India Languages, asked by ujjawal3536, 1 year ago

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Answered by Anonymous
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स्वामी दयानद उस समय फरुखाबाद में ठहरे हुए थे |एक दिन एक व्यक्ति उनके लिए थाली में दाल – भात लेकर आया | वह व्यक्ति बहुत ही गरीब घर से निम्न

जाति का मेहनत मजदूरी करने वाला व्यक्ति था |वह अपने परिवार का पेट बहुत मेहनत करने के बाद ही भर पता था |उच्च कुल का न होने के कारण भी स्वामी जी ने उसके हाथ का अन्न जल ग्रहण किया तो उस समय वहां उपस्थित ब्राह्मणों को बहुत बुरा लगा |

नाराज होकर वे स्वामी जी से कहने लगे ,आपको इस व्यक्ति का भोजन स्वीकार नहीं करना चाहिये था |इस हीन व्यक्ति का भोजन स्वीकार कर आप भ्रष्ट हो गए हैं |इस पर स्वामी दयानंद हंसकर कहने लगे ,क्या आप जानते हैं कि अन्न जल दूषित कैसे होता हैं ?

जब वे ब्राह्मण उनके प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाए तो वे खुद उन्हें बताने लगे , अन्न -जल दो प्रकार से दूषित होता हैं| एक तो जब अन्न दूसरे को दुःख देकर प्राप्त किया गया हो | दूसरा तब जब अन्न में कोई मलिन या अभक्ष्य वस्तु गिर जाए।

इस व्यक्ति का अन्न इन दोनों श्रेणी में नहीं आता | इस व्यक्ति का अन्न मेहनत से कमाए पैसों का हैं |तब ये दूषित कैसे हुआ और इसका सेवन कर में कैसे भ्रष्ट कैसे हुआ ? वास्तिविकता यह हैं कि हमारा मन मलिन होता हैं और इस कारण हम दूसरों की चीजों को मलिन मानने लगते हैं जबकि इस तरह का आचरण कर हम और भी मलिन हो जाते हैं | इसलिए हमें एक दूसरे के प्रति भेदभाव को मिटाकर अपने मन को दूषित होने से बचाना चाहिये |इसी में हम सबकी भलाई व कल्याण हैं |

Answered by khushirai3
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