Hindi, asked by avitiya00, 8 hours ago

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Answered by ridhimasatolia
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जी हाँ ! मै एक कलम बोल रहा हूँ । युग-युग से लिखते रहने के बाद आज पहली बार मैंने जबान खोली है। मुझसे लिखी गई कहानियाँ जितनी दिलचस्प होती हैं, उनसे भी अधिक दिलचस्प मेरी आत्मकथा है। आपके हाथ में मेरा जो आधुनिक रूप है, उसके विका

Explanation:

जन्म

मेरा जन्म शिक्षित मनुष्य की लिखने की प्रबल आकांक्षा से हुआ है। मनुष्य अपनी भावनाओं, कल्पनाओं और विचारों को वाणी से प्रकट करके ही संतुष्ट न हुआ। स्वयं मरणशील होकर भी उसने अपने विचारों, भावनाओं, अनुभवों को अमर बनाने का संकल्प किया। उसने भाषा की लिपि बनाई और लिखने के लिए भोजपत्र के कागज की भी खोज कर ली, पर वह लिखता कैसे? अचानक उसके मस्तिष्क में प्रकाश की रेखा खिंच गई। उसने बाँस की एक पतली टहनी तोड़ ली और चाकू से उसके एक सिरे को नोकदार बनाया। काजल से मनुष्य ने स्याही भी बना ली । टहनी के नोकदार सिरे को स्याही में डुबोकर उसने भोजपत्र पर लिखना शुरू किया । बस उस टहनी के रूप में ही संसार में मेरा जन्म हुआ। लिखने का साधन होने के कारण मेरा नाम ही लेखनी पड़ गया।

कार्य

सदियाँ गुजर गई हैं, पर मेरा कार्य अबाध गति से जारी रहा है। संसार की सभ्यता, संस्कृति और विकास की कहानी मेरी नोक से ही निकली है । मैंने ऋषियों द्वारा सुने गए वेदों को लिपिबद्ध किया है। वाल्मीकि ने रामायण और महर्षि व्यास ने महाभारत मुझसे ही लिखा है। उपनिषदों के विचार और पुराणों के आख्यान मैंने ही साकार किए हैं। भवभूति, कालिदास, तुलसीदास, सूरदास, शेक्सपियर और रवींद्रनाथ जैसी प्रतिभाओं को मैंने ही अमर बनाया है। साहित्य, दर्शन, कला, विज्ञान के विकास में मेरे योगदान को कौन भुला सकता है? ग्रंथों के छपने के पहले उनकी पांडुलिपियाँ मेरे ही सहयोग से लिखी जाती हैं। संसार की सभी भाषाओं को समृद्ध करने में मैंने दिन-रात एक कर दिए हैं।

शक्ति

आकार में छोटी और शरीर से दुबली-पतली होने पर भी मैं शक्ति में किसी हथियार से कम नहीं हूँ । दुधारी तलवार की धार मेरी तीक्ष्णता के आगे पानी भरती है। मेरी आग के सामने बारूद को भी सिर झुकाना पड़ता है। संसार की महान क्रांतियों के पीछे मेरा ही हाथ रहा है। ज्ञान-विज्ञान का भंडार भरते रहना ही मेरे जीवन का उद्देश्य रहा है। गीता, बाइबल, कुरान के रूप में मैंने ही घर-घर ईश्वर का संदेश पहुँचाया है। मेरे बल पर ही दुनिया अज्ञान तथा निरक्षरता के अंधेरे से निकलकर ज्ञान और साक्षरता के उजाले में पहुंची है। मुझे दुख है कि कुछ लेखकों ने अश्लील साहित्य लिखने में मेरा दुरुपयोग किया है।

आत्मसंतोष

जब तक मानवजाति है, तब तक मैं भी हूँ । मैं अपनी उम्र नहीं गिनती, सरस्वती की सेवा में समर्पित होनेवाले फूल गिनती हूँ । आधुनिक विज्ञान ने मुझे नए-नए आकार और रंग दिए हैं । मैं अपने हरएक रूप में सरस्वती की सेवा में रत रहना चाहती हूँ।

Answered by krishtiwari2011070
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Answer:

stanja1

! मै एक कलम बोल रहा हूँ । युग-युग से लिखते रहने के बाद आज पहली बार मैंने जबान खोली है। मुझसे लिखी गई कहानियाँ जितनी दिलचस्प होती हैं, उनसे भी अधिक दिलचस्प मेरी आत्मकथा है। आपके हाथ में मेरा जो आधुनिक रूप है, उसके विकास का अपना अलग ही इतिहास है।

stanja2

मेरा जन्म शिक्षित मनुष्य की लिखने की प्रबल आकांक्षा से हुआ है। मनुष्य अपनी भावनाओं, कल्पनाओं और विचारों को वाणी से प्रकट करके ही संतुष्ट न हुआ। स्वयं मरणशील होकर भी उसने अपने विचारों, भावनाओं, अनुभवों को अमर बनाने का संकल्प किया। उसने भाषा की लिपि बनाई और लिखने के लिए भोजपत्र के कागज की भी खोज कर ली, पर वह लिखता कैसे? अचानक उसके मस्तिष्क में प्रकाश की रेखा खिंच गई। उसने बाँस की एक पतली टहनी तोड़ ली और चाकू से उसके एक सिरे को नोकदार बनाया। काजल से मनुष्य ने स्याही भी बना ली । टहनी के नोकदार सिरे को स्याही में डुबोकर उसने भोजपत्र पर लिखना शुरू किया । बस उस टहनी के रूप में ही संसार में मेरा जन्म हुआ। लिखने का साधन होने के कारण मेरा नाम ही लेखनी पड़ गया।

सदियाँ गुजर गई हैं, पर मेरा कार्य अबाध गति से जारी रहा है। संसार की सभ्यता, संस्कृति और विकास की कहानी मेरी नोक से ही निकली है । मैंने ऋषियों द्वारा सुने गए वेदों को लिपिबद्ध किया है। वाल्मीकि ने रामायण और महर्षि व्यास ने महाभारत मुझसे ही लिखा है। उपनिषदों के विचार और पुराणों के आख्यान मैंने ही साकार किए हैं। भवभूति, कालिदास, तुलसीदास, सूरदास, शेक्सपियर और रवींद्रनाथ जैसी प्रतिभाओं को मैंने ही अमर बनाया है।

आकार में छोटी और शरीर से दुबली-पतली होने पर भी मैं शक्ति में किसी हथियार से कम नहीं हूँ । दुधारी तलवार की धार मेरी तीक्ष्णता के आगे पानी भरती है। मेरी आग के सामने बारूद को भी सिर झुकाना पड़ता है। संसार की महान क्रांतियों के पीछे मेरा ही हाथ रहा है। ज्ञान-विज्ञान का भंडार भरते रहना ही मेरे जीवन का उद्देश्य रहा है। गीता, बाइबल, कुरान के रूप में मैंने ही घर-घर ईश्वर का संदेश पहुँचाया है।

जब तक मानवजाति है, तब तक मैं भी हूँ । मैं अपनी उम्र नहीं गिनती, सरस्वती की सेवा में समर्पित होनेवाले फूल गिनती हूँ । आधुनिक विज्ञान ने मुझे नए-नए आकार और रंग दिए हैं । मैं अपने हरएक रूप में सरस्वती की सेवा में रत रहना चाहती हूँ।

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