Hindi, asked by preshit284, 1 month ago

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Answered by surudevi5
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मेक इन इंडिया भारत सरकार द्वारा 25 सितम्बर 2014को देशी और विदेशी कंपनियों द्वारा भारत में ही वस्तुओं के निर्माण पर बल देने के लिए बनाया गया है। अर्थव्यस्था के विकास की रफ्तार बढ़ाने, औद्योगीकरण और उद्यमिता को बढ़ावा देने और रोजगार सृजन।भारत का निर्यात उसके आयात से कम होता है।बस इसी ट्रेंड को बदलने के लिए सरकार ने वस्तुओं और सेवाओं को देश में ही बनाने की मुहीम को शुरू करने के लिए Make in India यानी "भारत में बनाओ" नीति का प्रारम्भ (प्रारंभ) की थी।

इसके माध्यम से सरकार भारत में अधिक पूँँजी और तकनीकी निवेश पाना चाहती है। इस परियोजना के शुरू होने के बाद सरकार ने कई क्षेत्रों में लगी FDI (Foreign Direct Investment) की सीमा को बढ़ा दिया है लेकिन सामरिक महत्व के क्षेत्रों जैसे अंतरिक्ष में 74% ,रक्षा-49% और न्यूज मीडिया 26% को अभी भी पूरी तरह से विदेशी निवेश के लिए नही खोला है। वर्तमान में, चाय बागान में एफडीआई के लिए कोई प्रतिबन्ध (प्रतिबंध) नहीं है।

योजना से लाभ संपादित करें

1.भारत को एक विनिर्माण हब के रूप में विकसित करना:-'मेक इन इंडिया'के माध्यम से सरकार विभिन्न देशों की कंपनियों को भारत में कर छूट देकर अपना उद्योग भारत में ही लगाने के लिए प्रोत्साहित करेंगी जिससे की भारत का आयात बिल कम हो सके और देश में रोजगार का सृजन हो सके। 2.भारत के आर्थिक विकास को बढ़ावा देना:-इसके बढ़ोतरी होने से निर्यात और विनिर्माण में वृद्धि होगी। फलस्वरूप अर्थव्यवस्था में सुधार होगा और भारत को मौजूदा प्रौद्योगिकी का उपयोग करके वैश्विक निवेश के माध्यम से विनिर्माण के वैश्विक हब में बदल दिया जाएगा। विनिर्माण क्षेत्र अभी भारत के सकल घरेलू उत्पाद में सिर्फ 16% का योगदान देता है और सरकार का लक्ष्य इसे 2020 तक 25% करना है। 3.रोजगार के अधिक अवसर:-इसके माध्यम से सरकार नवाचार और उद्यमिता कौशल में निपुण युवाओं को मुद्रा योजना जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से वित्तीय सहायता देगी जिससे कि देश में नयी स्टार्ट उप कंपनियों का विकास हो सके जो कि आगे चलकर रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकेंगे।इसके तहत कुल 25 क्षेत्रों के विकास पर ध्यान दिया जायेगा जिससे लगभग दस मिलियन लोगों को रोजगार मिलने की उम्मीद है।इतने लोगों के रोजगार मिलने से वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ेगी जिससे अर्थव्यवस्था का चहुमुखी विकास हो सकेगा।

4. अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करने का मौका:- सरकार द्वारा 13 फरवरी 2016 को मुंबई में बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स में एमएमआरडीए ग्राउंड में आयोजित"मेक इन इंडिया वीक" के लंबे बहु क्षेत्रीय औद्योगिक में 68 देशों के 2500 अंतरराष्ट्रीय और 8000 घरेलू प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। DIPP के सचिव अमिताभ कांत ने कहा कि उन्हें 15.2 लाख करोड़ रुपये की निवेश प्रतिबद्धताओं (investment commitments ) और 1.5 लाख करोड़ रुपये के निवेश पूछताछ (investment inquiries) प्राप्त हुई थी। महाराष्ट्र को 8 लाख करोड़ रुपये (120 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का निवेश मिला। 5. भारत में रक्षा निवेश को बढ़ावा:-'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम के तहत अगस्त 2015 में,हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL)सुखोई Su-30MKI लड़ाकू विमान के 332 पार्ट्स की तकनीक को भारत को स्थानांतरित करने के लिए रूस के इरकुट कॉर्प (Irkut Corp) कम्पनी से वार्ता शुरू की। [2]

मेक इन इंडिया की शुरुआत होने के बाद निवेश के लिए भारत बहुराष्ट्रीय कंपनियों की पहली पसंद बन गया और वर्ष 2015 में भारत ने अमेरिका और चीन को पछाड़कर 63 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त किया। इसके बाद साल 2016 में पुरे विश्व में आर्थिक मंदी के बावजूद भारत ने करीबन 60 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त किया, जो विश्व के कई बड़े विकसित देशों से कहीं अधिक था।[3]

इलेक्ट्रॉनिक 2020 तक अमेरिका $ 400 अरब के लिए तेजी से वृद्धि की उम्मीद हार्डवेयर के लिए मांग के साथ, भारत संभावित एक इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण हब बनने की क्षमता है।सरकार ने एक स्तर के खेल मैदान बनाने और एक अनुकूल माहौल प्रदान करके 2020 तक इलेक्ट्रॉनिक्स का शुद्ध शून्य आयात को प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है

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