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गाँधी नगर जबलपुर
दिनांक : 28-6-2018
प्रिय रोहित,
तुम कैसे हो ? आशा है तुम सकुशल होगे। पहली बार तुम हमलोगों से अलग, हॉस्टल में रहने गए हो। सोच समझकर लोगों से दोस्ती करना। तुम जानते हो कि अगर पानी में एक बूँद दूध मिलाया जाये तो वह भी पानी बन जाता है और अगर दूध में एक बूँद पानी मिलाया जाये तो वह दूध बन जाता है। इसलिए हमारे जीवन में सत्संग अत्यंत आवश्यक है।
हवा के साथ दोस्ती करके पत्ता ऊँचे उड़ता है। अच्छे दोस्तों के साथ रहकर अच्छे विचार उत्पन्न होते हैं। अच्छे दोस्त व्यक्ति को सही राह दिखाते हैं और गलत रास्ते पर जाने से रोकते हैं। अच्छे दोस्त व्यक्ति को उच्च स्तर के जीवन की ओर ले जाते हैं।
आशा है तुम्हें अच्छे दोस्तों का संग मिले और तुम उनके साथ रहकर उन्नति करो। प्यार सहित
तुम्हारा भाई
now essay
कुछ पुस्तकें केवल जायका लेने के लिये होती हैं, कुछ निगलने के लिये होती है तथा कुछ थोड़ी सी चबाने तथा मन में उतारने के लिये होती हैं । मानवता का सही अध्ययन पुस्तकें ही प्रस्तुत करती हैं । पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र हैं आज भी और सदा के लिये भी ।
पुस्तकें हमारे लिए एक ऐसे संसार का सृजन करती हैं । जो इस वास्तविक संसार से अलग है । वास्तविक संसार दु:ख और कष्टों से भरा पड़ा है । स्वार्थ, द्वेष और शत्रुता की इस दुनिया में आनन्द और खुशी का काफी सीमा तक अभाव रहता है ।
कोई किसी से शत्रुता और द्वेष की भावना रखकर उसे हानि पहुँचा रहा है । कोई दूसरों के हितों का बलिदान करके अपने स्वार्थ की पूर्ति में लगा है । संवेदनशील पुरुष के लिए यह जीवन पीड़ाओं से परिपूर्ण है । सच्चे सुख के लिए हमें पुस्तकों के संसार में जाना होगा ।
पुस्तकों की दुनिया में केवल आनन्द ही आनन्द है । पुस्तकें न किसी से द्वेष करती है और न ही शत्रुता । पुस्तकों का अपना स्वार्थ क्या हो सकता है ? पुस्तकें अपने भीतर प्रसन्नता, सुख और आनन्द का संसार संजोए बैठी हैं ज्ञान वर्धन मानव की एक मूल प्रवृत्ति है ।
बच्चा जब नई चीजें सीखता है अथवा बोलता है तो बच्चे को असीम आनन्द मिलता है । घरवालों की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहता । बच्चा नई बात सीख कर विशेष खुशी का अनुभव करता है । भले ही वह बात छोटी ही क्यों न हो । वास्तविकता यह है कि ज्ञान वर्धन से आनन्द मिलता है ।
पुस्तकें ज्ञान का भण्डार है । पुस्तकें हमारी दुष्ट वृत्तियों से सुरक्षा करती हैं । इनमें लेखकों के जीवन भर के अनुभव भरे रहते हैं । यदि कोई परिश्रम करे और अनुभव प्राप्त करने के लिए जीवन लगा दे और फिर उस अनुभव को पुस्तक के थोड़े से पन्नों में दर्ज कर दे तो पाठकों के लिए इससे ज्यादा लाभ की बात क्या हो सकती है ।
पुस्तकों के अध्ययन से ज्ञान की वृद्धि होती है और ज्ञान वृद्धि से सुख मिलता है । ज्ञान वृद्धि से जो सुख मिलता है उसकी तुलना किसी भी सुख से नहीं की जा सकती । किन्तु हर पुस्तक अच्छी नहीं होती और सभी के लिये नहीं होती हैं ।
second essay
अपने देश के लिये सबसे जरुरी संपत्ति के रुप में बच्चों को संरक्षित किया जाता है जबकि इनके माता-पिता की गलत समझ और गरीबी की वजह से बच्चे देश की शक्ति बनने के बजाए देश की कमजोरी का कारण बन रहे है। बच्चों के कल्याण के लिये कल्याकारी समाज और सरकार की ओर से बहुत सारे जागरुकता अभियान चलाने के बावजूद गरीबी रेखा से नीचे के ज्यादातर बच्चे रोज बाल मजदूरी करने के लिये मजबूर होते है।
किसी भी राष्ट्र के लिये बच्चे नए फूल की शक्तिशाली खुशबू की तरह होते है जबकि कुछ लोग थोड़े से पैसों के लिये गैर-कानूनी तरीके से इन बच्चों को बाल मजदूरी के कुँएं में धकेल देते है साथ ही देश का भी भविष्य बिगाड़ देते है। ये लोग बच्चों और निर्दोष लोगों की नैतिकता से खिलवाड़ करते है। बाल मजदूरी से बच्चों को बचाने की जिम्मेदारी देश के हर नागरिक की है। ये एक सामाजिक समस्या है जो लंबे समय से चल रहा है और इसे जड़ से उखाड़ने की जरुरत है।
देश की आजादी के बाद, इसको जड़ से उखाड़ने के लिये कई सारे नियम-कानून बनाए गये लेकिन कोई भी प्रभावी साबित नहीं हुआ। इससे सीधे तौर पर बच्चों के मासूमियत का मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और बौद्धिक तरीके से विनाश हो रहा है। बच्चे प्रकृति की बनायी एक प्यारी कलाकृति है लेकिन ये बिल्कुल भी सही नहीं है कि कुछ बुरी परिस्थितियों की वजह से बिना सही उम्र में पहुँचे उन्हें इतना कठिन श्रम करना पड़े।
बाल मजदूरी एक वैशविक समस्या है जो विकासशील देशों में बेहद आम है। माता-पिता या गरीबी रेखा से नीचे के लोग अपने बच्चों की शिक्षा का खर्च वहन नहीं कर पाते है और जीवन-यापन के लिये भी जरुरी पैसा भी नहीं कमा पाते है। इसी वजह से वो अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बजाए कठिन श्रम में शामिल कर लेते है। वो मानते है कि बच्चों को स्कूल भेजना समय की बरबादी है और कम उम्र में पैसा कमाना परिवार के लिये अच्छा होता है। बाल मजदूरी के बुरे प्रभावों से गरीब के साथ-साथ अमीर लोगों को भी तुरंत अवगत कराने की जरुरत है। उन्हें हर तरह की संसाधनों की उपलब्ता करानी चाहिये जिसकी उन्हें कमी है। अमीरों को गरीबों की मदद करनी चाहिए जिससे उनके बच्चे सभी जरुरी चीजें अपने बचपन में पा सके। इसको जड़ से मिटाने के लिये सरकार को कड़े नियम-कानून बनाने चाहिए।
HOPE IT MAY HELP YOU
गाँधी नगर जबलपुर
दिनांक : 28-6-2018
प्रिय रोहित,
तुम कैसे हो ? आशा है तुम सकुशल होगे। पहली बार तुम हमलोगों से अलग, हॉस्टल में रहने गए हो। सोच समझकर लोगों से दोस्ती करना। तुम जानते हो कि अगर पानी में एक बूँद दूध मिलाया जाये तो वह भी पानी बन जाता है और अगर दूध में एक बूँद पानी मिलाया जाये तो वह दूध बन जाता है। इसलिए हमारे जीवन में सत्संग अत्यंत आवश्यक है।
हवा के साथ दोस्ती करके पत्ता ऊँचे उड़ता है। अच्छे दोस्तों के साथ रहकर अच्छे विचार उत्पन्न होते हैं। अच्छे दोस्त व्यक्ति को सही राह दिखाते हैं और गलत रास्ते पर जाने से रोकते हैं। अच्छे दोस्त व्यक्ति को उच्च स्तर के जीवन की ओर ले जाते हैं।
आशा है तुम्हें अच्छे दोस्तों का संग मिले और तुम उनके साथ रहकर उन्नति करो। प्यार सहित
तुम्हारा भाई
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कुछ पुस्तकें केवल जायका लेने के लिये होती हैं, कुछ निगलने के लिये होती है तथा कुछ थोड़ी सी चबाने तथा मन में उतारने के लिये होती हैं । मानवता का सही अध्ययन पुस्तकें ही प्रस्तुत करती हैं । पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र हैं आज भी और सदा के लिये भी ।
पुस्तकें हमारे लिए एक ऐसे संसार का सृजन करती हैं । जो इस वास्तविक संसार से अलग है । वास्तविक संसार दु:ख और कष्टों से भरा पड़ा है । स्वार्थ, द्वेष और शत्रुता की इस दुनिया में आनन्द और खुशी का काफी सीमा तक अभाव रहता है ।
कोई किसी से शत्रुता और द्वेष की भावना रखकर उसे हानि पहुँचा रहा है । कोई दूसरों के हितों का बलिदान करके अपने स्वार्थ की पूर्ति में लगा है । संवेदनशील पुरुष के लिए यह जीवन पीड़ाओं से परिपूर्ण है । सच्चे सुख के लिए हमें पुस्तकों के संसार में जाना होगा ।
पुस्तकों की दुनिया में केवल आनन्द ही आनन्द है । पुस्तकें न किसी से द्वेष करती है और न ही शत्रुता । पुस्तकों का अपना स्वार्थ क्या हो सकता है ? पुस्तकें अपने भीतर प्रसन्नता, सुख और आनन्द का संसार संजोए बैठी हैं ज्ञान वर्धन मानव की एक मूल प्रवृत्ति है ।
बच्चा जब नई चीजें सीखता है अथवा बोलता है तो बच्चे को असीम आनन्द मिलता है । घरवालों की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहता । बच्चा नई बात सीख कर विशेष खुशी का अनुभव करता है । भले ही वह बात छोटी ही क्यों न हो । वास्तविकता यह है कि ज्ञान वर्धन से आनन्द मिलता है ।
पुस्तकें ज्ञान का भण्डार है । पुस्तकें हमारी दुष्ट वृत्तियों से सुरक्षा करती हैं । इनमें लेखकों के जीवन भर के अनुभव भरे रहते हैं । यदि कोई परिश्रम करे और अनुभव प्राप्त करने के लिए जीवन लगा दे और फिर उस अनुभव को पुस्तक के थोड़े से पन्नों में दर्ज कर दे तो पाठकों के लिए इससे ज्यादा लाभ की बात क्या हो सकती है ।
पुस्तकों के अध्ययन से ज्ञान की वृद्धि होती है और ज्ञान वृद्धि से सुख मिलता है । ज्ञान वृद्धि से जो सुख मिलता है उसकी तुलना किसी भी सुख से नहीं की जा सकती । किन्तु हर पुस्तक अच्छी नहीं होती और सभी के लिये नहीं होती हैं ।
second essay
अपने देश के लिये सबसे जरुरी संपत्ति के रुप में बच्चों को संरक्षित किया जाता है जबकि इनके माता-पिता की गलत समझ और गरीबी की वजह से बच्चे देश की शक्ति बनने के बजाए देश की कमजोरी का कारण बन रहे है। बच्चों के कल्याण के लिये कल्याकारी समाज और सरकार की ओर से बहुत सारे जागरुकता अभियान चलाने के बावजूद गरीबी रेखा से नीचे के ज्यादातर बच्चे रोज बाल मजदूरी करने के लिये मजबूर होते है।
किसी भी राष्ट्र के लिये बच्चे नए फूल की शक्तिशाली खुशबू की तरह होते है जबकि कुछ लोग थोड़े से पैसों के लिये गैर-कानूनी तरीके से इन बच्चों को बाल मजदूरी के कुँएं में धकेल देते है साथ ही देश का भी भविष्य बिगाड़ देते है। ये लोग बच्चों और निर्दोष लोगों की नैतिकता से खिलवाड़ करते है। बाल मजदूरी से बच्चों को बचाने की जिम्मेदारी देश के हर नागरिक की है। ये एक सामाजिक समस्या है जो लंबे समय से चल रहा है और इसे जड़ से उखाड़ने की जरुरत है।
देश की आजादी के बाद, इसको जड़ से उखाड़ने के लिये कई सारे नियम-कानून बनाए गये लेकिन कोई भी प्रभावी साबित नहीं हुआ। इससे सीधे तौर पर बच्चों के मासूमियत का मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और बौद्धिक तरीके से विनाश हो रहा है। बच्चे प्रकृति की बनायी एक प्यारी कलाकृति है लेकिन ये बिल्कुल भी सही नहीं है कि कुछ बुरी परिस्थितियों की वजह से बिना सही उम्र में पहुँचे उन्हें इतना कठिन श्रम करना पड़े।
बाल मजदूरी एक वैशविक समस्या है जो विकासशील देशों में बेहद आम है। माता-पिता या गरीबी रेखा से नीचे के लोग अपने बच्चों की शिक्षा का खर्च वहन नहीं कर पाते है और जीवन-यापन के लिये भी जरुरी पैसा भी नहीं कमा पाते है। इसी वजह से वो अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बजाए कठिन श्रम में शामिल कर लेते है। वो मानते है कि बच्चों को स्कूल भेजना समय की बरबादी है और कम उम्र में पैसा कमाना परिवार के लिये अच्छा होता है। बाल मजदूरी के बुरे प्रभावों से गरीब के साथ-साथ अमीर लोगों को भी तुरंत अवगत कराने की जरुरत है। उन्हें हर तरह की संसाधनों की उपलब्ता करानी चाहिये जिसकी उन्हें कमी है। अमीरों को गरीबों की मदद करनी चाहिए जिससे उनके बच्चे सभी जरुरी चीजें अपने बचपन में पा सके। इसको जड़ से मिटाने के लिये सरकार को कड़े नियम-कानून बनाने चाहिए।
HOPE IT MAY HELP YOU
divya245653:
of course
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mai diyu hu .... I'd change ki hai
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