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हम पंछी अन्मुक्त गगन के
म पछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएँगे.
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाएँगे।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाएँगे भूखे-प्यासे,
कहां भली है कटुक निबौरी
कनक-कटोरी की मैदा से।
स्वर्ण-शृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरु को फुन्गों पर के झूले।
ऐसे थे अरमान कि बढ़ते
नीले नभ की सीमा पान ।
लाल किरण-सी चौंच खोल
चुगते तारक-अनार के दाने
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