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नीलकंठ
नीलकंठ महादेवी द्वारा पाला गया मोर था। नीलकंठ तथा राधा मोरनी महादेवी को साथ घायल अवस्था में मिले थे। एक पक्षी बेचने वाले की दुकान से वह उन्हें खरीद लाई थीं। नीला गला होने के कारण नर मोर का नाम नीलकंठ पड़ा तथा मोरनी का नाम राधा रखा गया। नीलकंठ ने अपने स्वभाव से बाड़े के सभी पशु-पक्षियों के साथ-साथ महादेवी का ह्दय भी जीत लिया था। नीलकंठ साहसी तथा निडर मोर था। परन्तु कुब्जा मोरनी के आने के बाद वह उदास रहने लगा। कुब्जा नीलकंठ को अन्य पशु-पक्षियों तथा राधा मोरनी के साथ देख नहीं पाती थी। कोई भी पशु-पक्षी नीलकंठ के पास आना चाहता, तो वह उसे चोंच से मार-मारकर भगा देती। इस कारण नीलकंठ अलग पड़ गया और उदास रहने लगा। एक दिन महादेवी ने उसे बाग में मरा पाया।
नीलकंठ महादेवी द्वारा पाला गया मोर था। नीलकंठ तथा राधा मोरनी महादेवी को साथ घायल अवस्था में मिले थे। एक पक्षी बेचने वाले की दुकान से वह उन्हें खरीद लाई थीं। नीला गला होने के कारण नर मोर का नाम नीलकंठ पड़ा तथा मोरनी का नाम राधा रखा गया। नीलकंठ ने अपने स्वभाव से बाड़े के सभी पशु-पक्षियों के साथ-साथ महादेवी का ह्दय भी जीत लिया था। नीलकंठ साहसी तथा निडर मोर था। परन्तु कुब्जा मोरनी के आने के बाद वह उदास रहने लगा। कुब्जा नीलकंठ को अन्य पशु-पक्षियों तथा राधा मोरनी के साथ देख नहीं पाती थी। कोई भी पशु-पक्षी नीलकंठ के पास आना चाहता, तो वह उसे चोंच से मार-मारकर भगा देती। इस कारण नीलकंठ अलग पड़ गया और उदास रहने लगा। एक दिन महादेवी ने उसे बाग में मरा पाया।
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