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प्रायः लोग कहते हैं कि मैं तो सारे दिन काम करता हूं। मैं योग कैसे कर सकता हूं? किंतु ऐसे लोगों को मैं बताना चाहता हूं कि योग का अर्थ है लगातार अभ्यास। आध्यात्मिकता भी निरंतर अभ्यास ही है। आध्यात्मिकता का अर्थ क्या है? आध्यात्मिकता का अर्थ बहुत सरल है। आध्यात्मिकता सादगी है। तुम जितना अधिक आध्यात्मिक होगे, उतना अधिक सादगी से रहोगे, तुम्हारा जीवन उतना ही अधिक सादा होगा।
कार्य हमारी चेतना के विकास के लिए एक अन्य प्रक्रिया है। हर दिन सुबह से शाम तक तुम व्यस्त रहते हो, तुम कुछ न कुछ कार्य करते हो। कार्य करना अच्छी बात है, इससे तुम्हारा जीवन सुंदर बन सकता है - बशर्ते कि तुम समझ सको कि इसे कैसे करना है। अगर तुम जान जाओ कि काम कैसे करना है तो यह कार्य तुम्हारी चेतना के विकास की एक सुंदर प्रक्रिया होगी।
तुम इस रहस्य को अच्छी तरह समझ लो कि परमात्मा तक पहुंचने का एक रास्ता है- 'कर्म योग'। अर्थात् कार्य के द्वारा योग, मन, शरीर, प्राण और चैत्य की क्रियाओं से। काम करने की भी एक तकनीक है। तकनीक बिलकुल सही शब्द है - अगर तुम उसको ठीक से समझ सको। केवल कर्म के द्वारा ही तुम्हारा जीवन आश्चर्यजनक रूप से सुंदर बन जाएगा। याद रखो और अपने को समर्पित कर दो।
हमेशा अपनी पूरी तन्मयता, एकाग्रता से काम करो, उसमें अपना मन, तन और हृदय लगा दो। फल को महत्व मत दो। यही फॉर्मूला है : स्मरण करो, समर्पण करो और पूरी निष्ठा से कर्म करो। तुम्हारे हाथ में केवल यह एक चीज है, फल, परिणाम तुम्हारे हाथ में नहीं है। हर रोज, सुबह से शाम तक, जब तक तुम काम कर रहे हो उस दिव्य को याद रखो और उसे ही अर्पित करो।
अपने पूरे मन से ऐसा करो। श्री मां को याद करो और उन्हें कर्म अर्पित करो और इस तरह तुम्हारा काम ही तुम्हारी चेतना के विकास में सहायक बनेगा। और जब रात को तुम सोने जाओगे तो तुम्हें कोई समस्या नहीं होगी। हर काम चाहे वह कोई भी हो, अर्पण कर दो। बस इतना ही करना है। परमात्मा की दिव्य शक्ति सर्वत्र व्याप्त है।
"कर्म ही पूजा है"
श्रीमद भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" अर्थात कर्म करने में ही तुम्हारा अधिकार है उसके फल में नहीं। कर्म विहीन इस संसार की तुलना भी नहीं की जा सकती है। यदि मनुष्य कर्म न करता तो आज उन्नति के इस शिखर पर कभी नहीं पहुंच पाता। जो व्यक्ति परिश्रमी है उद्यमी है वह अपने जीवन में लक्ष्य को अवश्य प्राप्त करता है।
आज हम चारों और जो विकास देखते हैं वह कर्म का ही प्रतीक है। इंसान अगर कर्म न करता तो यह सारा विकास असंभव होता । परिश्रम करने से ही सब कार्य सफल होते हैं केवल इच्छा मात्र से नहीं। इसलिए हमें अपने जीवन में निरंतर कर्म करते रहना चाहिए। जो नियमित रूप से लक्ष्य को निर्धारित करके कर्म करता है वह जरूर सफल होता है। आलसी व्यक्ति अपने जीवन में कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता क्योंकि बिना कर्म के कुछ भी प्राप्त नहीं होता है।
शास्त्रों में भी कर्म के महत्व को बताते हुए कहा है
"उद्यमेन हि सिध्यंति कार्याणि न मनोरथै न ही सुप्तस्य सिंहस्य मुखे प्रविश्ति मृगा:" अर्थात परिश्रम करने से ही सब कार्य सफल होते हैं इच्छा मात्र से नहीं। जिस प्रकार सोए हुए शेर के मुंह में हिरण अपने आप प्रवेश नहीं कर सकता उसी तरह से बिना परिश्रम किए हमें फल नहीं मिल सकता है।
इसलिए हमें निरंतर कर्म करते रहना चाहिए। कर्म विहीन व्यक्ति का कोई आधार नहीं करता घर परिवार में भी उसे हीन भावना से देखा जाता है इसलिए हमें निरंतर कर्म की ओर अग्रसर होना चाहिए।
हमारी धार्मिक पुस्तक श्रीमद भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कर्म योग के विषय में बहुत ही सुंदर वर्णन किया है। हमें निरंतर अपने कर्म की ओर प्रयासरत रहना चाहिए। क्योंकि यह संसार कर्मवीरों का है कर्म के बिना यहां पर कुछ भी संभव नहीं है, किसी ने सच ही कहा है कि कर्म ही पूजा है इसलिए हमें निरंतर कर्म करते रहना चाहिए।