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एक दर्जी था| जिसका नाम दया सागर था| नाम के अनुसार ही उसमें वैसे गुण भी थे| वह बहुत दयालु स्वभाव का परिश्रमी व्यक्ति था| जब वह अपनी दुकान पर कपड़े सिलता रहता था तो उसकी दुकान पर एक हाथी प्रतिदिन आकर खड़ा हो जाता था दर्जी रोज हाथी को कुछ न कुछ खाने को देता था| परिणामस्वरुप हाथी दर्जी को रोज सैर कराने ले जाता था| हाथी नियमित रुप से प्रतिदिन आने लगा था|
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एक दिन दर्जी किसी काम से बाहर गया हुआ था, इसीलिए वह दुकान पर न आ सका| उसने अपने लड़के से दुकान पर बैठने के लिए कह दिया था|
लड़के ने जैसे ही दुकान खोली तो हाथी रोज की तरह उस दिन भी दुकान के पास आकर खड़ा हो गया| दर्जी का बेटा बहुत शैतान था| हाथी ने जैसे ही उसकी तरफ अपनी सूँड बढ़ाई तो लड़के ने हाथी की सूँड में सुई चुभा दी| हाथी को बहुत गुस्सा आया और चुपचाप चला गया| वह एक तालाब पर गया और उसमें से गंदा पानी अपनी सूँड में भरकर दर्जी की दुकान पर लौट पड़ा| लड़के ने हाथी को अपनी दुकान की ओर आते देखकर सोचा, यह फिर दुबारा आ रहा है| अबकी बार इस हाथी की सूँड में इतनी जोर से सुई चुभाऊँगा कि फिर यह इस तरफ नहीं आयेगा| हाथी जैसे ही दुकान पर पहुँचा तो उसने अपनी सूँड का सारा गंदा पानी वहाँ पर उंडेल दिया| इससे दर्जी की दुकान में रखे सब कपड़े गंदे हो गये| अब लड़के को अपने किये पर बड़ा पछतावा हुआ|
शिक्षा- हमें जानवरों के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए|
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