Hindi, asked by ngitauma, 2 months ago

Please give some proper points​

Attachments:

Answers

Answered by NishiDubey48
3

Answer: answered by the #BTS fan

भारतीय समाज में अनेक प्रथाएं प्रचलित हें । पहले इस प्रथा के प्रचलन में भेंट स्वरूप बेटी को उसके विवाह पर उपहारस्वरूप कुछ दिया जाता था परन्तु आज दहेज प्रथा एक बुराई का रूप धारण करती जा रही है । दहेज के अभाव में योग्य कन्याएं अयोग्य वरों को सौंप दी जाती हैं । लोग धन देकर लड़कियों को खरीद लेते हैं । ऐसी स्थिति में पारिवारिक जीवन सुखद नहीं बन पाता । गरीब परिवार के माता-पिता अपनी बेटियों का विवाह नहीं कर पाते क्योंकि समाज के दहेज-लोभी व्यक्ति उसी लड़की से विवाह करना पसंद करते हैं जो अधिक दहेज लेकर आती हैं ।

हमारे देश में दहेज प्रथा एक ऐसा सामाजिक अभिशाप है जो महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों, चाहे वे मानसिक हों या फिर शारीरिक, को बढावा देता है. इस व्यवस्था ने समाज के सभी वर्गों को अपनी चपेट में ले लिया है. अमीर और संपन्न परिवार जिस प्रथा का अनुसरण अपनी सामाजिक और पारिवारिक प्रतिष्ठा दिखाने के लिए करते हैं वहीं निर्धन अभिभावकों के लिए बेटी के विवाह में दहेज देना उनके लिए विवशता बन जाता है. क्योंकि वे जानते हैं कि अगर दहेज ना दिया गया तो यह उनके मान-सम्मान को तो समाप्त करेगा ही साथ ही बेटी को बिना दहेज के विदा किया तो ससुराल में उसका जीना तक दूभर बन जाएगा. संपन्न परिवार बेटी के विवाह में किए गए व्यय को अपने लिए एक निवेश मानते हैं. उन्हें लगता है कि बहूमूल्य उपहारों के साथ बेटी को विदा करेंगे तो यह सीधा उनकी अपनी प्रतिष्ठा को बढ़ाएगा. इसके अलावा उनकी बेटी को भी ससुराल में सम्मान और प्रेम मिलेगा |

मूल रूप से दहेज की कुप्रथा है। गौरतलब है कि भारत में ८.९ प्रतिशत लड़कियाँ १३ वर्ष की उम्र से पहले ब्याह दी जाती हैं जबकि अन्य २३.५ प्रतिशत लड़कियों की शादी १५ वर्ष की आयु तक हो जाती है। जाहिर है लड़की जितनी पढ़ेगी-बढ़ेगी उतना ही उपयुक्त वर तलाशना होगा और उसके रेट के मुताबिक दहेज जुटा पाना सबके बूते की बात नहीं है इसलिए कम उम्र की कम पढ़ी-लिखी लड़की ब्याह कर कन्यादान का पुण्य प्राप्त करना अधिकांश लोग बढ़िया मान लेते हैं। दहेज के दानव के भय से ही पूरे देश में गैरकानूनी अल्ट्रासाउंंड क्लीनिकों में हर रोज लाखों लड़कियाँ माँ की कोख में ही मार दी जा रही है। लड़कियों के पोषण से संबंधित एक अध्ययन का निष्कर्ष है कि प्रत्येक पैदा हुई १००० लड़कियों में से ७६६ लड़कियाँ ही समाज में जीवित रहती हैं। लड़कियों की उपेक्षा का आलम ये है कि संभ्रांत समझे जाने वाले परिवारों ने भी यह समझना नहीं चाहा है कि परिवार में बेटियों का जन्म नहीं होगा तो इसी परिवार में बहुएँ कहाँ से आएँगी।

हमारा सामाजिक परिवेश कुछ इस प्रकार बन चुका है कि यहां व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसके आर्थिक हालातों पर ही निर्भर करती है. जिसके पास जितना धन होता है उसे समाज में उतना ही महत्व और सम्मान दिया जाता है. ऐसे परिदृश्य में लोगों का लालची होना और दहेज की आशा रखना एक स्वाभाविक परिणाम है. आए दिन हमें दहेज हत्याओं या फिर घरेलू हिंसा से जुड़े समाचारों से दो-चार होना पड़ता है. यह मनुष्य के लालच और उसकी आर्थिक आकांक्षाओं से ही जुड़ी है. इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि जिसे जितना ज्यादा दहेज मिलता है उसे समाज में उतने ही सम्माननीय नजरों से देखा जाता है.

दहेज कम लाने पर शादी के पश्चात् बहुओं को मारा- पीटा जाता है । यहां तक कि उन्हें जला दिया जाता है । उसे आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया जाता है । प्राचीन काल में स्त्री-पुरुष का प्रणय-बंधन कभी एक पुनीत रीति था । माता-पिता इसे अपना कर्त्तव्य समझते थे । कन्यादान को महादान समझा जाता था । बेटी के विवाह पर कन्या पक्ष के लोग वर पक्ष के लोगों को प्रेम से जो भी उपहार देते थे वर पक्ष उसे स्वीकार करता था ।

कालांतर में उसने दहेज का रूप धारण कर लिया है । आज उस दहेज के नाम पर बड़ी-बड़ी चीजों की मांग की जाती है । दहेज न दे पाने के कारण बारात वापिस ले जाते हैं । लोग आज दहेज मांगने में जरा भी लज्जा महसूस नहीं करते । पैसे वाले लोग अपनी बेटियों के विवाह पर अपार धन खर्च करते हैं । बड़ी-बड़ी चीजें जैसे ए .सी., गाड़ियां, कीमती वस्त्र १ गहने आदि चीजें देते हैं । उसी की देखा – देखी वर पक्ष के लोग गरीब या -मध्यम वर्ग के परिवारों से भी बड़ी- – बड़ी चीजों की मांग करते है । ओज इस प्रथा ने विकराल रूप धारण कर लिया है ।

यह समस्या प्रत्येक लड़की के माता-पिता की समस्या बन गई है । इस समस्या ने असंख्य कन्याओं के माता–पिता का चैन लूट लिया है । दहेज के कारण पढ़ी-लिखी, सुंदर, सुशील, कमाऊ लड़कियों की भी शादी नहीं हो पा रही है । लड़का कुरूप तथा मोटी लड़की से भी शादी कर लेता है क्योंकि वह खूब सारा दहेज लेकर आती है परन्तु उसे मध्यम वर्ग की सुंदर सुशील लड़की से विवाह करना ग्वारा नहीं जो दहेज कम लाएगी । प्रतिदिन अखबारों में दहेज उत्पीड़न के मामले पढ़ने को मिलते हैं । आज शादी का बंधन पवित्रता का बंधन नहीं बल्कि सौदेबाजी का व्यापार बन गया है ।

Similar questions