please help me in sanskrit chitra varnan of haridwar
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Answer:
vayakya
ज्ञातस्य कथनमनुवादः - ज्ञात का (पुनः) कथन अनुवाद है। (जैमिनिन्यायमाला)
प्राप्तस्य पुनः कथनेऽनुवादः - पूर्वकथित का पुनः कथन अनुवाद है। (शब्दार्थचिन्तामणिः)
आवृत्तिनुवादो वा [4]- पुनरावर्तन ही अनुवाद है। (भर्तृहरि)
लेखक होना सरल है, किन्तु अनुवादक होना अत्यन्त कठिन है। - मामा वरेरकर
प्रत्येक कृति अनुवाद योग्य है, परन्तु प्रत्येक कृति का अच्छा अनुवाद नहीं किया जा सकता। -खुशवन्त सिंह
अनुवाद, प्रकाश के आने के लिए वातायन खोल देता है; वह छिलके को छोड़ देता है जिससे हम गूदे का स्वाद ले सकें। - बाइबिल
Explanation:
anuvad
बीसवीं सदी को अनुवाद का युग कहा गया है। यद्यपि अनुवाद सबसे प्राचीन व्यवसाय या व्यवसायों में से एक कहलाता है तथापि उसके जो महत्त्व बीसवीं सदी में प्राप्त हुआ वह उससे पहले उसे नहीं मिला ऐसा माना जाता है। इसका मुख्य कारण माना गया है कि बीसवीं शताब्दी में ही भाषासम्पर्क अर्थात् भिन्न भाषाभाषी समुदायों में सम्पर्क की स्थिति प्रमुख रूप से आरम्भ हुई। इसके मूल कारण आर्थिक और राजनीतिक माने जाते हैं। फलस्वरूप, विश्व का आर्थिक-राजनीतिक मानचित्र परिवर्तित होने लगा। वर्तमान यग में अधिकतर राष्ट्रों में यदि एक भाषा प्रधान है तो एक या अधिक भाषाएँ गौण पद पर दिखाई देती हैं। दूसरे शब्दों में, एक ही राजनीतिक-प्रशासनिक इकाई की सीमा के अन्तर्गत भाषायी बहुसंख्यक भी रहते हैं और भाषायी अल्पसंख्यक भी। लोकतन्त्र में सब लोगों का प्रशासन में समान रूप से भाग लेने का अधिकार तभी सार्थक माना जाता है, जब उनके साथ उनकी भाषा के माध्यम से सम्पर्क किया जाए। इससे बहुभाषिकता की स्थिति उत्पन्न होती है और उसके संरक्षण की प्रक्रिया में अनुवाद कार्य का आश्रय लेना अनिवार्य हो जाता है। इसके अतिरिक्त अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न राष्ट्रों के बीच राजनीतिक, आर्थिक, वैज्ञानिक और प्रौद्योगिक, तथा साहित्यिक और सांस्कृतिक स्तर पर बढ़ते हुए आदान-प्रदान के कारण अनुवाद कार्य की अनिवार्यता और महत्ता की नई चेतना प्रबल रूप से विकसित होती हुई दिखती है। अतः अनुवाद एक व्यापक तथा बहुधा अनिवार्य और तर्कसंगत स्थिति मानी जाती है। अनुवाद के महत्त्व को दो भिन्न, परन्तु सम्बन्धित सन्दर्भो में अधिक स्पष्टता से समझया जाता है : (क) सामाजिक एवं व्यावहारिक महत्त्व, (ख) शैक्षणिक एवं ज्ञानात्मक महत्त्व।