Hindi, asked by kunaranil3400, 1 year ago

please give me an essay in hindi on the topic stopping corruption [ bhrashtachar]

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Answered by Anonymous
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भ्रष्टाचार हमारी राष्ट्रीय समस्या है । ऐसे व्यक्ति जो अपने कर्तव्यों की अवहेलना कर निजी स्वार्थ में लिप्त रहते हैं ‘भ्रष्टाचारी’ कहलाते हैं । आज हमारे देश में भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरे तक समाहित हैं ।
कोई भी मंत्रालय, कोई भी विभाग शेष नहीं बचा है जहाँ पर भ्रष्टाचार के आरोप न लगे हों । मुनष्य की स्वार्थ लोलुपता व वर्तमान परिवेश में उसकी भोगवादी प्रवृत्ति भ्रष्टाचार के लिए उत्तरदायी समझी जाती है । भ्रष्टाचार हर एक दृष्टि में देश व समाज के घातक होता है ।

जब तक इस राष्ट्रीय समस्या का स्थाई निदान नहीं मिलता तब तक कोई देश या राष्ट्र पूर्ण रूप से उन्नति को प्राप्त नहीं कर सकता । यह पथ-पथ पर प्रगति की राह का अवरोधक बनता रहेगा । भ्रष्टाचार के कारणों का यदि हम गहन अध्ययन करें तो हम देखते हैं कि इसके मूल में अनेक कारण हैं जो भ्रष्टाचार के लिए कारण बनते हैं । सबसे प्रमुख कारण है आदमी में असंतोष की प्रवृत्ति ।

मनुष्य कितना भी कुछ हासिल कर ले परंतु उसकी और अधिक प्राप्त कर लेने की लालसा कभी समाप्त नहीं होती है । किसी वस्तु की आकांक्षा रखने पर यदि उसे वह वस्तु सहज रूप से प्राप्त नहीं होती है तब वह येन-केन प्रकारेण उसे हासिल करने के लिए उद्‌यत हो जाता है । इस प्रकार की परिस्थितियाँ भ्रष्टाचार को जन्म देती हैं ।

भ्रष्टाचार का दूसरा प्रमुख कारण है- मनुष्य की स्वार्थ की प्रवृत्ति । बात चाहे एक व्यक्ति की हो या फिर किसी समाज या संप्रदाय की, लोगों में निजी स्वार्थ की भावना परस्पर असामानता को जन्म देती है । यह असामानता आर्थिक, सामाजिक व प्रतिष्ठा के मतभेद को बढ़ावा देती है ।

किसी उच्च पद पर आसीन अधिकारी प्राय: गुणवत्ता की अनदेखी कर अपने समाज, परिवार अथवा संप्रदाय के लोगों को प्राथमिकता देता है तो उसका यह कृत्य भ्रष्टाचार का ही रूप है । भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्ति सदैव न्याय की अनदेखी करता है ।

” एक छोटी, एक सीधी बात, विश्व में छायी हुई हैवासना की रात । ”

देश में चारों ओर व्याप्त सांप्रदायिकता, भाषावाद, भाई-भतीजावाद, जातीयता आदि से पूरित वातावरण भ्रष्टाचार के प्रेरणा स्त्रोत हैं । भ्रष्टाचार के कारण ही कार्यालयों, दफ्तरों व अन्य कार्यक्षेत्रों में चोरबाजारी, रिश्वतखोरी आदि अनैतिक कृत्य पनपते हैं । दुकानों में मिलावटी सामान बेचना, धर्म का सहारा लेकर लोगों को पथभ्रमित करना तथा अपना स्वार्थ सिद्‌ध करना, दोषी व अपराधी तत्वों को रिश्वत लेकर मुक्त कर देना अथवा रिश्वत के आधार पर विभागों में भरती होना आदि सभी भ्रष्टाचार के प्रारुप हैं ।

हमारे देश के लिए यह बड़ी ही दुर्भाग्यपूर्ण विडंबना है कि युधिष्टिर, हरिश्चंद्र जैसे धर्मनिष्ठ शासकों व साधु-संतों की इस पावन धरती पर आज भ्रष्टाचार का विष फैल चुका है । छोटे से छोटे कर्मचारियों से लेकर देश की सत्ता पर बैठे हमारे शीर्षस्थ नेतागण भी आज भ्रष्टाचार में लिप्त हैं ।

समस्त भारतीय राजनीतिक परिवेश आज कुरसीवाद पर सिमट गया है । कुरसी के लिए हमारे राजनीतिज्ञ कोई भी सीमा लाँघने के लिए तैयार हैं । देश की रक्षा करने हेतु उच्च पदों पर आसीन मंत्री व अधिकारियों पर ही जहाँ भ्रष्टाचार के आरोप लगते हों, उस देश के भविष्य की कल्पना बड़े ही सहज रूप से की जा सकती है ।

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