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कौटिल्य ने अपनी पुस्तक "चाणक्य नीति दर्पण" में विद्यार्थी के पांच लक्षण बताये हैं। इनके अनुसार कौए के सामान चेष्टा करने वाला, बगुले के सामान एकाग्रता वाला, कुत्ते जैसी अल्पनिद्रा वाला, अल्पाहारी और गृहत्यागी अर्थात घरेलु झंझटों में न पढ़कर विद्या की साधना में रत रहने वाला ब्रह्मचारी बालक ही विद्यार्थी माना जाता है।
समाज और देश की दौलत हैं विद्यार्थी। आज के विद्यार्थी भविष्य के भारत के निर्माता है। समाज और देश का भविष्य हैं। विकसित भारत का सपना इन्हें ही पूरा करना है। और इन अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए उनका अनुशासित होना बहुत जरुरी है। बालक के सबसे अधिक शुभचिंतक माता-पिता व गुरुजन होते हैं। वे अनुभवी होने के कारण विद्यार्थी का उचित मार्गदर्शन करने में समर्थ होते हैं। इसलिए यह आवश्यक है की हर विद्यार्थी अपने माता-पिता व गुरुजन की सेवा में तत्पर उनकी आज्ञा का पालन करे।
कौटिल्य के बताये उपरोक्त पांच गुण एक अनुशासित छात्र में ही परिलक्षित हो सकते हैं। ऐसे आज्ञाकारी और अनुशासित क्षेत्र परीक्षा में भी सफलता प्राप्त करते हैं तथा जीवन में भी सफल होते हैं। आत्मविश्वास, संयम और स्वावलंबन उन्हें अनायास ही सुलभ हो जाता है। अनुशासित रहने वाले विद्यार्थी जीवन के हर कदम पर सफलताएं प्राप्त करते और यश के भागी होते हैं। ऐसे छात्रों का वर्तमान चाहे कितनी ही कठिनाइओं से भरा हो किन्तु उनका भविष्य उज्जवल होता है।
विश्व और देश में अब तक जितनी भी क्रांतियां हुई उन सब में सफलता तभी मिली जब विद्यार्थी समुदाय उसमें शामिल हो गया। देश के भावी नेता इन्ही विद्यार्थियों में से कुछ बनेंगे। वे अपने कुशल संचालन से समाज, देश, विश्व और मानवता को प्रगति के मार्ग पर ले जाएंगे। अनुशासन आंतरिक होना चाहिए तभी विद्यार्थी को इसका लाभ मिल सकता है। अनुशासन से व्यक्तित्व निखरता है और उसमें दृढ़ता आ जाती है। बाहरी अनुशासन केवल दिखावा मात्र होता है। यह प्रायः भयजनित होता है, जैसे ही भय ख़त्म होता है अनुशासन भी वहीँ डैम तोड़ता दिखाई पड़ता है और छात्र उद्दंड हो जाता है।
अक्सर विद्यार्थी अपने जीवन में अनुशासन के महत्त्व को दिल से नहीं उतार पाता है और पथभृष्ट हो जाता है। विद्यालय में उपद्रव फैलाकर स्वयं के साथ-साथ अन्य सहपाठियों का भी नुक्सान करते हैं। ऐसे छात्रों के माता-पिता, पास-पडोसी और गुरुजन सब दुखी होते हैं। इस प्रकार उद्दंड छात्र अपना भविष्य और अपने शुभचिंतकों का भी भविष्य खराब कर देते हैं। "अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना" ऐसे छात्रों पर एकदम सही बैठता है।
अनुशासित छात्र की हर कठिनाई अपने-आप सरल हो जाती है। अनुशासित रहकर विद्यार्थी अपने जीवन में बड़े से बड़ा लक्ष्य निर्धारित कर सकता है व उसे सफलतापूर्वक प्राप्त भी कर सकता है और सही मायनों में अपना, अपने परिवार का, अपने देश का और सम्पूर्ण विश्व का भला कर सकता है। इसलिए हम सभी को अनुशासन के महत्त्व को समझना चाहिए और इसे अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करना चाहिए।
समाज और देश की दौलत हैं विद्यार्थी। आज के विद्यार्थी भविष्य के भारत के निर्माता है। समाज और देश का भविष्य हैं। विकसित भारत का सपना इन्हें ही पूरा करना है। और इन अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए उनका अनुशासित होना बहुत जरुरी है। बालक के सबसे अधिक शुभचिंतक माता-पिता व गुरुजन होते हैं। वे अनुभवी होने के कारण विद्यार्थी का उचित मार्गदर्शन करने में समर्थ होते हैं। इसलिए यह आवश्यक है की हर विद्यार्थी अपने माता-पिता व गुरुजन की सेवा में तत्पर उनकी आज्ञा का पालन करे।
कौटिल्य के बताये उपरोक्त पांच गुण एक अनुशासित छात्र में ही परिलक्षित हो सकते हैं। ऐसे आज्ञाकारी और अनुशासित क्षेत्र परीक्षा में भी सफलता प्राप्त करते हैं तथा जीवन में भी सफल होते हैं। आत्मविश्वास, संयम और स्वावलंबन उन्हें अनायास ही सुलभ हो जाता है। अनुशासित रहने वाले विद्यार्थी जीवन के हर कदम पर सफलताएं प्राप्त करते और यश के भागी होते हैं। ऐसे छात्रों का वर्तमान चाहे कितनी ही कठिनाइओं से भरा हो किन्तु उनका भविष्य उज्जवल होता है।
विश्व और देश में अब तक जितनी भी क्रांतियां हुई उन सब में सफलता तभी मिली जब विद्यार्थी समुदाय उसमें शामिल हो गया। देश के भावी नेता इन्ही विद्यार्थियों में से कुछ बनेंगे। वे अपने कुशल संचालन से समाज, देश, विश्व और मानवता को प्रगति के मार्ग पर ले जाएंगे। अनुशासन आंतरिक होना चाहिए तभी विद्यार्थी को इसका लाभ मिल सकता है। अनुशासन से व्यक्तित्व निखरता है और उसमें दृढ़ता आ जाती है। बाहरी अनुशासन केवल दिखावा मात्र होता है। यह प्रायः भयजनित होता है, जैसे ही भय ख़त्म होता है अनुशासन भी वहीँ डैम तोड़ता दिखाई पड़ता है और छात्र उद्दंड हो जाता है।
अक्सर विद्यार्थी अपने जीवन में अनुशासन के महत्त्व को दिल से नहीं उतार पाता है और पथभृष्ट हो जाता है। विद्यालय में उपद्रव फैलाकर स्वयं के साथ-साथ अन्य सहपाठियों का भी नुक्सान करते हैं। ऐसे छात्रों के माता-पिता, पास-पडोसी और गुरुजन सब दुखी होते हैं। इस प्रकार उद्दंड छात्र अपना भविष्य और अपने शुभचिंतकों का भी भविष्य खराब कर देते हैं। "अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना" ऐसे छात्रों पर एकदम सही बैठता है।
अनुशासित छात्र की हर कठिनाई अपने-आप सरल हो जाती है। अनुशासित रहकर विद्यार्थी अपने जीवन में बड़े से बड़ा लक्ष्य निर्धारित कर सकता है व उसे सफलतापूर्वक प्राप्त भी कर सकता है और सही मायनों में अपना, अपने परिवार का, अपने देश का और सम्पूर्ण विश्व का भला कर सकता है। इसलिए हम सभी को अनुशासन के महत्त्व को समझना चाहिए और इसे अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करना चाहिए।
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