please tell explanation of story "Sookhi Daali" || "सूखी डाली "
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एकांकी का आरंभ बड़ी बहू और इंदु के संवाद से होता है। इंदु बहुत गुस्से में है। बड़ी बहू के पूछने पर वह बताती है कि छोटी बहू (बेलाद्ध अपने मायके के सामने किसी को कुछ नहीं गिनती। आज उसने घर में दस साल से काम कर रही रजवा को काम से निकाल दिया। जब मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की तो वह मुझ पर भी नाराज हो गर्इ। इंदु बड़ी बहू को यह बता ही रही होती है कि वहाँ छोटी भाभी (इंदु की माँद्ध आ जाती है। उसके साथ रोती हुर्इ रजवा भी थी। रजवा छोटी भाभी से कहती है कि माँ जी आप मुझे अपने पास रखिए। मैं आज से उनका काम करने नहीं जाऊँगी। छोटी भाभी रजवा को शांत करने की कोशिश करती है। उसी समय मँझली बहू हँसते हुए प्रवेश करती है। वह बताती है कि छोटी बहू ने अपने कमरे का सारा पफर्नीचर निकालकर बाहर रख दिया और वह परेश से बोली कि मैं इन टूटी-पफूटी कुर्सियों को अपने कमरे में नहीं रहने दूँगी। परेश ने उसे कापफी समझाने का प्रयास किया लेकिन वह नहीं मानी। अंतत: परेश ही वहाँ से दादा के पास चला गया। मँझली बहू ने आगे कहा कि छोटी बहू की ज़बान बहुत चलती है। इसके जवाब में इंदु कहती है कि उसकी ज़बान ही ज़बान चलती है, दादा ने चार कपड़े
धेने को कहा था वे गुसलखाने में पड़े गल रहे हैं। छोटी भाभी इंदु को कपड़े धेने का निर्देश देती है। पहला दृश्य समाप्त होता है।
दूसरे दृश्य के आरंभ में मँझला लड़का कर्मचंद दादा के पैर दबा रहा है। इतने में बाहर बच्चों के द्वारा नल चलाने की आवाज़ आती है। कर्मचंद उन्हें डाँटता है। दादा कर्मचंद को समझाते हैं कि बच्चों ने बरगद की पूरी डाल आँगन में लगा दी है लेकिन लाख पानी देने पर भी उसमें सरसता नहीं आ पाएगी। हमारा परिवार भी बरगद के पेड़ की भाँति ही है। कर्मचंद परेश के अलग होने की आशंका व्यक्त करता है। दादा के पूछने पर वह छोटी बहू के अहंकार के बारे में बताता है। थोड़ी देर बाद कर्मचंद चला जाता है और परेश आता है। दादा परेश से उसकी पत्नी की समस्याओं के बारे में बात करते हैं। वे उसे समझाते हैं कि वह अपनी पत्नी को बाज़ार ले जाकर नए पफैशन का सामान खरीदवा कर ले आए। परेश दादा को बताता है कि इस घर में बेला को कोर्इ पसंद नहीं करता। सब उसकी निंदा करते हैं। अब वह अलग गृहस्थी बसाना चाहती है। दादा उसे कहते हैं कि अलग हो जाना तो समस्या का आसान सा हल है लेकिन मेरे जीते जी यह संभव नहीं है। मैं सबको समझा दूँगा। अब से कोर्इ तुम्हारी पत्नी का तिरस्कार नहीं करेगा। परेश चला जाता है। दादा रजवा को बुलाते हैं और कहते हैं कि छोटी बहू को छोड़कर बाकी सबको बुलाकर ले आए। दादा सबको समझाते हैं कि छोटी बहू बड़े घर की पढ़ी-लिखी लड़की है। वह बु(ि में हम सबसे बड़ी है। हम सबको उसका आदर करना चाहिए। अगर तुममें से किसी ने अब उसका निरादर किया तो इस घर से मेरा नाता सदा के लिए टूट जाएगा। वह मँझली बहू और इंदु को अलग से समझाते हैं।
तीसरे दृश्य में बेला बरामदे में पुस्तक पढ़ रही है। वह अपने आप से कहती है कि पता नहीं कैसे लोग हैं इस घर के। कभी आग के जैसे गर्म और कभी मोम के जैसे कोमल। तभी उसकी सास आती है। वह बेला से कहती है कि तुम सही थीं। तुम परेश के साथ बाज़ार जाकर इस रíी पफर्नीचर के स्थान पर नया पफर्नीचर ले आओ। बेला के निवेदन करने पर भी वह बैठती नहीं। कहती है कि तुम बैठो बेटी मुझे घर के बहुत काम हैं। मैं तुम्हारा समय नष्ट नहीं करना चाहती। मैं तो इसलिए आर्इ थी कि एक बार रजवा को झाड़ना-बुहारना सिखा देना पिफर वह गलती नहीं करेगी। छोटी भाभी के चले जाने पर मँझली भाभी और बड़ी बहू आते हैं। वे भी आकर रजवा की सिपफारिश करते हैं और मँझली भाभी कहती हैं कि मैंने एक अनुभवी नौकरानी खोजने के लिए कह दिया है। बेला बैठने के लिए कहती है। लेकिन वे भी नहीं बैठतीं। बेला शिकायत करती है कि आप मेरे साथ परायों का सा व्यवहार क्यों कर रहीं हैं। बड़ी बहू चली जाती है। तभी कहकहे लगाते हुए मँझली बहू, इंदु और पारो का प्रवेश होता है। वह हँसते हुए अपन पड़ोस में घटित एक घटना का जिक्र करती है। तीनों हँस रही होती हैं तभी बेला को आते देखकर एकदम चुप हो जाती हैं। बेला आकर हँसने का कारण पूछती है। बेला जवाब न पाकर चुपचाप चली जाती है। इंदु और मँझली बहू आपस में बात करती हैं कि दादाजी ने हम दोनों को विशेष रूप से सतर्क रहने को कहा था।
बेला परेश से कहती है कि मुझे मेरे मायके भेज दीजिए। यहाँ कोर्इ मुझे नहीं समझता और मैं किसी को नहीं समझती। सब मुझसे ऐसी डरती हैं जैसे मुर्गी के बच्चे बाज से। मुझे कुछ काम नहीं करने देतीं। परेश उसे कहता है कि मुझे समझ में नहीं आता कि तुम क्या चाहती हो। परेश चला जाता है। बेला का प्रवेश होता है। वह पूछती है कि भाभी आप क्यों रो रही हो। बेला को उससे पता लगता है कि दादा ने सबको बेला का विशेष आदर करने का आदेश दिया है। इं
धेने को कहा था वे गुसलखाने में पड़े गल रहे हैं। छोटी भाभी इंदु को कपड़े धेने का निर्देश देती है। पहला दृश्य समाप्त होता है।
दूसरे दृश्य के आरंभ में मँझला लड़का कर्मचंद दादा के पैर दबा रहा है। इतने में बाहर बच्चों के द्वारा नल चलाने की आवाज़ आती है। कर्मचंद उन्हें डाँटता है। दादा कर्मचंद को समझाते हैं कि बच्चों ने बरगद की पूरी डाल आँगन में लगा दी है लेकिन लाख पानी देने पर भी उसमें सरसता नहीं आ पाएगी। हमारा परिवार भी बरगद के पेड़ की भाँति ही है। कर्मचंद परेश के अलग होने की आशंका व्यक्त करता है। दादा के पूछने पर वह छोटी बहू के अहंकार के बारे में बताता है। थोड़ी देर बाद कर्मचंद चला जाता है और परेश आता है। दादा परेश से उसकी पत्नी की समस्याओं के बारे में बात करते हैं। वे उसे समझाते हैं कि वह अपनी पत्नी को बाज़ार ले जाकर नए पफैशन का सामान खरीदवा कर ले आए। परेश दादा को बताता है कि इस घर में बेला को कोर्इ पसंद नहीं करता। सब उसकी निंदा करते हैं। अब वह अलग गृहस्थी बसाना चाहती है। दादा उसे कहते हैं कि अलग हो जाना तो समस्या का आसान सा हल है लेकिन मेरे जीते जी यह संभव नहीं है। मैं सबको समझा दूँगा। अब से कोर्इ तुम्हारी पत्नी का तिरस्कार नहीं करेगा। परेश चला जाता है। दादा रजवा को बुलाते हैं और कहते हैं कि छोटी बहू को छोड़कर बाकी सबको बुलाकर ले आए। दादा सबको समझाते हैं कि छोटी बहू बड़े घर की पढ़ी-लिखी लड़की है। वह बु(ि में हम सबसे बड़ी है। हम सबको उसका आदर करना चाहिए। अगर तुममें से किसी ने अब उसका निरादर किया तो इस घर से मेरा नाता सदा के लिए टूट जाएगा। वह मँझली बहू और इंदु को अलग से समझाते हैं।
तीसरे दृश्य में बेला बरामदे में पुस्तक पढ़ रही है। वह अपने आप से कहती है कि पता नहीं कैसे लोग हैं इस घर के। कभी आग के जैसे गर्म और कभी मोम के जैसे कोमल। तभी उसकी सास आती है। वह बेला से कहती है कि तुम सही थीं। तुम परेश के साथ बाज़ार जाकर इस रíी पफर्नीचर के स्थान पर नया पफर्नीचर ले आओ। बेला के निवेदन करने पर भी वह बैठती नहीं। कहती है कि तुम बैठो बेटी मुझे घर के बहुत काम हैं। मैं तुम्हारा समय नष्ट नहीं करना चाहती। मैं तो इसलिए आर्इ थी कि एक बार रजवा को झाड़ना-बुहारना सिखा देना पिफर वह गलती नहीं करेगी। छोटी भाभी के चले जाने पर मँझली भाभी और बड़ी बहू आते हैं। वे भी आकर रजवा की सिपफारिश करते हैं और मँझली भाभी कहती हैं कि मैंने एक अनुभवी नौकरानी खोजने के लिए कह दिया है। बेला बैठने के लिए कहती है। लेकिन वे भी नहीं बैठतीं। बेला शिकायत करती है कि आप मेरे साथ परायों का सा व्यवहार क्यों कर रहीं हैं। बड़ी बहू चली जाती है। तभी कहकहे लगाते हुए मँझली बहू, इंदु और पारो का प्रवेश होता है। वह हँसते हुए अपन पड़ोस में घटित एक घटना का जिक्र करती है। तीनों हँस रही होती हैं तभी बेला को आते देखकर एकदम चुप हो जाती हैं। बेला आकर हँसने का कारण पूछती है। बेला जवाब न पाकर चुपचाप चली जाती है। इंदु और मँझली बहू आपस में बात करती हैं कि दादाजी ने हम दोनों को विशेष रूप से सतर्क रहने को कहा था।
बेला परेश से कहती है कि मुझे मेरे मायके भेज दीजिए। यहाँ कोर्इ मुझे नहीं समझता और मैं किसी को नहीं समझती। सब मुझसे ऐसी डरती हैं जैसे मुर्गी के बच्चे बाज से। मुझे कुछ काम नहीं करने देतीं। परेश उसे कहता है कि मुझे समझ में नहीं आता कि तुम क्या चाहती हो। परेश चला जाता है। बेला का प्रवेश होता है। वह पूछती है कि भाभी आप क्यों रो रही हो। बेला को उससे पता लगता है कि दादा ने सबको बेला का विशेष आदर करने का आदेश दिया है। इं
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