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Answer:
We are not sitting ideal to answer your all these questions.
No one will help you
help yourself
Explanation:
Brainly is only to guide.
Not for cheating
Practice them
These questions you have got for your practice not fo us.
1.1. मनुष्य लगातार प्रकृति का अंधाधुंध दोहन कर रहा है। संसाधनों में होती तेज कमी का जिम्मेदार मनुष्य ही है। प्रकृति के संसाधन सीमित है, हमे इनका उपयोग संतुलित करना चाहिये। आधुनिक विकास के चलते प्रकृति को नुकसान हुआ है। पेड़ पौधों की अंधाधुंध कटाई और घटते हुए जंगल प्रकृति को नष्ठ कर रहे है। हरे भरे पेड़ो की जगह बड़ी इमारते और फैक्टरियां बन रही है। जीव जंतुओं का आवास वन है लेकिन हम इनके आवासो को उजाड़ रहे है। प्रकृति की सुंदरता पेड़ पौधों और वन्य जीवों से है लेकिन इनका लगातार हास् हो रहा है।
2. फेक्ट्रियो से निकला धुंआ भी प्रकृति को नुकसान करता है। यह एक जहर के समान है जिससे वायु प्रदूषण होता है। वाहनों से भी ईंधन के जलने से धुआं निकलता है। आये दिन होने वाला ट्रैफिक जाम यह बताने के लिये काफी है कि वायु प्रदूषण कितना हो रहा है।
3. खनीज प्रदार्थो का अत्यधिक दोहन हो रहा है। कोयला, लोहा, जिंक, सोना जैसे खनिजो का अत्यधिक खनन होता है। खनिजो के खनन से वायु में जहरीले प्रदार्थ मिल जाते है। यह प्रकृति को भारी नुकसान पहुँचा रहे है।
4. धरती पर लहराते हुए खेत किसी मुग्ध आकर्षण से कम नही होते है। किसान अपने अथाह परिश्रम से खेत जोतकर बीजारोपण करता है। जब इस परिश्रम का फल लहराती हुई फसल के रूप में दिखता है, तब इसका सौन्दर्य मंत्रमुग्ध कर देता है। वर्तमान में कृषि भूमि लगातार कम हो रही है। इसका कारण कृषि योग्य भूमि पर फैक्ट्रियों और इमारतों का बनना है।
3.नारी का सम्मान सदा होना चाहिए। संस्कृत में एक श्लोक है- 'यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता: (भावार्थ- जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं।) किंतु आज हम देखते हैं कि नारी का हर जगह अपमान होता चला जा रहा है। उसे 'भोग की वस्तु' समझकर आदमी 'अपने तरीके' से 'इस्तेमाल' कर रहा है।
नारी का सबसे पवित्र रूप मां के रूप में देखने में आता है। माता यानी जननी। मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है, क्योंकि ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। मां देवकी (कृष्ण) तथा मां पार्वती (गणपति/ कार्तिकेय) के संदर्भ में हम देख सकते हैं इसे।
किंतु बदलते समय के हिसाब से संतानों ने अपनी मां को महत्व देना कम कर दिया है। यह चिंताजनक पहलू है। सब धन-लिप्सा व अपने स्वार्थ में डूबते जा रहे हैं। (सिर्फ) मेरी बीवी व मेरे बच्चे यही आजकल परिवार की परिभाषा रह गई है। फिर बुजुर्ग माता-पिता की सेवा कौन करे? यह सवाल आजकल यक्षप्रश्न की तरह चहुंओर पांव पसारता जा रहा है। नई पीढ़ी को आत्मावलोकन करना चाहिए।