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रस की परिभाषा
रस के अंग
रस के भेद
सभी रसों के एक एक example
सभी रसो के स्थायी भाव
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⚠️रस की परिभाषा ...⚠️
श्रव्य काव्य के पठन अथवा श्रवण एवं दृश्य काव्य के दर्शन तथा श्रवण में जो अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है, वही काव्य में रस कहलाता है।
रस से जिस भाव की अनुभूति होती है वह रस का स्थायी भाव होता है। रस, छंद और अलंकार - काव्य रचना के आवश्यक अवयव हैं।
⚠️रस के अंग⚠️
स्थायिभावों की संख्या सामान्यतः नौ मानी जाती है- रति, हास, शोक, उत्साह, क्रोध, भय, जुगुप्सा, विस्मय और निर्वेद। ये क्रमश: रसों के रूप में निष्पन्न होते हैं- श्रृंगार, हास्य, करूण, वीर, रौद्र, भयानक, वीभत्स, अद्भुत और शान्त। इनके अतिरिक्त एक अन्य रस वत्सल भी माना जाता है जिसका स्थायीभाव 'वात्सल्य' है।
⚠️रस के भेद⚠️
मुख्य रूप से रस के नौ भेद होते हैं. वैसे तो हिंदी में 9 ही रस होते हैं लेकिन सूरदास जी ने एक रस और दिया है जो कि 10 रस माना जाता है.
(i) आलम्बन-विभाव
(ii) उद्दीपन-विभाव।
(i) आलम्बन-विभाव
जिस व्यक्ति अथवा वस्तु के कारण कोई स्थायी भाव जागृत होता है.
आलम्बन विभाव कहते हैं।
इसके दो अंग होते हैं-
(क) आश्रय-जिस व्यक्ति के हृदय में स्थायी भाव जागृत होता है, उसे आश्रय कहा जाता है।
(ख) विषय-जिस वस्तु या व्यक्ति के कारण आश्रय के हृदय में रति आदि स्थायी भाव जागृत होते हैं, उसे ‘विषय’ कहते हैं।
जैसे –
लक्ष्मण-परशुराम-संवाद’ में लक्ष्मण के प्रति परशुराम जी के हृदय में क्रोध नाम का स्थायी भावे जागृत होता है। अतः लक्ष्मण आलम्बन विभाव है। इनमें ‘परशुराम’ आश्रय है और ‘लक्ष्मण’ विषय है।
(ii) उद्दीपन-विभाव
जिस व्यक्ति, दृश्य अथवा आलम्बन की चेष्टा से पूर्व जागृत स्थायी भाव और उद्दीप्त (तीव्र) हो, उसे उद्दीपन-विभाव कहते हैं।
जैसे– पुष्प वाटिका में सीता को देखकर राम के रति भाव का वर्णन ।
राम आश्रय, सीता ‘आलम्बन, रति ‘स्थायीं भाव तथा चारों और खिले फूल,सुगंधित वायु, चाँदनी आदि उद़दीपन विभाव होंगे।
(2) अनुभाव
आलम्बन तथा उद्दीपत के द्वारा आश्रय के हृदय में स्थायी भाव के जागृत तथा उद्दीप्त होने पर आश्रय में जो चेष्टाये होती है, उन्हें अनुभाव कहते हैं।
जैसे –
उत्साह में शत्रु को ललकारना, क्रोध में ऑखे लाल होना आदि।
अनुभाव के प्रकार | अनुभाव के भेद
ये चार प्रकार के होते हैं-
(i) सात्विक अनुभाव
(ii) कायिक अनुभाव
(iii) मानसिक अनुभाव
(iv) आहार्य अनुभाव
(i) सात्विक-अनुभाव
जो अनुभाव बिना आश्रय के प्रयास के आप से आप होते हैं, वे सात्विक अनुभाव कहलाते हैं।
ये आठ होते हैं-
(1)स्तम्भ (अंगरों की गति रुक जाना)
(2) स्वेद ( पसीना आ जाना)
(3) रोमांच (रॉंगटे खड़े हो जाना)
(4) स्वर भंग
(5) कम्प
(6) वैवंर्य (रग फीका पड़ जाना)
(7) अश्रु
(8) प्रलय (सुध-बुध खो जाना)
(ii) कायिक अनुभाव
अनुभाव-इनका सम्बन्ध शरीर से होता है। शरीर जो चेष्टाएँ आश्रय की इच्छानुसार जान-बूझ कर प्रयत्नपूर्वक करता है, उन्हें कायिक अनुभाव कहते हैं।
जैसे –
क्रोध में कठोर शब्द कहना, उत्साह में पैर पटकना आदि।
(iii) मानसिक अनुभाव
मन में हर्ष,विषाद आदि भावों के उद्वेलन से जो भाव प्रदर्शित होते किये जाते हैं,मानसिक अनुभाव कहते हैं।
(iv) आहार्य अनुभाव
मन के भावों के अनुसार अलग अलग प्रकार की कृत्रिम वेश रचना को आहार्य अनुभाव कहते हैं