Hindi, asked by mahesh838400, 8 months ago

Please write a small story on "joote ki kimat" please write fast

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Answered by Anonymous
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Answer:

स्कूलों का नया सत्र 2 अप्रैल से आरंभ हो जाएगा। किताब, कापी, फीस. यूनिफॉर्म सबकी व्यवस्था हो गई। जूता-मोजा खरीदना बाकी रह गया। रविवार को अभिभावकों ने जूतों की खरीदारी की। अभिभावकों की मानें तो जूतों के दाम में भी मनमानी है। उन्हें 300 से 1800 रुपए तक के जूते खरीदने पड़ रहे हैं।

किताब-कापी, यूनिफॉर्म की तरह जूते भी चुनिंदा दुकानों पर मिल रहे हैं। पहले से दाम तय हैं। कोई मोलभाव नहीं। अभिभावकों की मजबूरी है कि वहीं से जूता-मोजा खरीदें। इसकी बड़ी वजह यह कि स्कूलों ने अपने हिसाब से जूतों की डिजाइन तैयार करवाई है। अलग-अलग रंगों की स्ट्रिप लगवाई है। इस डिजाइन के जूते किसी दूसरे दुकान पर मिलेंगे ही नहीं। इसलिए अभिभावक वहीं से खरीदेगा।  

पीटी से स्पोर्ट्स शू का सफर

वक्त के साथ अंग्रेजी स्कूलों के यूनिफॉर्म का कलेवर भी बदल गया। पहले अंग्रेजी स्कूलों में पीटी शू पहन कर बच्चे जाते थे। अब पीटी शू का रिवाज खत्म हो गया। ज्यादातर स्कूलों में स्पोर्ट्स शू का चलन है। ये देखने में आकर्षक हैं। बच्चों को स्मार्ट लुक देते हैं। मगर अभिभावकों की जेब पर भारी पड़ते हैं। एक प्रतिष्ठित स्कूल में ब्रांडेड कम्पनी का जूता चलता है, जिसकी न्यूनतम कीमत 1800 रुपए है।  

अब एक नहीं दो सेट जूतों की जरूरत

पहले एक सेट जूते पूरे सत्र काम देते थे। अब हफ्ते में दो सेट जूतों की जरूरत है। सप्ताह में पांच दिन एक तरह के जूते पहने जाते हैं। जिस दिन हाउस के हिसाब से यूनिफॉर्म पहनी जाती है, उस दिन जूता दूसरी डिजाइन का होता है। यदि बच्चे यूनिफॉर्म का यह मानक नहीं पूरा करते हैं तो उन पर जुर्माना लगता है। अभिभावकों से डायरी पर शिकायत भेजी जाती है। एक अभिभावक को औसतन दो सेट जूते करीब 900 रुपए में पड़ते हैं।  

मोजा भी कम खर्चीला नहीं

जूते के साथ तो मोजा खरीदना ही पड़ेगा। सामान्य तौर पर सफेद रंग का मोजा 50 रुपये में मिल जाता है लेकिन स्कूल से निर्धारित दुकान पर इसकी कीमत 75 से 80 रुपए तक पड़ रही है। कापी-किताब, यूनिफॉर्म की तर्ज पर जूते-मोजे पर भी स्कूलों का हिस्सा तय है। आमतौर पर अभिभावक दो सेट मोजा लेता है। छोटे बच्चों के मोजे जल्दी फट जाते हैं। हर स्कूल अपने बच्चों को अलग दिखाने की होड़ में यूनिफॉर्म, जूता और मोजा बदलता रहता है, जिसका बोझ अभिभावक उठाते हैं।  

इनका कहना है

मेरे परिवार के तीन बच्चे नगर के प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ते हैं। वहां एडीडास का जूता चलता है। एक बच्चे के जूते की कीमत करीब 1800 रुपये है। तीनों बच्चों को जूता खरीदने में करीब 5400 रुपए पड़ गए।

Explanation:

Answered by PravinRatta
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जूते की कीमत भला कौन नहीं जानता। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक ये हमारे काम आता है। हर उम्र और जरूरत के हिसाब से भले ही जूते के प्रकार भिन्न हो जाएं लेकिन जरूरत तो सभी को होती है।

स्कूल के दिन जब जूते ना होने पर मास्टर साहब की डांट सुननी पड़ती है। जो जल्दी जूते नहीं बदलते उन बच्चो को छोटे जूतों से ही किसी तरह काम चलाना होता है।

बड़े हुए तो दफ्तर में जूते का चलन दिखा। अलग अलग लोग विभिन्न ब्रांड के जूते पहने हुए दिखते हैं। वक्त के साथ साथ जूते की डिजाइन में भी कई बदलाव आए हैं।

बुढ़ापे में जब ठंड लगती हैं तो जूता बहुत आरामदायक लगता है। बरसात के दिनों में जूते पहनना थोड़ा मुश्किल जरूर हो जाता है लेकिन जूते की कीमत कोई नहीं भूल सकता। यह अनमोल है और हमारे जीवन का हिस्सा भी।

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