Hindi, asked by MOINBRO, 1 month ago

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Answered by SugaryHeart
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Explanation:

मोबाइल फोन जितनी तेजी से पूरी दुनिया में आम जिंदगी के हिस्से बन गए हैं, वैसा शायद किसी और चीज के साथ नहीं हुआ। ये हमारी जिंदगी में कितने गहरे पैठ गए हैं, इसका अंदाजा अमेरिका की मिसूरी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की एक सलाह से मिलता है। इनका कहना है कि जो लोग आईफोन इस्तेमाल करते हैं, उन्हें तब अपना फोन जरूर साथ रखना चाहिए, जब वे ऐसा कोई काम कर रहे हों, जो बहुत महत्वपूर्ण हो या जिसमें बहुत ज्यादा ध्यान लगाने की जरूरत हो। अगर आईफोन इस्तेमाल करने वाले अपने फोन से दूर होते हैं, तो उनकी एकाग्रता और कार्यक्षमता घट जाती है, क्योंकि फोन सिर्फ उनके रोजमर्रा के जीवन का नहीं, बल्कि व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाता है। जब वे फोन से दूर रहते हैं, तो उन्हें ऐसा महसूस होता है कि उनके व्यक्तित्व का एक हिस्सा छूट गया है और एक अधूरेपन का एहसास होता है। इसका शारीरिक और मानसिक असर भी होता है और वे पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाते।

अध्ययनकर्ताओं ने कुछ लोगों को लेकर एक प्रयोग किया। उन्हें कुछ पहेलियां सुलझाने को दीं और यह देखा कि लोग आम तौर पर यह काम कितनी देर में करते हैं। उसके बाद उन्होंने किसी बहाने उनके आईफोन दूर रखवा दिए और वही काम फिर से करवाए। उस बीच उन्होंने लोगों के फोन के नंबर लगाकर उनकी घंटी बजाई। उन्होंने पाया कि दूसरी बार में लोगों की दिल की धड़कन और ब्लड प्रेशर में बढ़ोतरी हुई, उनकी बेचैनी बहुत बढ़ गई। पहेलियां हल करने की उनकी क्षमता और गति भी कम हो गई। कॉल का जवाब न दे पाने के कारण उनकी एकाग्रता पर बहुत ज्यादा असर हुआ। उन्होंने यह भी बताया कि बिना फोन के काम करते हुए उन्हें ज्यादा घबराहट हुई और अरुचिकर भी लगा। यानी शांति और एकाग्रता से काम करना है, तो अपने फोन को साथ रखें। जो फोन साथ रखना भूल जाते हैं, तो वे एक किस्म की छटपटाहट महसूस करते हैं। यह भी एक अनुभव है कि जब कोई व्यक्ति बेचैनी या अस्थिरता महसूस करता है, तो अपना फोन निकालकर उस पर कोई नंबर मिलाने लगता है, या और कोई काम करने लगता है। कुछ नहीं, तो वह पुराने मैसेज या नंबर ही देखने लगता है या गेम खेलने लगता है। फोन हमारे लिए संवाद का पर्याय हो गया है या हमारी बेचैनी में राहत देने वाला साथी बन गया है। आधुनिक जीवन के अकेलेपन के हम इतने आदी हो गए हैं कि लोगों के बीच बैठे हुए भी हम फोन की मौजूदगी से ही राहत पाते हैं। फोन साथ न हो, तो हमें लगता है कि ‘भीड़ में अकेले’ हो गए हैं, हमारा दुनिया से संवाद का सूत्र टूट गया है। मानव और यंत्र का ऐसा रिश्ता इतिहास में पहले कभी सुनने में नहीं आया।

हमारे पास ज्यादातर फोन और मैसेज सस्ता लोन देने वालों और मकान बेचने वालों के आते हैं, लेकिन इस क्षेत्र में शोध करने वाले लोगों का कहना है कि अगर बहुत देर तक फोन की घंटी नहीं बजी या मैसेज नहीं आया, तो कई लोगों को ऐसा लगता है कि उनका दुनिया से संपर्क टूट गया है या लोग उन्हें भूल गए हैं। फोन की घंटी बजी और जवाब नहीं दे पाए, तो उन्हें लगता है कि कोई जरूरी बात करने से वे वंचित हो गए हैं। काफी हद तक फोन हमारी जरूरत है, लेकिन अच्छा यह है कि हम यह विश्वास रखें कि फोन के बिना भी हमारा एक मुकम्मल वजूद है, हम इसके बिना भी दुनिया से संपर्क बना सकते हैं या शायद कहीं ज्यादा जीवंत संपर्क बना सकते हैं। लेकिन यह भी सच्चाई है कि टेक्नोलॉजी मोबाइल को ज्यादा से ज्यादा फीचरों से लैस करती जा रही है और वह ज्यादा जीवंत होता जा रहा है, कोई उसके आकर्षण से बचे भी तो कैसे?

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