Please explain this line from बालगोबिन भगत (preferably in English)
"गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया, चिहुँक उठे ना!"
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भादों की वह अँधेरी अधरतिया। अभी, थोड़ी ही देर पहले मूसलाधार वर्षा ख़त्म हुई। बादलों की गरज, बिजली की तड़प में आपने कुछ नहीं सुना हो, किंतु अब झिल्ली की झंकार या दादुरों की टर्र - टर्र बालगोबिन भगत के संगीत को अपने कोलाहल में डुबो नहीं सकतीं। उनकी खँजड़ी डिमक - डिमक बज रही है और वे गा रहे हैं -`गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया, चिहुँक उठे ना !` हाँ, पिया तो गोद में ही है, किंतु वह समझती है, वह अकेली है, चमक उठती है, चिहुँक उठती है। उसी भरे-बदलोंवाले भादों की आधी रात में उनका गाना अँधेरे में अकस्मात कौंध उठनेवाली बिजली की तरह किसे न चौंका देता ? अरे, अब सारा संसार निस्तब्धता में सोया है, बालगोबिन भगत का संगीत जाग रहा है, जगा रहा है। तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जारा।
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PLEASE MARK AS BRAINLIEST
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