Please tell me about the 1 poem of agyey?
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चांदनी चुपचाप सारी रात-
सूने आँगन में
जाल रचती रही
मेरी रूपहीन अभिलाषा
अधूरेपन की मद्धिम-
आंच पर तचती रही
व्यथा मेरी अनकही
आनन्द की सम्भावना के
मनश्चित्रों से परचती रही
मैं दम साधे रहा
मन में अलक्षित
आंधी मचती रही
प्रात: बस इतना कि मेरी बात
सारी रात
उघड़ कर वासना का
रूप लेने से बचती रही
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चांदनी चुपचाप सारी रात-
सूने आँगन में
जाल रचती रही
मेरी रूपहीन अभिलाषा
अधूरेपन की मद्धिम-
आंच पर तचती रही
व्यथा मेरी अनकही
आनन्द की सम्भावना के
मनश्चित्रों से परचती रही
मैं दम साधे रहा
मन में अलक्षित
आंधी मचती रही
प्रात: बस इतना कि मेरी बात
सारी रात
उघड़ कर वासना का
रूप लेने से बचती रही
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