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अगर कहीं मैं होता वृक्ष।
देता सबको शीतल छाया
कोई लगता नहीं पराया,
प्यार लुटाता सब पर ही मैं
पक्षी हो या हो चौपाया।
लेता मैं सबका ही पक्ष|
अगर कहीं मैं होता वृक्ष।
सुन्दर सुन्दर फूल खिलाता
खुशबू से जग को महकाता,
सबको अपने फल दे देता
मैं तो इनसे एक न खाता।
पर - सेवा में होता दक्ष।
अगर कहीं मैं होता वृक्ष।
मैं दूषित वायु को पीता
शुध्द हवा दे जीवन जीता,
फटे हुए भू के आँचल को
जड़ - धागों से रहता सीता।
सुख पाता सच्चा प्रत्यक्ष।
अगर कहीं मैं होता वृक्ष।
सर्दी गर्मी वर्षा सहता
पर अपना दुख कभी न कहता,
एक जगह पर खड़ा हुआ
मैं त्याग तपस्या में रत रहता।
सन्तों के होता समकक्ष।
अगर कहीं मैं होता वृक्ष।
आशा करता हूँ आपको कविता अच्छी लगेगी और आपकी मदद करेगी ||
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isme paste karna latex...
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