Please give me the kavya saundarya of the chapter manushyata class 10.
Anonymous:
hey bud dont ask same ques. its deducting ur points if sme 1 knw they will surely tell to u
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विचार लो कि मर्त्य हो न मृत्यु से डरो कभी,
मरो, परंतु यों मरो कि याद जो करें सभी।
हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए,
मरा नहीं वही कि जो जिया न आपके लिए।
वही पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥
उस आदमी का जीना या मरना अर्थहीन है जो अपने स्वार्थ के लिए जीता या मरता है। जिस तरह से पशु का अस्तित्व सिर्फ अपने जीवन यापन के लिए होता है, मनुष्य का जीवन वैसा नहीं होना चाहिए। ऐसा जीवन जीने वाले कब जीते हैं और कब मरते हैं कोई ध्यान ही नहीं देता है। हमें दूसरों के लिए कुछ ऐसे काम करने चाहिए कि मरने के बाद भी लोग हमें याद रखें। साथ में हमें ये भी अहसास होना चाहिए कि हम अमर नहीं हैं। इससे हमारे अंदर से मृत्यु का भय चला जाता है।
मरो, परंतु यों मरो कि याद जो करें सभी।
हुई न यों सुमृत्यु तो वृथा मरे, वृथा जिए,
मरा नहीं वही कि जो जिया न आपके लिए।
वही पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे,
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे॥
उस आदमी का जीना या मरना अर्थहीन है जो अपने स्वार्थ के लिए जीता या मरता है। जिस तरह से पशु का अस्तित्व सिर्फ अपने जीवन यापन के लिए होता है, मनुष्य का जीवन वैसा नहीं होना चाहिए। ऐसा जीवन जीने वाले कब जीते हैं और कब मरते हैं कोई ध्यान ही नहीं देता है। हमें दूसरों के लिए कुछ ऐसे काम करने चाहिए कि मरने के बाद भी लोग हमें याद रखें। साथ में हमें ये भी अहसास होना चाहिए कि हम अमर नहीं हैं। इससे हमारे अंदर से मृत्यु का भय चला जाता है।
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मनुष्यता का विषय यह है कि मनुष्य को विनम्र भाव से सभी का आचरण करना चाहिए और सभी के प्रति सद्भाव रखना चाहिए l मनुष्य में अनुभव और ह्रदय का मेल होना चाहिए मनुष्य को दूसरे व्यक्ति के प्रति सद्भाव और दया का भाव होना चाहिए जो एक जो एक मनुष्यता का अंश है वह हर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के निस्वार्थ भाव से और कठिन परिस्थितियों में उसकी सहायता करता है वह उसकी आचरण और इंसानियत की रूपरेखा है और इस अध्याय का मनुष्यता के प्रति उसकी कर्तव्यनिष्ठा और त्याग से परिपूर्ण आचरण को दर्शाना है
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