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आधुनिक औद्योगीकरण की आंधी में सिर्फ मनुष्य ही नहीं उखड़ता बल्कि उसका परिवेश संस्कृति और आवास स्थल भी हमेशा के लिये नष्ट हो जाते है। जहां कोई वापसी नहीं है ।
आधुनिक औद्योगीकरण से बड़ी - बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियां आई। लघु और कुटीर उद्योग नष्ट हो गए। मानवीय श्रम का स्थान मशीनों ने ले लिया। समय प्रबंधन और मानव उन मशीनों के इशारों पर चलने लगा और जीवन मशीनी जीवन हो गया।
मशीनी जीवन ने हमारी वृहद और संयुक्त परिवार की परम्परा समाप्त कर दी। उसका आकार घट गया। पति पत्नी दोनो काम करने वाले मजदूर हो गये। बुढापे का सहारा समाप्त हो गया और गावं के चोक का स्थान वृद्धाश्रमों ने ले लिया।
बच्चों का बचपन छात्रावासों में सीमित हो कर रह गया उनका वास्तविक विकास की जगह एक सीमा में, सीमित दायरें में विकास सिमट कर रह गया। और वों सिर्फ अंक बनाने वाली मशीन बनकर रह गये।
मेलमिलाप और मनोंरजन का समय ही नहीं बचा और व्यक्ति सिर्फ अपने काम से बंधा कोल्हू का बैल होकर रह गया। सांस्कृतिक मूल्यों का ह्वास हो गया। और या तो मानवीय मूल्य ही बदल गये या लोगो को उनसे कोई मतलब ही रहा।
अर्थचक्र के पहिये ने व्यक्ति को ऐसा दबाया कि वह गांव का स्वावलम्बन छोड़कर शहर का निवासी हो गया और गन्दी बस्तियां उसका आवास हो गया।
भोजन में जहर घुल गया उसकी थाली के हर कौर में जहर का प्रतिशत बढ गया। नई तरह की बीमारियों ने व्यक्ति को आ घेरा।
लेकिन इस जिन्दगी की रौनक ऐसी है कि यहां से कोई लौटकर भी नहीं आ पाया, और सिर्फ मशीन बनकर रह गया और उसे यही जिन्दगी रास भी आने लगी। लगता है कि यहां से लौटने का दूर दूर तक कोई रास्ता नजर भी नहीं आता और कोई खोजना भी नहीं चाहता।
इसलिये ये पूरी तरह से सत्य हैंं कि आधुनिक औद्योगीकरण की आंधी में सिर्फ मनुष्य ही नहीं उखड़ता बल्कि उसका परिवेश संस्कृति और आवास स्थल भी हमेशा के लिये नष्ट हो जाते है। जहां कोई वापसी नहीं है ।