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Hey mate your answer is here
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे;
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे;उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे;उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर;
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे;उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर;करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे;उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर;करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर;
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे;उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर;करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर;वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।।
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे;उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर;करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर;वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।।तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ।
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे;उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर;करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर;वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।।तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ।मन और देह तुझ पर बलिदान मैं जाऊँ ।।
हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे;उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर;करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर;वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।।तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ।मन और देह तुझ पर बलिदान मैं जाऊँ ।।-राम प्रसाद बिस्मिल
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Answer:
hey Nishant here is ur answer bro