Hindi, asked by AishwaryaSharda, 5 hours ago

PLEASE SOMEONE HELP
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TODAY IS MY PAPER
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Answered by AyushkumarGenius
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Hey this class 9 th and I am also in class 9th

here is your answer

मानसरोवर सुभर जल , हंसा केलि कराहिं ।

मुकताफल मुकता चुगै , अब उड़ि अनत न जाहिं।1।

अर्थ :- जल से परिपूर्ण संसार रुपी मानसरोवर में संत रुपी हंस स्वच्छंद रुप से जल - क्रीडा करते हुए मुक्ता - फल ( मोती ) चुग रहे हैं । उन्हें इस संसार रुपी सरोवर में इतना आनन्द आ रहा है कि वे अब कहीं दूसरी जगह ( स्वर्गलोक ) नहीं जाना चाहते ।

प्रेमी ढूँढ़त मैं फिरौं , प्रेमी मिलै न कोइ ।

प्रेमी को प्रेमी मिलै , सब विष अमृत होइ ।2।

अर्थ :- एक सच्चे भक्त या ईश्वर प्रेमी को किसी अन्य सच्चे भक्त या ईश्वर प्रेमी की तलाश होती है। परन्तु ; कबीरदास जी के अनुसार इस संसार में एक सच्चा भक्त या ईश्वर प्रेमी का मिलना बहुत कठिन है । यदि संयोग से ऎसा संभव हो जाय तो दोनों भक्तों या ईश्वर - प्रेमियों के समस्त विकार मिट जाते हैं ।

हस्ती चढ़िए ज्ञान कौ , सहज दुलीचा डारि ।

स्वान रूप संसार है , भूँकन दे झख मारि।3।

अर्थ :- कबीरदास जी कहते हैं कि यदि सवारी ही करनी है तो ज्ञान रुपी हाथी पर सहजता का दुलीचा (गद्दा) डालकर चढ़ो और कुत्तों (छींटाकशी करनेवालों) के भौंकने की परवाह किए बिना शान से सवारी करो । तात्पर्य यह कि हमें ज्ञानी बनना चाहिए पर हमारे अन्दर विनम्रता का होना बहुत आवश्यक है। इसके अभाव में ज्ञान व्यर्थ - सा हो जाता है । ज्ञानी को लोगों के कुछ कहने या बातों की परवाह किए बिना अपना कर्तव्य करना चाहिए।

पखापखी के करनै , सब जग रहा भुलान।

निरपख होइ के हरि भजै, सोई संत सुजान ।4।

अर्थ :- पक्ष और विपक्ष के चक्कर में पड़कर लोग स्वयं को जातियों ,सम्प्रदायों और धर्मों में बाँट लिए हैं और सांसारिक पचड़े में पड़कर अपने जीवन के असली उद्देश्य से भटक गये हैं। कबीरदास जी कहते हैं कि जो निष्पक्ष भाव से तटस्थ रहते हुए ईश्वर की भक्ति मे लीन रहता है , वास्तव में वही संत है , वही ज्ञानी है ।

हिंदू मूआ राम कहि , मुसलमान खुदाइ ।

कहै कबीर सो जीवता , जे दुँहुँ के निकट न जाइ।5।

अर्थ :- हिन्दू राम के नाम पर और मुसलमान खुदा के नाम पर लड़ते-झगड़ते और मरते-कटते रहता है। कबीरदास जी कहते हैं कि इस संसार मे वही जीवित रहता है या जीने लायक है, जो इन दोनों के पास नहीं फ़टकता अर्थात् जो धर्म या जाति जैसे भेद भाव को नहीं मानता उसी का जीना सार्थक है।

काबा फिरि कासी भया , रामहिं भया रहीम।

मोट चून मैदा भया , बैठी कबीरा जीम ।6।

अर्थ :- जब तक कबीर दास जी को ज्ञान नही था तब तक वे भी अज्ञानियों की तरह धर्म और जाति आदि के भेद से ग्रसित थे । ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्हें काबा (मुसलमानों का तीर्थस्थल ) और काशी (हिन्दुओं का तीर्थस्थल )में कोई अन्तर नहीं जान पड़ता । ज्ञान प्राप्ति के बाद राम और रहीम दोनों एक ही लगते हैं । भेद भाव मिट जाने से कबीर दास को गरीबों के मोटे अनाज़ भी अब मैदा जैसे ही महीन लगने लगे हैं अर्थात् अब उनके मन में किसी प्रकार का भेद नहीं रह गया ।

ऊँचे कुल का जनमिया , जे करनी ऊँच न होइ।

सुबरन कलस सुरा भरा , साधु निन्दा सोइ ।7।

अर्थ :- ऊँचे कुल में जन्म लेने से कोई ऊँचा नहीं कहलाता।ऊँचा अर्थात् महान बनने के लिए तो ऊँचे कर्म भी करना पड़ता है । इसमें कुल की कोई भूमिका नहीं होती । जिस प्रकार शराब यदि सोने के कलश में रख दी जाय तो भी वह साधुओं के लिए पेय नहीं बन सकती। साधुजन उसकी निन्दा ही करेंगे ठीक उसी प्रकार ऊँचे कुल में जन्मे लोग यदि नीच कर्म करने वाले होंगे तो वे भी शराब की तरह निन्दा के पात्र ही होंगे ।

Please mark me brainliest

Answered by priyanka37016
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Answer:

SIS HI ! SIS YES I HAD TAKEN BYJUS PACKAGE AND I DO IT'S CLASSES ALSO BUT.. I HAVE SOME NETWORK PROBLEM SO THAT'S WHY I ASK HERE ONLY! HRU

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