तक पढ़ी हुई है, परंतु रामस्वरूप लड़के वालों को दसवीं तक पढ़ी बताते हैं क्योंकि लड़के वालों को कम पढ़ी-लिखी लड़की चाहिए। नाश्ते में टोस्ट रखने वेफ लिए मक्खन नहीं है। रामस्वरूप् ने नौकर रतन को मक्खन लाने के लिए भेजा है। बाहर जाते हुए रतन देखता है कि कोई घर की ओर बढ़ रहा है। वह मालिक को बताता ही है कि थोड़ी देर में दरवाजा खटकता है और दरवाजा खुलने पर गोपाल प्रसाद और उनका लड़का शंकर आते हैं। रामस्वरूप उनका स्वागत करते हैं। दोनों बैठकर अपने ज़माने की तुलना नए ज़माने से करते हैं। अपनी आवाज़ और तरीके को बदलते हुए गोपाल प्रसाद कहते हैं, ‘‘अच्छा तो साहब ‘बिजनेस’ की बातचीत की जाए।’’ वे शादी-विवाह को एक ‘बिजनेस’ मानते हैं। रामस्वरूप उमा को बुलाने के लिए जाते हैं तभी पीछे से गोपाल प्रसाद अपने बेटे शंकर से कहते हैं कि आदमी तो भला है। मकान-वकान से हैसियत बुरी नहीं लगती है, पर यह तो पता चले कि लड़की कैसी है? वे अपने बेटे को झुककर बैठने पर डाँटते हैं। रामस्वरूप दोनों को नाश्ता कराते हैं और इध्र-उध्र की बातें भी करते हैं। गोपाल प्रसाद लड़की की सुंदरता के बारे में पूछते हैं तो रामस्वरूप् कहते हैं, वह तो आप खुद देख लीजिएगा। फिर जन्मपत्रियों के मिलाने की बात चलती है तो रामस्वरूप कहते हैं कि मैंने उन्हें भगवान के चरणों में रख दिया है, आप उन्हें मिला हुआ ही समझ लीजिए। बातचीत के साथ ही गोपाल प्रसाद लड़की की पढ़ाई-लिखाई के बारे में भी पूछना चाहते हैं। वे कहते हैं कि हमें तो मैट्रिक पास बहू चाहिए। मुझ उससे नौकरी तो करानी नहीं है।
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उमा - आप इतनी देर से मेरी नाप-तोल कर रहे हैं, इसमें हमारी बेइज्जती नहीं हुई? और ज़रा अपने साहबज़दे से पूछिए कि अभी पिछली फरवरी में ये लड़कियों के होस्टल के आस-पास क्यों चक्कर काट रहे थे? और ये वहाँ से केसे भगाए गए थे?
गोपाल प्रसाद - तो क्या तुम काॅलेज़ में पढ़ी हो?
उमा -हाँ, पढ़ी हूँ। बी॰ए॰ पास किया है। मैंने न तो कोई चोरी की और न ही आपके पुत्र की तरह इधर-उधर ताक-झाँक कर कायरता का प्रदर्शन किया।
गोपाल प्रसाद खड़े हो जाते हैं और रामस्वरूप को बुरा-भला कहते हुए, अपने बेटे के साथ दरवाजे की ओर बढ़ते हैं।
उमा (पीछे से कहती है) - जाइए, जरूर जाइए। घर जाकर जरा यह पता लगाइए कि आपके लाडले बेटे की रीढ़ की हड्डी है भी या नहीं।
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