Hindi, asked by csahu0517, 4 months ago

Please Give The Answer Very Fast :- सामाजिक मूल्यों का हास् विषय पर एक आलेख लिखिए |

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Answered by ratanlaljanagal1973
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Answer:

सामाजिक मूल्य व्यक्ति पर थोपे नहीं जाते, अपितु वह समाजीकरण द्वारा स्वयं इनका आन्तरीकरण कर लेता है और इस प्रकार वे उसके व्यक्तित्व के ही अंग बन जाते हैं। सामाजिक मूल्यों में संज्ञानात्मक, आदर्शात्मक तथा भौतिक तीनों प्रकार के तत्त्व निहित होते हैं। सामाजिक मूल्य ही नैतिकता-अनैतिकता अथवा उचित-अनुचित के मापदण्ड होते हैं।

Explanation:

मूल्य समाज के प्रमुख तत्त्व हैं तथा इन्हीं मूल्यों के आधार पर हम किसी समाज की प्रगति, उन्नति, अवनति अथवा परिवर्तन की दिशा निर्धारित करते हैं। इन्हीं मूल्यों द्वारा व्यक्तियों की क्रियाएँ निर्धारित की जाती हैं तथा इससे समाज का प्रत्येक पक्ष प्रभावित होता है। सामाजिक मूल्यों के बिना न तो समाज की प्रगति की कल्पना की जा सकती है और न ही भविष्य में प्रगतिशील क्रियाओं का निर्धारण ही सम्भव है। मूल्यों के आधार पर ही हमें यह पता चलता है कि समाज में किस चीज को अच्छा अथवा बुरा समझा जाता है। अत: सामाजिक मूल्य मूल्यांकन का भी प्रमुख आधार हैं। विभिन्न समाजों की आवश्यकताएँ तथा आदर्श भिन्न-भिन्न होते हैं, अत: सामाजिक मूल्यों के मापदण्ड भी भिन्न-भिन्न होते हैं। किसी भी समाज में सामाजिक मूल्य उन उद्देश्यों, सिद्धान्तों अथवा विचारों को कहते हैं जिनको समाज के अधिकांश सदस्य अपने अस्तित्व के लिए आवश्यक समझते हैं और जिनकी रक्षा के लिए बड़े-से-बड़ा बलिदान करने को तत्पर रहते हैं। मातृभूमि, राश्ट्रगान, धर्मनिरपेक्षता, प्रजातन्त्र इत्यादि हमारे सामाजिक मूल्यों को ही व्यक्त करते हैं।

सामाजिक मूल्य का अर्थ

सामाजिक मूल्य विभिन्न सामाजिक घटनाओं को मापने (मूल्यांकन करने में) का वह पैमाना है जो किसी घटना-विशेष के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। सामाजिक मूल्य प्रत्येक समाज के वातावरण और परिस्थितियों के वैभिन्न्य के कारण अलग-अलग होते हैं। ये मानव मस्तिष्क को विशिष्ट दृष्टिकोण प्रदान करते हैं, जो सामाजिक मूल्यों के निर्माता होते हैं। प्रत्येक समाज की सांस्कृतिक विशेषताएँ, अपने समाज के सदस्यों में विशिष्ट मनोवृत्तियाँ उत्पन्न कर देती हैं जिनके आधार पर भिन्न-भिन्न विषयों और परिस्थितियों का मूल्यांकन किया जाता है।

यह सम्भव है जो ‘आदर्श’ और मूल्य एक समाज के हैं, वे ही दूसरे समाज में अक्षम्य अपराध माने जाते हैं। भारत के सभ्य समाजों में विवाहेतर यौन सम्बन्ध मूल्यों की दृष्टि से घातक हैं किन्तु जनजातियों के सर्वोच्च लाभदायी मूल्य हैं। अत: मूल्यों का निर्धारण समाज की विशेषता पर आधारित है।

सामाजिक मूल्य की परिभाषा

एच0 एम0 जॉनसन (H. M. Johnson) के अनुसार-”मूल्य को एक धारणा या मानक के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। यह सांस्कृतिक हो सकता है या केवल व्यक्तिगत और इसके द्वारा चीजों की एक-दूसरे के साथ तुलना की जाती है, इसे स्वीकृति या अस्वीकृति प्राप्त होती है, एक-दूसरे की तुलना में उचित-अनुचित, अच्छा या बुरा, ठीक अथवा गलत माना जाता है।”

रोबर्ट बीरस्टीड (Robert Bierstedt) के अनुसार-”जब किसी समाज के स्त्री-पुरुष अपने ही तरह के लोगों के साथ मिलते हैं, काम करते हैं या बात करते हैं, तब मूल्य ही उनके क्रमबद्ध सामाजिक संसर्ग को सम्भव बनाते हैं।”

राधाकमल मुकर्जी (Radhakamal Mukerjee) के अनुसार-”मूल्य समाज द्वारा मान्यता प्राप्त वे इच्छाएँ तथा लक्ष्य (Desires and goals) हैं जिनका आन्तरीकरण (Internalization) समाजीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से होता है और जो व्यक्तिपरक अधिमान्यताएँ (Subjective preferences), मानदण्ड (Standards) तथा अभिलाशाएँ बन जाती है।”

स्कैफर एवं लाम (Schaefer and Lamm) के अनुसार-”मूल्य वे सामूहिक धारणाएँ हैं जिन्हें किसी संस्कृति विशेष में अच्छा, वांछनीय तथा उचित अथवा बुरा, अवांछनीय तथा अनुचित माना जाता है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि मूल्य का एक सामाजिक आधार होता है और वे समाज द्वारा मान्यता प्राप्त लक्ष्यों की अभिव्यक्ति करते हैं। मूल्य हमारे व्यवहार का सामान्य तरीका है। मूल्यों द्वारा ही हम अच्छे या बुरे, सही या गलत में अन्तर करना सीखते हैं।

सामाजिक मूल्य के प्रकार

मूल्य विविध प्रकार के होते हैं तथा विद्वानों ने इनका वर्गीकरण विविध प्रकार से किया है। कुछ प्रमुख विद्वानों के वर्गीकरण इस प्रकार हैं-

(अ) इलियट एवं मैरिल ने अमेरिकी समाज के सन्दर्भ में तीन प्रकार के सामाजिक मूल्यों का उल्लेख किया है-

देशभक्ति या राष्ट्रीयता की भावना,

मानवीय स्नेह तथा

आर्थिक सफलता।

(ब) राधाकमल मुकर्जी के अनुसार सामाजिक मूल्य प्रत्यक्ष रूप से सामाजिक संगठन व सामाजिक व्यवस्था से सम्बन्धित होते हैं। उन्होंने चार प्रकार के मूल्यों का उल्लेख किया है-

वे मूल्य जो सामाजिक संगठन व व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए समाज में समानता व सामाजिक न्याय का प्रतिपादन करते हैं।

वे मूल्य जिनके आधार पर सामान्य सामाजिक जीवन के प्रतिमानों व आदर्शों का निर्धारण होता है। इन मूल्यों के अन्तर्गत एकता व उत्तरदायित्व की भावना आदि समाहित होती है।

वे मूल्य जिनका सम्बन्ध आदान-प्रदान व सहयोग आदि से होता है। इन मूल्यों के आधार पर आर्थिक जीवन की उन्नति होती है व आर्थिक जीवन सन्तुलित होता है।

वे मूल्य जो समाज में उच्चता लाने व नैतिकता को विकसित करने में सहायता प्रदान करते हैं।

Answered by saisankargantayat12
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Answer:

सामाजिक मूल्य व्यक्ति पर थोपे नहीं जाते, अपितु वह समाजीकरण द्वारा स्वयं इनका आन्तरीकरण कर लेता है और इस प्रकार वे उसके व्यक्तित्व के ही अंग बन जाते हैं। सामाजिक मूल्यों में संज्ञानात्मक, आदर्शात्मक तथा भौतिक तीनों प्रकार के तत्त्व निहित होते हैं। सामाजिक मूल्य ही नैतिकता-अनैतिकता अथवा उचित-अनुचित के मापदण्ड होते हैं।

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