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safai ka mahatva :
एक कहावत है ‘कुत्ता भी जब बैठता है तो पूंछ झाडक़र बैठता है।’ इसका अर्थ यह है कि जब कुत्ता किसी स्थान पर बैठता है तब सबसे पहले उसे पूंछ से साफ कर लेता है, अर्थात कुत्ता भी स्वच्छताप्रिय होता है। फिर मनुष्य को तो सफाई का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। वास्तव में, स्वच्छता जीवन में अत्यंत आवश्यक है। प्रत्येक मनुष्य को चाहिए कि वह सदैव स्वच्छता से रहे। अंग्रेजी में एक कहावत है ‘सत्य के बाद स्वच्छता का स्थान है।’
सफाई दो प्रकार की होती है। बाह्य और आंतरिक। बाह्य सफाई से प्रयोजन शरीर, वस्त्र, निवास आदि की स्वच्छता से है। आंतरिक स्वच्छता से तात्पर्य मन और हदय की स्वच्छता से है।
इन दोनों में श्रेष्ठतर ‘आंतरिक’ स्वच्छता है। इसमें आचरण की शुद्धता जरूरी है। शुद्ध आचरण से मनुष्य का चेहरा तेजोमय होता है। सब लोग उसको आदर की दृष्टि से देखते हैं। उसके समक्ष प्रत्येक व्यक्ति स्वंय ही अपना मस्तक झुका लेता है। उसके प्रति लोगों में अत्यंत श्रद्धा होती है। बाह्य स्वच्छता में बालों की सफाई, नाखूनों की सफाई, कपड़ों की सफाई इत्यादि शामिल है। इसकी अवहेलना करके मनुष्य स्वच्छ नहीं रह सकता। इसकी उपेक्षा करने से बड़े दुष्परिणाम नजर आते हैं। मनुश्य रोगग्रस्त होकर नाना प्रकार के दुखों से पीडि़त रहता है। वह मनुष्य क्या कभी स्वस्थ रह सकता है, जो सर्वदा स्वच्छ जलवायु से वंचित रहता है? अत: यह स्पष्ट है कि स्वास्थ्य-रखा के लिए स्वच्छता अविार्य है। यह प्राय: सभी लोगों का अनुभव है कि जो मनुष्य गंदे रहते हैं, वे दुर्बल और रुज्ण होते हैं। जो मनुष्य स्वच्छ रहते हैं, वे हष्ट-पुष्ट और निरोग रहते हैं।
स्वास्थ्य के अतिरिक्त बाह्य सफाई से चित्त को प्रसन्नता भी मिलती है। जब कोई मनुष्य गंदे वस्त्र पहने रहता है तब उसका मन मलिन बना रहता है और उसमें आत्मविश्वास की कमी महसूस होती है, परंतु यदि वही मनुष्य स्वच्छ वस्त्र धारण कर लेता है तो उसमें एक प्रकार की स्फूर्ति और प्रसन्नता का संचरण हो जाता है। आपको यदि ऐसे स्थान पर छोड़ दिया जाए, जहां कूड़ा-करकट फैला हो, जहां मल-मूत्र पड़ा हो तो क्या आपका चित्त वहां प्रसन्न रहेगा? नहीं। क्यों? इसलिए कि आपको वहां दुख होगा, घृणा लगेगी।
बाह्य स्वच्छता से सौंदर्य में भी वृद्धि होती है। एक स्त्री जो फटे, मैले-कुचैले वस्त्र धारण किए हुए है, उसकी ओर कोई देखता तक नहीं। परंतु यदि वही स्त्री स्वच्छ वस्त्र धारण कर लेती है तो सुंदर दिखाई देने लगती है। धूल-धूसरित बनने की अपेक्षा स्वच्छ बालक सुंदर तथा प्रिय लगते हैं।
मनुष्य मात्र में स्वच्छता का विचार उ पन्न करने के लिए शिक्षा का प्रचार करना अनिवार्य है। शिक्ष्ज्ञा पाने से व्यक्ति स्वत: स्वच्छता की ओर प्रवृत हो जाता है। ध्यान रहे, बाह्य स्वच्छता का प्रभाव आतंरिक स्वच्छता पर भी पड़ता है। इसके अतिरिक्त आतंरिक स्वच्छता सत्संगति से मिलतीहै। सचमुच यह दुर्भाज्य ही है कि हममें से अधिकांश व्यक्ति स्वच्छता पर ध्यान नहीं दे पाते। स्वच्छता उत्तम स्वास्थ्य का मूल है।
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भारत एक धार्मिक, सांस्कृतिक और परंपरागत देश हैं और विवधता में एकता के लिये प्रसिद्ध हैं। हांलाकि, इसे विकास के लिये स्वच्छ, भ्रष्टाचार, सामाजिक संघर्षों, महिलाओं के खिलाफ अपराधों, गरीबी, प्रदूषण, ग्लोबल वॉर्मिंग आदि के अन्त के लिये अपने नागरिकों के और अधिक प्रयासों की आवश्यकता हैं। लोगों को सरकार पर चिल्लाने और दोषी ठहराने के स्थान पर देश के प्रति अपने कर्त्तव्यों को समझना चाहिये। देश की वृद्धि एवं विकास के लिये सभी व्यक्ति व्यक्तिगत रुप से जिम्मेदार हैं। लोगों को लाओं तुज़ के प्रसिद्ध कथन,“हजारों कोसो की यात्रा एक कदम से शुरु होती हैं।” को कभी नहीं भूलना चाहिये। सभी को अपने मौलिक कर्त्तव्यों के बारे में जानकारी रखनी चाहिये और उन्हें नजरअंदाज किये बिना अनुकरण करना चाहिये। देश के अच्छे और जिम्मेदार नागरिक होने के कारण, सभी को अपने कर्त्तव्य वफादारी से निभाने चाहिये जैसे:
देश के प्रति मेरा कर्त्तव्य
लोगों को सरकार के बनाये हुये सभी नियमों और कानूनों का पालन करना चाहिये। उन्हें प्राधिकरणों का आदर करना चाहिये और कोई नियम नहीं तोड़ना चाहिये साथ ही साथ दूसरों को भी ऐसा करने के लिये प्रेरित करना चाहिये।
उन्हें अपने खिलाफ किसी भी अपराध को सहन नहीं करना चाहिये और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठानी चाहिये। उन्हें समाज को नकारात्मक प्रभाव से बचाते हुये अपने सभी नागरिक और सामाजिक कर्त्तव्यों का पालन करना चाहिए।
उन्हें जरुरतमंद लोगों के लिये समाधान उपलब्ध कराने चाहिये, बुद्धिमत्ता पूर्ण मतदान करना चाहिये और अपने सभी करों का भुगतान समय पर करना चाहियें।
उन्हें समाज के हित के लिये आर.टी.आई. और आर.टी.ई. जैसे अधिनियमों की मदद लेनी चाहिये।
सभी को अपने चारों ओर साफ-सफाई रखने के लिये स्वच्छता अभियान में भाग लेना चाहिये। उन्हें बच्चों को बेकार वस्तुओं को कूड़ेदान में डालना और सार्वजनिक वस्तुओं की देखभाल करना सिखाना चाहिये।
वो लोग जो समर्थ हैं उन्हें गैस के अनुदान (सब्सिडी) को छोड़ देना चाहिये।
सभी को देश और संगी नागरिकों के प्रति ईमानदार और वफादार होना चाहिये। उन्हें एक-दूसरे के लिये सम्मान की भावना रखनी चाहिये और देश के कल्याण के लिये बनायी गयी सामाजिक व आर्थिक नीतियों का भी सम्मान करना चाहिये।
लोगों को अपने बच्चों को शिक्षा में शामिल करना चाहिये और उनके स्वास्थ्य और बचपन की देखभाल करनी चाहिये। उन्हें अपने बच्चों को बाल-श्रम और अन्य अपराध करने के लिये मजबूर नहीं करना चाहिये।
लोगों को अपने देश को दुनिया में सबसे अच्छा देश बनाने के लिये प्रयास करना चाहिये।