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नजर को बदलो नज़ारे बदल जायेगे
एक बार की बात है एक गाँव में एक गुरूजी रहते थे जिनके तीन शिष्य थे | एक दिन गुरूजी ने अपने तीनो शिष्यों को दाल कि एक-एक पोटली दी और कहा कि ये पोटली लेकर जाओ और मुझसे ठीक एक साल बाद आकर मिलना | तीनों शिष्य पोटली लेकर वहां से चले गए |वो सब अपने अपने घर जाकर जब पोटली खोलकर देखे तो उसमे उन्हें चने के दाल मिले |दाल देखकर पहले शिष्य ने सोचा कि क्योंकि ये दाल गुरूजी ने दिया है इसलिए ये पूज्यनीय है और वो उस दाल को एक जगह रखकर उसकी पूजा करने लगा |दूसरे शिष्य ने पोटली में दाल देखकर सोचा कि जरूर गुरूजी ने हमें ये दाल बिदाई में दिए है और वो उस दाल को पकाकर खुद भी खाया और अपने घर वालो को भी खिलाया |अब बारी आती है तीसरे शिष्य कि, पोटली में दाल देखकर उसने सोचा की गुरूजी ने ये दाल हमें दी है इसका मतलब जरूर इसमें कुछ रहस्य छुपा होगा | और उसने उस दाल को खेतों में बो दिया और एक साल बाद उसके पास इतना दाल हो गया की उससे वो भूखे-प्यासे लोगो का पेट भरने लगा |एक साल बाद तीनो शिष्य गुरूजी के पास पहुंचे और गुरूजी को अपने अपने काम के बारे में बताने लगे, सबकी बात सुनने के बाद गुरूजी ने तीसरे शिष्य की खूब तारीफ़ की और बाकी दोनों शिष्य को उससे कुछ सीखने को कहा |दोस्तों पेड़ से सेब गिरता है ये हम सबको एक समान ही दिखता है, लेकिन फर्क इस बात से पड़ता है की हम उसे कैसे देखते है | अगर Newton को भी हमारी तरह ही उस पेड़ से गिरता हुआ सेब दिखता तो आज हमें ग्रेविटी का पता नहीं चलता |
“सोच को बदलो सितारे बदल जायेगे, नजर को बदलो नज़ारे बदल जायेगे, कश्तिया बदलने की जरुरत नहीं, दिशा को बदलो किनारे बदल जाएंगे |” moral
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एक बार एक धनी व्यापारी व्यापार के उद्देश्य से पानी के जहाज द्वारा अपने शहर से दूसरे शहर जा रहा था। वह अपने साथ कीमती रत्न एवं सोने के सिक्कों से भरा एक संदूक भी ले जा रहा था।
रास्ते में तूफान आ गया। जहाज इधर-उधर हिलोरें लेने लगा। कुछ घंटों के बाद तूफान तो थम गया, लेकिन जहाज की तली में एक छेद हो गया। अब जहाज में पानी भरने लगा।
यह देखकर कुछ लोग जहाज में ही डूब गए और कुछ सौभाग्यशाली तैरकर किनारे पहुँच गए। यह देखकर व्यापारी ने प्रार्थना करनी शुरू की, “हे भगवान! कृपा करके मेरा जीवन बचा लो।”
एक व्यक्ति व्यापारी के पास गया और बोला, “कूदो और तैरकर समुद्र के किनारे पहुँचो। भगवान उसकी मदद करता है जो अपनी मदद स्वयं करते हैं।” लेकिन व्यापारी ने उसकी एक न सुनी।
वह जहाज में ही रहा। थोड़ी देर में जहाज डूब गया और वह व्यापारी भी जहाज के साथ डूबकर अकाल मृत्यु का ग्रास बना।