Hindi, asked by Anonymous, 9 days ago

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Answered by rekhaskavali
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नमक का दरोगा' प्रेमचंद की बहुचर्चित कहानी है, जिसमें आदर्शोन्मुख यथार्थवाद का एक मुकम्मल उदाहरण है। यह कहानी धन के ऊपर धर्म की जीत है। 'धन' और 'धर्म' को क्रमशः सहुत्ति और असद्वत्ति, बुराई और अच्छाई, असत्य और सत्य कहा जा सकता है। कहानी में । इनका प्रतिनिधित्व क्रमश: पंडित अलोपीदीन और मुंशी वंशीधर नामक पात्रों ने किया है। ईमानदार, कर्मयोगी मुंशी वंशीधर को खरीदने में असफल रहने के बाद पंडित अलोपीदीन अपने धन की महिमा का उपयोग कर उन्हें नौकरी से हटवा देते हैं, लेकिन अंत में सत्य के आगे उनका सिर झुक जाता है। वे सरकारी विभाग से बर्खास्त वंशीधर को बहुत ऊँचे वेतन और भत्ते के साथ अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त करते हैं और गहरे अपराध से भरी हुई वाणी में निवेदन करते हैं- 'परमात्मा से यही प्रार्थना है कि वह आपको सदैव वही नदी के किनारे वाला बेमुरिवत, उद्देड, किंतु धर्मनिष्ठ दरोगा बनाए रखे।

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