Please give story on संवेदना का अभाव
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संवेदना का अभाव
आज हमारा समाज किस ओर जा रहा है हम कितने संवेदनहीन हो गए हैं हमारे अंदर संवेदना का अभाव हो चुका है। यह हमें अपने आसपास के लोगों के आचरण से दिखता है। एक आंखों देखी घटना इस बात का उदाहरण है।
एक बार अपने घर लौटते समय मैं सड़क पर चल रहा था । एक व्यक्ति जो सड़क पार करने की कोशिश कर रहा था कि अचानक उसको एक कार ने टक्कर मार दी और वह घायल होकर गिर पड़ा। कार चालक उसकी मदद करने की बजाय कार को भगाकर ले गया और वो व्यक्ति सड़क पर पड़ा तड़पने लगा। मैं तुरंत उसकी मदद के लिए दौड़ा, लेकिन आसपास से कोई उसकी मदद के लिए नहीं आया। लोग अपना मोबाइल निकालकर उस तड़पते हुए व मरते हुए व्यक्ति का वीडियो बनाने लगे। उन्हें शायद इसमें आनंद आ रहा था। किसी ने भी उन्हें उसे अस्पताल पहुंचाने मैं मदद नहीं की।
मैं अकेला कुछ नहीं कर सकता था। इस कारण मैंने आसपास कई कारों और रिक्शा वालों को रोकने की कोशिश की। लेकिन कोई नही रुका। आस पास कोई वाहन भी नहीं खड़ा था, जिसकी मैं सहायता ले सकता था। मेरे पास भी कोई वाहन भी नहीं था जो मैं अपने वाहन में बैठाकर ले जाता। मैंने कई वाहनों को रोकने की कोशिश की लेकिन सब देखकर तेजी से निकल जाते। आसपास के लोग भी बस केवल तमाशबीन बनकर खड़े थे।
उस व्यक्ति की सांसे धीरे-धीरे चल रही थीं और अंत में उसकी सांसें थम गई। अगर उसे समय पर अस्पताल पहुंचाया जाता तो मैं शायद बच सकता था। लेकिन संवेदनहीन लोगों के समाज में लोगों में संवेदना का इतना अभाव है कि किसी व्यक्ति की मदद करने की बजाय लोग मोबाइल से वीडियो बनाने में व्यस्त हो जाते हैं और तमाशबीन बन जाते हैं।
समाज में व्याप्त संवेदनहीनता हमें अंदर तक झकझोर देती है। किसी दिन ऐसी ही घटना जब स्वयं पर घटती है और हमें मदद की जरूरत पड़ती है तब एहसास होता है कि संवेदनहीन होना कितना बुरा है।
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संवेदना का अभाव |
Explanation:
विज्ञान के जरिए आधुनिकता के अलग से चरण में पहुँचने के बाद भी मुझे खेद में यह कहना पड़ रहा हैं की आज भी हमारी इंसानियत खतरे में हैं | कारण सिर्फ एक ही हैं और वह हैं संवेदना का घोर अभाव | तकनीक ने भले ही हमारे भौतिक सुख-सुविधाओं को बढ़ा दिया हो परंतु यह पूरे तरीके से इंसानियत की मौलिक ढांचा को बर्करार रखने में अब तक नाकाम रहा हैं |
आज-कल होने वाली हिंसा और मनुष्य के हकों में होने वाली उलंघन की निंदाश्पद घटना इसी बात की और ही संकेत देता है की हमारे अंदर आज संवेदना यानी सहानुभूति की बहुत ही कमी हैं | भले ही हमारे पास हमारे स्वार्थ को पूरा करने के लिए अपार शक्ति क्यों न हो परंतु सहानुभूति की कमी हमें एक इंसान होने के हक को धीरे-धीरे व अंजान तरीके से हमसे छिन कर ले जा रहा हैं | इसके ऊपर अवश्य ही सोचना हमारा कर्तव्य हैं |