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खण्ड 'ग' पठित गद्यांश
प्र.4 निम्नलिखित गद्याश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिएः
यह व्यापारिक ही नहीं सैनिक रास्ता भी था। इसीलिए जगह-जगह फौजी चौकियाँ औऱ किले बने हुए हैं। जिसमें कभी चीनी पलटन रहा करती थी। आजकल बहुत से फौजी मकान गिर चुके हैं। दुर्ग के किसी भाग में, जहाँ किसानों ने अपना बसेरा बना लिया है। वहाँ घर कुछ आबाद दिखाई पड़ते हैं। ऐसे ही परित्यक्त एक चीनी किला था। वहाँ हम चाय पीने के लिए ठहरे। तिब्बत में यात्रियों के लिए बहुत सी तकलीफ़ भी है। और कुछ आराम की बातें भी।
वहाँ जाँति-पाति, छुआछूत का सवाल ही नहीं है। और न ही औरतें परदा ही करती हैं। बहुत निम्न श्रेणी के भिखमंगों को लोग चोरी के डर से घर के भीतर नहीं आने देते, नहीं तो बिल्कुल घर के भीतर चले जा सकते हैं।
(क) उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का नाम व लेखककार का परिचय दीजिए।
(ख) फौजी दुर्ग में किसने घर बना लिए हैं?
(ग) किन लोगों को यहाँ के लोग अपने घर नहीं आने देते?
(घ) यहाँ की औरतें तथा समाज कैसा है?
(ङ) यह दुर्ग कहाँ बने हैं?
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♠ उत्तर :
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( क ). पाठ का नाम - ल्हासा की ओर।
लेखक का नाम - राहुल सांक्रत्यायन।
( ख ). फौजी दुर्ग में किसानों ने घर बना लिए हैं।
( ग ). बहुत निम्न श्रेणी के भिखमंगों को यहां के लोग घर नहीं आने देते।
( घ ). यहां की औरतें बिल्कुल भी परदा नहीं करतीं। यहां जाँति-पाति, छुआछूत का सवाल ही नहीं है। यहां लोग पर्यटकों का बहुत अच्छे से स्वागत करते हैं।
( ड़ ).ल्हासा नेपाल से तिब्बत जाने के रास्ते में ये दुर्ग बने हैं।
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( क ). पाठ का नाम - ल्हासा की ओर।
लेखक का नाम - राहुल सांक्रत्यायन।
( ख ). फौजी दुर्ग में किसानों ने घर बना लिए हैं।
( ग ). बहुत निम्न श्रेणी के भिखमंगों को यहां के लोग घर नहीं आने देते।
( घ ). यहां की औरतें बिल्कुल भी परदा नहीं करतीं। यहां जाँति-पाति, छुआछूत का सवाल ही नहीं है। यहां लोग पर्यटकों का बहुत अच्छे से स्वागत करते हैं।
( ड़ ).ल्हासा नेपाल से तिब्बत जाने के रास्ते में ये दुर्ग बने हैं।
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this is the answer.
ok
thank you
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