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किसी गांव में एक निर्धन किसान रहता था। उसके पास खेती-बाड़ी के लिए जमीन तो थी, पर उस जमीन पर फसल अच्छी ना होने के कारण वह बेचारा परेशान रहता था।
एक दिन गर्मी के मौसम में वह अपने खेत पर पेड़ की छाया में आराम कर रहा था कि वह देखता है एक बिल में से सांप निकला और फन फैलाकर खड़ा हो गया।
अचानक किसान को संदेह हुआ, हो-न-हो इस सांप के कारण ही मेरी खेती बिगड़ रही है, इसलिए मुझे इसकी सेवा चाकरी करनी होगी।
यह विचार आते ही वह कहीं से दूध लाया और उसे एक बर्तन में डालकर बिल के पास रख दिया। अगले दिन जब वह बिल के पास गया तो देखता है, बर्तन में दूध नहीं है बल्कि उसमें एक सोने की मुहर पड़ी है।
मुहर पाकर उसे बड़ी खुशी हुई। उस दिन से वह रोजाना बर्तन में दूध लेकर जाता और बिल के पास रख देता और अगले दिन उसे नियमित सोने की एक मुहर मिल जाती।
संयोग से किसान को एक दिन के लिए कहीं बाहर जाना था। वह बड़ी दुविधा में पड़ गया कि सांप को दूध कौन देगा? बहुत सोच-विचार कर उसने अपने बेटे से इस बात की चर्चा की और दूध रख आने को कहा।
किसान के बताए अनुसार बेटे ने वैसा ही किया। लेकिन जब उसने दूध के बर्तन में मुहर देखी तो वह सोचने लगा जरूर यहां ज़मीन में बहुत-सी मुहरें दबी पड़ी होगी, जिन पर यह सांप कब्जा जमाएं बैठा है और उन्हीं में से यह सांप रोज एक मुहर ले आता है। तो क्यों ना इस सांप को मारकर सारी मुहरों को ले लिया जाये।
दूसरे दिन किसान का बेटा जब दूध लेकर गया तो वहीं ठहर गया। थोड़ी देर में रोजाना की तरह सांप बाहर निकल आया तो उसने बड़े जोर से सांप को डंडा मारा, लेकिन निशाना चूक गया। डंडा सांप को लगा ही नहीं और सांप ने उछलकर तुरंत उसे काट लिया। थोड़े ही अंतराल में लड़का मर गया।
दूसरे दिन जब लड़के का बाप लौटकर आया और उसने बेटे की करनी और मृत्यु का समाचार सुना तो उसे बड़ा दुख हुआ। पर उसने कहा – “जो जैसा करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है.”
इसलिए हमेशा इस बात का स्मरण रहे ”जैसी करनी, वैसी भरनी” लालच का अंत ऐसा ही होता है।
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Explanation:
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Explanation:
एक बार की बात है कि एक हाथी प्रतिदिन अपने महावत के साथ पानी पीने के लिए तालाब पर जाता था। मार्ग में एक दर्जी की दुकान आती थी। जब हाथी दर्जी की दुकान के सामने आता तो दर्जी उसे सदैव कुछ न कुछ खाने को देता। इससे हाथी बहुत प्रसन्न रहता था।
एक दिन दर्जी किसी बात पर नाराज था। हाथी प्रतिदिन की भान्ति दर्जी की दुकान पर आया और कुछ पाने की इच्छा से उसने अपनी सूंड आगे बढ़ाई। दर्जी पहले ही जला-भुना बैठा था। उसने हाथी की सूंड पर सुई चुभो दी। इससे हाथी बहुत ही नाराज़ हुआ और सीधा तालाब पर पानी पीने पांच गया। हाथी के मन में सुई चुभाने का बहुत ही गुस्सा था। उसने दर्ज़ी से बदला लेने की भावना से अपनी सूंड में कीचड़ वाला गन्दा पानी भर लिया। पानी पीकर और कीचड़ वाला पानी सूंड में भर क्र वह वापिस दर्ज़ी की दूकान पर आ गया। हाथी ने अपनी सूंड का सारा गन्दा पानी दर्ज़ी की दूकान के कपड़ो पर फैंक दिया। जिससे सारे कपडे गंदे हो गए। दर्ज़ी को अपनी करनी पर भी बहुत पछतावा हो रहा था। कि क्यों उसने क्रोध में आकर हाथी के साथ ऐसा व्यवहार किआ। हाथी ने उसके लिए जैसी केनी वैसी, भरनी वाली कहावत सत्या सिद्ध कर दी।
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