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उत्तर-(क) सत्संग में लीन रहने वाला मनुष्य अपने आप को परमात्मा में लीन समझता है इसलिए उसे दैवी दुखों का कोई भय अनुभव नहीं होता।
(ख) दुख के समय मनुष्य को महापुरुषों के उपदेश सुख-शांति प्रदान करते हैं जिनसे उसे धैर्य प्राप्त होता है। सत्संगति से ही उसके मन में दूसरों के प्रति क्षमा और उदारता आ जाती है। परिणामस्वरूप वह धैर्य प्राप्त करता है ।।
(ग) क्षमा का अर्थ है दूसरों की गलतियों का बुरा न मानना तथा उनके प्रति सद्भावना में कमी न आने देना।
(घ) लेखक दुर्जनों से दूर इसलिए रहना चाहता है क्योंकि उनके संग रहकर गुणी व्यक्ति भी बिगड़ जाता है। एक दोहे में स्पष्ट कहा गया है कि काजल की कोठरी में रहने वालों पर काजल का असर अवश्यमेव होता है। ह अपनी कुसंगति से बच नहीं पाता।
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