Please send the summary ईदगाह
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जैसे ही आज रमजान खत्म हुआ, 30 दिनों के बाद आज ईद आया सुबह से ही कितना मनोहक सुंदर बेला है चारो तरफ सूर्य की किरणे भी मानो आज ईद की ख़ुशी में धरती को सोने जैसी सुंदर और मनोहर बना रही है चारो तरफ पक्षियों के आवाज़ मानो सभी एक दुसरे को बधाई दे रहे हो पूरे गाव में सुबह से आज ख़ुशी की हलचल दिखाई दे रही है हर कोई बच्चा, बुढा, जवान, महिला सभी ईदगाह जाने की तैयारी कर रहे है सभी बच्चे अपने पैसे बार बार गिनकर खुश हो रहे है आखिर खुश भी क्यू न हो किसी के पास 10 पैसे तो किसी के पास 20 पैसे लेकिन इन पैसो से मानो उनके सपनो के पंख लग आये हो आखिर आज ही तो वो मौका है जब ईदगाह के मेले में सभी अपने मनपसंद से जो खिलौने, मिठाईया और न जाने क्या क्या खरीदने है जो सोचकर ही सभी अपने मन में खुश हो रहे है
पूरे गाव के बीचोबीच एक घर में हामिद भी अपने 3 पैसे के साथ बहुत ही खुश है भले ही उसके पास नये कपड़े नही है पैरो में जुते नही है लेकिन फिर भी वह खुश है की उसे आज मेले देखने जाना है
हामिद जो की शरीर से बहुत ही दुबला पतला लड़का था जिसकी पिता की मृत्यु हैजे से हो गयी थी जबकि उसकी अम्मी भी न जाने किस पीलिये की रोग की वजह से मर गयी थी और इस तरह हामिद के लालन पालन का पूरा भार उसकी दादी पर आ गया था जिसकी वजह से उसकी दादी कमरे के एक कोने में बैठकर सुबह से ही रो रही थी और सोच रही थी की आज अगर उसका बेटा जिन्दा होता तो क्या घर में सेवईया नही बनती या उसके पोते हामिद को वह मेले नही दिखाने ले जाता, यही सब बाते थी जो कही न कही हामिद की दादी को अंदर ही अंदर दिल पर बैठती जा रही थी आखिर वह चाहकर भी तो कुछ नही कर सकती थी क्यूकी घर में खाने के लिए एक दाना भी तो न था.
लेकिन इतने में हामिद अपने दादी के पास आता है और कहता है की दादी आप डरना नही मै जल्द ही मेले से आ जाऊंगा और हा मै ही सबसे पहले मेले से आऊंगा, लेकिन उसकी दादी तो इसी चिंता में डूबी हुई थी की आखिर गाव के सब बच्चे अपने माँ बाप के साथ मेला देखने ईदगाह जा रहे है वह इतनी बूढी भी तो हो चूकी है की इतने दूर पैदल भी नही जा सकती है किसी तरह वह अपने पास रखे 3 पैसे हामिद को देते हुए कहती है की बेटा ये ले पैसे और ध्यान से जाना और फिर हामिद गाव के बच्चो के साथ मेला देखने निकल पड़ता है और रास्ते में नंगे पैर काटो की परवाह किये बिना गाव के बगीचे, खेतो को पार करते हुए आख़िरकार मेले के नजदीक पहुच जाता है
और जैसे ही मेला शुरू होता है दूर से ही ईदगाह नजर आने लगता है इसके बाद तो मानो सबके पैरो में पंख लग गये हो फिर सभी एक साथ नमाज पढ़ते है इसके बाद सभी मेले में घुमने चले आते है कोई मिठाईया, तो कोई खिलौने तो कोई घर के सामान खरीद रहा है हर कोई प्रसन्न है लेकिन हामिद के पास तो सिर्फ 3 पैसे ही है वह चाहकर भी तो कुछ नही खरीद सकता था
लेकिन वह मिठाईयो को गौर से देखता उसके मुह में पानी आ जाता लेकिन खुद को रोकते हुए वह आगे बढ़ जाता और जैसे ही खिलौनों की दुकान पर आता तो पहले ललचाती नजरो से उन्हें देखता लेकी अपने पैसो को देखकर खुद को दिलासा देता की अरे खिलौने तो भी मिट्टी के ही तो बने है इनका क्या करना एक दिन टूट ही जायेगा वह चाहकर अपने मन को समेट लेता
इसी तरह सब मेले में सभी कुछ न कुछ खरीद रहे थे तो मै भी कुछ न खरीद लू इसी सोच में आगे बढ़ता जा रहा था की उसे एक लोहे की दुकान दिखी जिसमे चिमटा भी बिक रहा था जिसे देखकर हामिद के मन में अचानक ख्याल आया अरे मेरे दादी के पास त चिमटा भी नही है जिससे उनका हाथ बार बार जल जाता है खिलौने से अच्छा यही है की मै इस चिमटे को ही खरीद लू जिसे देखकर दादी भी प्रसन्न होंगी
और फिर दुकान वाले के पास जाकर उसका दाम पूछने लगा पहले हामिद को अकेला देखकर दुकानवाले ने मना कर दिया की बेटा यह तुम्हारे काम की चीज नही है तो हामिद बोला फिर इसे क्यू लाये हो जब बेचना ही नही है तो दुकान वाला बोला 6 पैसे का है खरीदना है तो बताओ और तुम्हे 5 पैसे से कम में नही दूंगा लेना है तो बताओ
तो हामिद भी हिम्मत करते हुए बोला अगर 3 पैसे में दे सकते हो तो बताओ दुकानदार हामिद को एक टकटकी नजरो से देखता रह गया और बोला ठीक है लाओ 3 पैसे.
इसके बाद हामिद ने 3 पैसे देकर चिमटा लेकर पाने गर्दन पर रखते हुए आगे बढ़ गया फिर आने साथियों को दिखातेहुए उनके साथ घर चल दिया, घर पहुचते ही पहले से इन्तजार कर रही उसकी दादी उसे चिमटे के साथ आते हुए देखती है तो तुरंत बोल पड़ती है ये क्या लाया बेटा, पूरे दिन में कुछ भी नही खाया, इसका क्या काम, कुछ खा लेता.
लेकिन हामिद प्यार से अपने दादी से कहता है की दादी आप रोज जब रोटिया बनाती हो तो आपका हाथ जल जाता है जिसे मुझे देखा नही जाता है इसलिए आपके हाथ न जले सो चिमटा ले आया
यह बात सुनकर हामिद की दादी के आखो में खुशी के आशु आ गये और तुरंत अपने पोते को गले लगा लिया.
कहानी से शिक्षा
इस कहानी से हमे यही शिक्षा मिलती है की बच्चे वास्तविक रूप से मन के सच्चे होते है जिनके अंदर ईश्वर का वास होता है वे चाहकर भी किसी का दुःख नही देख सकते है और चाहे दुखो का कितना भी बड़ा पहाड़ क्यू न टूट पड़ा हो हमेसा आशावान होते है और आने वाले भविष्य की कल्पनाओ में खुद को हमेशा इस तरह घुल मिल जाते है की वे सिर्फ सुखो की परवाह करते है चाहे उसके बदले रास्तो में कितने कांटे ही क्यू न आये
पूरे गाव के बीचोबीच एक घर में हामिद भी अपने 3 पैसे के साथ बहुत ही खुश है भले ही उसके पास नये कपड़े नही है पैरो में जुते नही है लेकिन फिर भी वह खुश है की उसे आज मेले देखने जाना है
हामिद जो की शरीर से बहुत ही दुबला पतला लड़का था जिसकी पिता की मृत्यु हैजे से हो गयी थी जबकि उसकी अम्मी भी न जाने किस पीलिये की रोग की वजह से मर गयी थी और इस तरह हामिद के लालन पालन का पूरा भार उसकी दादी पर आ गया था जिसकी वजह से उसकी दादी कमरे के एक कोने में बैठकर सुबह से ही रो रही थी और सोच रही थी की आज अगर उसका बेटा जिन्दा होता तो क्या घर में सेवईया नही बनती या उसके पोते हामिद को वह मेले नही दिखाने ले जाता, यही सब बाते थी जो कही न कही हामिद की दादी को अंदर ही अंदर दिल पर बैठती जा रही थी आखिर वह चाहकर भी तो कुछ नही कर सकती थी क्यूकी घर में खाने के लिए एक दाना भी तो न था.
लेकिन इतने में हामिद अपने दादी के पास आता है और कहता है की दादी आप डरना नही मै जल्द ही मेले से आ जाऊंगा और हा मै ही सबसे पहले मेले से आऊंगा, लेकिन उसकी दादी तो इसी चिंता में डूबी हुई थी की आखिर गाव के सब बच्चे अपने माँ बाप के साथ मेला देखने ईदगाह जा रहे है वह इतनी बूढी भी तो हो चूकी है की इतने दूर पैदल भी नही जा सकती है किसी तरह वह अपने पास रखे 3 पैसे हामिद को देते हुए कहती है की बेटा ये ले पैसे और ध्यान से जाना और फिर हामिद गाव के बच्चो के साथ मेला देखने निकल पड़ता है और रास्ते में नंगे पैर काटो की परवाह किये बिना गाव के बगीचे, खेतो को पार करते हुए आख़िरकार मेले के नजदीक पहुच जाता है
और जैसे ही मेला शुरू होता है दूर से ही ईदगाह नजर आने लगता है इसके बाद तो मानो सबके पैरो में पंख लग गये हो फिर सभी एक साथ नमाज पढ़ते है इसके बाद सभी मेले में घुमने चले आते है कोई मिठाईया, तो कोई खिलौने तो कोई घर के सामान खरीद रहा है हर कोई प्रसन्न है लेकिन हामिद के पास तो सिर्फ 3 पैसे ही है वह चाहकर भी तो कुछ नही खरीद सकता था
लेकिन वह मिठाईयो को गौर से देखता उसके मुह में पानी आ जाता लेकिन खुद को रोकते हुए वह आगे बढ़ जाता और जैसे ही खिलौनों की दुकान पर आता तो पहले ललचाती नजरो से उन्हें देखता लेकी अपने पैसो को देखकर खुद को दिलासा देता की अरे खिलौने तो भी मिट्टी के ही तो बने है इनका क्या करना एक दिन टूट ही जायेगा वह चाहकर अपने मन को समेट लेता
इसी तरह सब मेले में सभी कुछ न कुछ खरीद रहे थे तो मै भी कुछ न खरीद लू इसी सोच में आगे बढ़ता जा रहा था की उसे एक लोहे की दुकान दिखी जिसमे चिमटा भी बिक रहा था जिसे देखकर हामिद के मन में अचानक ख्याल आया अरे मेरे दादी के पास त चिमटा भी नही है जिससे उनका हाथ बार बार जल जाता है खिलौने से अच्छा यही है की मै इस चिमटे को ही खरीद लू जिसे देखकर दादी भी प्रसन्न होंगी
और फिर दुकान वाले के पास जाकर उसका दाम पूछने लगा पहले हामिद को अकेला देखकर दुकानवाले ने मना कर दिया की बेटा यह तुम्हारे काम की चीज नही है तो हामिद बोला फिर इसे क्यू लाये हो जब बेचना ही नही है तो दुकान वाला बोला 6 पैसे का है खरीदना है तो बताओ और तुम्हे 5 पैसे से कम में नही दूंगा लेना है तो बताओ
तो हामिद भी हिम्मत करते हुए बोला अगर 3 पैसे में दे सकते हो तो बताओ दुकानदार हामिद को एक टकटकी नजरो से देखता रह गया और बोला ठीक है लाओ 3 पैसे.
इसके बाद हामिद ने 3 पैसे देकर चिमटा लेकर पाने गर्दन पर रखते हुए आगे बढ़ गया फिर आने साथियों को दिखातेहुए उनके साथ घर चल दिया, घर पहुचते ही पहले से इन्तजार कर रही उसकी दादी उसे चिमटे के साथ आते हुए देखती है तो तुरंत बोल पड़ती है ये क्या लाया बेटा, पूरे दिन में कुछ भी नही खाया, इसका क्या काम, कुछ खा लेता.
लेकिन हामिद प्यार से अपने दादी से कहता है की दादी आप रोज जब रोटिया बनाती हो तो आपका हाथ जल जाता है जिसे मुझे देखा नही जाता है इसलिए आपके हाथ न जले सो चिमटा ले आया
यह बात सुनकर हामिद की दादी के आखो में खुशी के आशु आ गये और तुरंत अपने पोते को गले लगा लिया.
कहानी से शिक्षा
इस कहानी से हमे यही शिक्षा मिलती है की बच्चे वास्तविक रूप से मन के सच्चे होते है जिनके अंदर ईश्वर का वास होता है वे चाहकर भी किसी का दुःख नही देख सकते है और चाहे दुखो का कितना भी बड़ा पहाड़ क्यू न टूट पड़ा हो हमेसा आशावान होते है और आने वाले भविष्य की कल्पनाओ में खुद को हमेशा इस तरह घुल मिल जाते है की वे सिर्फ सुखो की परवाह करते है चाहे उसके बदले रास्तो में कितने कांटे ही क्यू न आये
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