History, asked by kirtihooda07, 10 months ago

Please help me by giving this anuched in hindi​

Attachments:

Answers

Answered by kumarrakesh047090
0

Answer:

भारत   में   महिलाओं   की   स्थिति   ने   पिछली   कुछ   सदियों   में   कई   बड़े   बदलावों   का   सामना   किया   है। प्राचीन   काल में   पुरुषों   के   साथ   बराबरी   की   स्थिति   से   लेकर   मध्ययुगीन   काल के   निम्न   स्तरीय   जीवन   और   साथ   ही   कई   सुधारकों   द्वारा   समान   अधिकारों   को   बढ़ावा   दिए   जाने   तक ,  भारत   में   महिलाओं   का   इतिहास   काफी   गतिशील   रहा   है।   आधुनिक   भारत   में   महिलाएं   राष्ट्रपति ,  प्रधानमंत्री ,  लोक   सभा   अध्यक्ष ,  प्रतिपक्ष   की   नेता   आदि   जैसे   शीर्ष   पदों   पर   आसीन   हुई   हैं।

भारत   में   महिलाओं   की   स्थिति   सदैव   एक   समान   नही   रही   है।   इसमें   युगानुरूप   परिवर्तन   होते   रहे   हैं।   उनकी   स्थिति   में   वैदिक   युग   से   लेकर   आधुनिक   काल   तक   अनेक   उतार - चढ़ाव   आते   रहे   हैं   तथा   उनके   अधिकारों   में   तदनरूप   बदलाव   भी   होते   रहे   हैं।   वैदिक   युग   में   स्त्रियों   की   स्थिति   सुदृढ़   थी ,  परिवार   तथा   समाज   में   उन्हे   सम्मान   प्राप्त   था।   उनको   शिक्षा   का   अधिकार   प्राप्त   था।   सम्पत्ति   में   उनको   बराबरी   का   हक   था।   सभा   व   समितियों   में   से   स्वतंत्रतापूर्वक   भाग   लेती   थी   तथापि   ऋगवेद   में   कुछ   ऐसी   उक्तियां   भी   हैं   जो   महिलाओं   के   विरोध   में   दिखाई   पड़ती   हैं।   मैत्रयीसंहिता   में   स्त्री   को   झूठ   का   अवतार   कहा   गया   है।   ऋगवेद   का   कथन   है   कि   स्त्रियों   के   साथ   कोई   मित्रता   नही   है ,  उनके   हृदय   भेड़ियों   के   हृदय   हैं।   ऋगवेद   के   अन्य   कथन   में   स्त्रियों   को   दास   की   सेना   का   अस्त्र - शस्त्र   कहा   गया   है।   स्पष्ट   है   कि   वैदिक   काल   में   भी   कहीं   न   कहीं   महिलाये    नीची   दृष्टि   से   देखी   जाती   थीं।   फिर   भी   हिन्दू   जीवन   के   प्रत्येक   क्षेत्र   में   वह   समान   रूप   से   आदर   और   प्रतिष्ठित   थीं।   शिक्षा ,  धर्म ,  व्यक्तित्व   और   सामाजिक   विकास   में   उसका   महान   योगदान   था।   संस्थानिक   रूप   से   स्त्रियों   की   अवनति   उत्तर   वैदिककाल   से   शुरू   हुई।   उन   पर   अनेक   प्रकार   के   निर्योग्यताओं   का   आरोपण   कर   दिया   गया।   उनके   लिए   निन्दनीय   शब्दों   का   प्रयोग   होने   लगा।   उनकी   स्वतंत्रता   और   उन्मुक्तता   पर   अनेक   प्रकार   के   अंकुश   लगाये   जाने   लगे।   मध्यकाल   में   इनकी   स्थिति   और   भी   दयनीय   हो   गयी।   पर्दा   प्रथा   इस   सीमा   तक   बढ़   गई   कि   स्त्रियों   के   लिए   कठोर   एकान्त   नियम   बना   दिए   गये।   शिक्षण   की   सुविधा   पूर्णरूपेण   समाप्त   हो   गई।

नारी   के   सम्बन्ध   में   मनु   का   कथन   '' पितारक्षति   कौमारे .......... न   स्त्री   स्वातंन्न्यम्   अर्हति। ''  वहीं   पर   उनका   कथन   '' यत्र   नार्यस्तु   पूज्यन्ते   रमन्ते   तत्र   देवता '',  भी   दृष्टव्य   है   वस्तुतः   यह   समस्या   प्राचीनकाल   से   रही   है।   इसमें   धर्म ,  संस्कृति   साहित्य ,  परम्परा ,  रीतिरिवाज   और   शास्त्र   को   कारण   माना   गया   है।   भारतीय   दृष्टि   से   इस   पर   विचार   करने   की   की   जरूरत   है।   पश्चिम   की   दृष्टि   विचारणीय   नहीं।   भारतीय   सन्दर्भों   में   समस्या   के   समाधान   के   लिए   प्रयास   हो   तो   अच्छे   हुए   हैं।   भारतीय   मनीषा   समानाधिकार ,  समानता ,  प्रतियोगिता   की   बात   नहीं   करती   वह   सहयोगिता   सहधर्मिती ,  सहचारिता   की   बात   करती   है।   इसी   से   परस्पर   सन्तुलन   स्थापित   हो   सकता   है।

Explanation:

Similar questions
Math, 1 year ago