please write the story stating line is given below: मैं सोच ही रहा था की शाम हो गई
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Explanation:
मै सोच रहा था
आज़ादी या ग़ुलामी यह सोच रहा हूँ मैं,
७० सालों का भारत उसे सोच रहा हूँ मैं।
कितने कष्टों-दुखों से आज़ाद हुए थे हम,
तो अब कैसी ग़ुलामी है यह सोच रहा हूँ मैं।
खड़े हुए लदे हुए सीना तान मेरा सिपाही,
त्राहि त्राहि तो करता मेरे देश का हर एक राही
सुई सी बातों पर ही कट जाते हैं रिश्ते,
बह जाते अपने लहू, रह जाते यादों की किश्तें
तो जीना मरना बस पैसा है, यह सोच रहा हूँ मैं
७० सालों का भारत उसे सोच रहा हूँ मैं।
लूट रहा पड़ोसी, एक नहीं अनेक
हम भी सब लूटवा रहे कैसे बनके नेक
बिक रहा सब जनता का, भावनाओं के जाल में देख,
सो रहा सदियों से मेरा राजा जताके खेद,
तो मूँद ना सीखा आँखों को, ७० सालों में हम ने
यह सोच रहा हूँ मैं
७० सालों का भारत उसे सोच रहा हूँ मैं।
यह कैसा जश्न मनाए, जब तिल तिल मरता जाए
अपना अपनो से अपनी धरती पर ही, कोसों दूर होता जाए
प्यार सोहरत सब झूठे, द्वन्द बढ़ता जाए,
नित नित साज़िश में, मेरा भाई घिरता जाए
तो क्या बाक़ी है और बँटना मेरे एकलौते भारत को, यह सोच रहा हूँ मैं
७० सालों का भारत उसे सोच रहा हूँ मैं।
आज मेरी माँ को खोद दिया तुमने, कितने अपनो को उसके सीने में सुला दिया तुमने,
वो रक्षक था और है सीमा पर, मज़ाक़ बना दिया हमने
खिलवाड़ किया इस आज़ाद हिन्द का, नोच दिया हमने
आज़ादी का क्या है मतलब, यह सोच रहा हूँ मैं
७० सालों का भारत उसे सोच रहा हूँ मैं।
उखड़ीं बिखरी सड़कें, टूटे कटे से पुल बयान करते हमारे जर्जर जर्जर से घर
७० सालों में भी नहीं दे पाए उसे घर, कपड़ा और रोटी,
दिया पदवी ग़रीब की, जिया या बस मरता रहा वो कोटि कोटि
तो यही विकास का सपना संजोया था वीरों ने, यही बात ना जाने कबसे सोच रहा हूँ मैं।
७० सालों का भारत उसे सोच रहा हूँ मैं।
७० सालों में ७० बार गिरी मेरी शिक्षा,
उठे नहीं मौक़े तो कर गया विदा मेरा भाई लेके अपनी अवसर की दीक्षा
नन्ही आँखें अब ढूँढते हैं, बस सुकून के पल, मान मर्यादा सब ताक पे, बस मतलब के कल,
कहाँ खो गए वो गलियों-मैदानो के खेल, "वो काटा" के स्वर और पल पल दिखती मुस्कुराहतों के कलरव
क्या हमारा नन्हा भारत बस सीमित है अपने भ्रमणभाष में, यह सोच रहा हूँ मैं
७० सालों का भारत उसे सोच रहा हूँ मैं।
मेरे दोस्त मेरे भाई, तू मेरा है ना कोई कसाई
धर्म जात से न बनाया था तुझे अपना
तो क्यूँ आरक्षण से रास्ता अलग कर गया अपना
मेरी क़ाबलियत को भी तो पहचान मेरे राजा
मुझे मेरे घर में ही रहना यह एहसान करो मेरे ख्वाजा
ईश्वर का रूप दिया समझो और समझाओ
मेरी भारत को विकसित बनाओ
यही सकारात्मक सोच ही तो बचपन से सोच रहा हूँ मैं,
७० सालों से भी अग्रणी मेरा भारत
बस हरपल उसे सोच रहा हूँ मैं।
जय हिन्द! जय भारत!
Siddharth Pawar