Hindi, asked by aarya2281, 5 months ago

Please tell me a short story on इम्दारी का फल. Who will mark the answer will be marked as brainliest.​

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Answered by Arpana112
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बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में एक लकड़हारा रहता था. वह अपने काम के प्रति बहुत ईमानदार (Honest) था और हमेशा कड़ी मेहनत (Hard Work) करता था. प्रत्येक दिन वह पास के जंगल में पेड़ काटने चले जाता. जंगल से पेड़ काटने के बाद वह लकड़िया अपने गाँव लाता और सौदागर को बेच देता जिससे वह काफी अच्छा पैसा (Money) कमाता था.

वह अपनी रोजमर्रा के खर्च से अधिक पैसा कमाता था जिससे उसके पास अच्छी बचत (Saving) भी हो जाती लेकिन वह लकड़हारा अपने साधारण जीवन से खुश था.

एक दिन, वह नदी किनारे पेड़ काट रहा था. अचानक, उसके हाथ से कुल्हाड़ी फिसली और वह गहरे नदी में जा गिरी. वह नदी बहुत गहरी थी इसलिए वह खुद उस कुल्हाड़ी को नहीं निकाल सकता था. उसके पास सिर्फ एक ही कुल्हाड़ी थी जो अब नदी में खो चुकी थी. वह यह सोचकर बहुत परेशान हो गया.. वह सोचने लगा की बिना कुल्हाड़ी के वह अपनी आजीविका किस तरह से चला पायेगा.

वह बहुत ही दुखी हो गया, इसलिए वह भगवान से प्रार्थना करने लगा. वह सच्चे मन से प्रार्थना कर रहा था इसलिए भगवान ने उसकी बात सुनी और उसके पास आकर पूछा, ” पुत्र ! क्या समस्या हो गयी ? लकड़हारे ने अपनी सारी बात भगवान को बताई और अपनी कुल्हाड़ी लौटाने के लिए भगवान से विनती की.

भगवान ने अपना हाथ उठाकर गहरे नदी में डाला और चांदी की कुल्हाड़ी निकालकर लकड़हारे से पूछा, ” क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है ?

लकड़हारे ने उस कुल्हाड़ी को देखा और बोला, ” नहीं. भगवान ने अपना हाथ दोबारा पानी में डाला और एक कुल्हाड़ी निकाली जो सोने की बनी हुई थी.

भगवान ने उससे पूछा, ” क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है ?

लकड़हारे ने उस कुल्हाड़ी को अच्छी तरह देखा और बोला, ” नहीं भगवान ! यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है.

भगवान बोले, ” इसे ध्यान से देखो मेरे पुत्र, यह सोने की कुल्हाड़ी है जो बहुत कीमती है. सच में यह तुम्हारी नहीं है ?

लकड़हारा बोला, ” नहीं ! यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है. मैं सोने की कुल्हाड़ी से पेड़ नहीं काट सकता, यह मेरे किसी काम की नहीं है.

भगवान यह देखकर खुश हुए और अपना हाथ फिर से गहरी नदी में डाला और एक कुल्हाड़ी निकाली. यह कुल्हाड़ी लोहे की थी और भगवान ने लकडहारे से पूछा, ” यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है ?

लकड़हारा कुल्हाड़ी देखकर बोला, ” जी हाँ, यह मेरी कुल्हाड़ी है. आपका धन्यवाद. भगवान लकड़हारे की ईमानदारी देखकर बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने उसे लोहे की कुल्हाड़ी दे दी, साथ में उसे दो कुल्हाड़ी उसकी ईमानदारी के लिए ईनाम में भी दी.

Moral Of This Story –

दोस्तों ! यह कहानी हमें ईमानदारी की एक बहुत बड़ी सीख देती है. हमेशा ईमानदार रहो (Integrity Honesty) . ईमानदारी हमेशा से ही प्रशंसा की पात्र रही है. ईमानदारी हमारे नैतिक गुणों में चार चाँद लगाती है और फलस्वरूप हमें इसका बेहतर फल हमेशा मिलता है. इसलिए अपने काम के प्रति, खुद के प्रति और हर स्थिति में ईमानदार रहे.. आपको आपकी ईमानदारी का फल अवश्य मिलेगा.

Answered by jaiswaladitya572
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Answer:

एक गांव के अंदर एक किराना व्यापारी रहता था । जिसका नाम सूरज था । वह व्यापारी बड़ा ईमानदार था । उसी गांव के अन्य व्यापारी सूरज की इमानदारी से काफी परेशान रहते थे ।

क्योंकि वह कभी भी किराना / राशन की वस्तुओं में मिलावट व इनके अधिक दाम नहीं लेता था परंतु गांव के अन्य व्यापारी मिलावट का काम करतेे थे ।

एक दिन उस गांव में एक बड़ा सा अधिकारी रहने आया । वह अधिकारी अपने घर के लिए किराना / राशन का सामान लेने के लिए बाजार में गया और बाजार में आते ही सबसे पहले सूरज की दुकान पर गया और कुछ राशन का सामान खरीदा है । जैसे कि घी ,शक्कर ,चावल ,दाल इत्यादि । यह सब खरीद कर अपने घर चला गया ।

अगले ही दिन उसके घर पर कुछ मेहमान आ गए । जिसके कारण वह वापस अपने घर के लिए तथा अपने मेहमानों के खाने – पीने का बंदोबस्त करने के लिए वापस कुछ राशन का सामान खरीदने के लिए बाजार गया ।

अब की बार वह अधिकारी देवीलाल नाम के व्यापारी /दुकानदार के वहां गया । जो बड़ा कंजूस और मिलावट खोर इंसान था । वह हमेशा मिलावटी सामान बेचता और उनके दाम अन्य दुकानदारों से कुछ कम लेता ।

जिससे उसके यहां हमेशा भीड़ रहती । उस अधिकारी को देवीलाल ने मिलावटी सामान बेच दिया तथा सामान्य कुछ कम भाव लगे । जिससे वह काफी प्रसन्न हुआ ।तथा आते हुए रास्ते में उस देवीलाल की काफी तारीफ की तथा उस ईमानदार सूरज की काफी बुराई कि ।

उस अधिकारी ने सूरज को यह धमकी भी दी कि तुम अपनी दुकान पर कुछ ज्यादा ही पैसे लेते हो सामान के और मैं तुम्हारी शिकायत तहसीलदार से करूंगा । यह सब कह के वह अधिकारी अपने घर आ गया ।

उसकी पत्नी ने मिलावटी घी से कुछ मीठा व्यंजन बनाया था । जिसे खाकर सबको फ़ूड पोइज़निंग हो गई ।जब उस मिलावटी घी की जांच की गई तो उस अधिकारी को पता चल गया कि घी तो पूरा मिलावटी था ।

उसके कुछ दिन बाद जब अधिकारी ठीक हुआ तो उसने पूरे गांव की किरणों की दुकान पर जाकर मिलावट की जांच कराना शुरू किया ।

जिसमें यह बात पता चली कि वह देवीलाल और बाकी सभी दुकानदार मिलावट खोरी करते थे परंतु सूरज ऐसा नहीं करता था । जब यह बात पूरे गांव को पता चली तो पूरे गांव के लोगों ने अपने घर का सामान सूरज की दुकान से खरीदना तय किया । इस तरह सूरज को अपनी ईमानदारी का फल मिला ।

उस अधिकारी ने भी सूरज से अपने बर्ताव के लिए माफी मांगी ।

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