India Languages, asked by yogendarsingh0pdr8tw, 1 year ago

please send me some sanskrit slok and their hindi translation also

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Answered by divyagupta2
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HIII DEAR ❤❤❤❤❤

SANSKRIT SLOK..=====
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○●अधनस्य कुतो मित्रम् , अमित्रस्य कुतः सुखम् ||

अर्थात् : आलसी को विद्या कहाँ अनपढ़ / मूर्ख को धन कहाँ निर्धन को मित्र कहाँ और अमित्र को सुख कहाँ |

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○●नास्त्युद- यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ||

अर्थात् : मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |
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○●दानेन पाणिर्न तु कंकणेन ,

परोपकारैर- न तु चन्दनेन ||

अर्थात् :कानों की शोभा कुण्डलों से नहीं अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है | हाथ दान करने से सुशोभित होते हैं न कि कंकणों से | दयालु / सज्जन व्यक्तियों- का शरीर चन्दन से नहीं बल्कि दूसरों का हित करने से शोभा पाता है |
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○●वृणते हि विमृश्यकार- िणं गुणलुब्धाः- स्वयमेव संपदः ||



अर्थात् : अचानक ( आवेश में आ कर बिना सोचे समझे ) कोई कार्य नहीं करना चाहिए कयोंकि विवेकशून्य- ता सबसे बड़ी विपत्तियों- का घर होती है | ( इसके विपरीत ) जो व्यक्ति सोच –समझकर कार्य करता है ; गुणों से आकृष्ट होने वाली माँ लक्ष्मी स्वयं ही उसका चुनाव कर लेती है |

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