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भूमिका- श्रम का अर्थ है-मेहनत। श्रम ही मनुष्य-जीवन की गाड़ी को खींचता है। चींटी से लेकर हाथी तक सभी जीव बिना श्रम के जीवित नहीं रह सकते। फिर मनुष्य तो अन्य सभी प्राणियों से श्रेष्ठ है। संसार की उन्नतिप्रगति मनुष्य के श्रम पर निर्भर करती है। श्रम करने की आदत बचपन में ही डाली जाए तो अच्छा है।
जीवन की गाड़ी न चलती- परिश्रम के अभाव में जीवन की गाड़ी नहीं चल ही सकती। यहां तक कि स्वयं का उठना-बैठना, खाना-पीना भी संभव नहीं हो सकता फिर उन्नति और विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आज संसार में जो राष्ट्र सर्वाधिक उन्नत हैं, वे परिश्रम के बल पर ही इस उन्नत दशा को प्राप्त हुए हैं। जिस देश के लोग परिश्रमहीन एवं साहसहीन होंगे, वह प्रगति नहीं कर सकता। परिश्रमी मिट्टी से सोना बना लेते हैं।
आलस्य जीवन का अभिशाप– परिश्रम का अभिप्राय ऐसे परिश्रम से है जिससे निर्माण हो, रचना हो, जिस परिश्रम से निर्माण नहीं होता, उसका कुछ अर्थ नहीं। जो व्यक्ति आलस्य का जीवन बिताते हैं, वे कभी उन्नति नहीं कर सकते। आलस्य जीवन को अभिशापमय बना देता है। हमारा देश सदियों तक पराधीन रहा। इसका आधारभूत कारण भारतीय जीवन में व्याप्त आलस्य एवं हीन भावना थी।
कलाओं का निर्माण-यदि छात्र परिश्रम न करें तो परीक्षा में कैसे सफल हों। मजदूर भी मेहनत का पसीना बहाकर सड़कों, भवनों, बांधों, मशीनों तथा संसार के लिए उपयोगी वस्तुओं का निर्माण करते हैं। मूर्तिकार, चित्रकार अद्भुत कलाओं का निर्माण करते हैं। कवि और लेखक सब परिश्रम द्वारा ही अपनी रचनाओं से संसार को लाभ पहुँचाते हैं। कालिदास, तुलसीदास, टैगोर, शैक्सपीयर आदि परिश्रम के बल पर ही अमर हो गए हैं। परिश्रम के बल पर ही वे अपनी रचनाओं के रूप में अमर हैं।
भाग्यवाद- कुछ लोग श्रम की अपेक्षा भाग्य को महत्व देते हैं। उनका कहना है कि भाग्य में जो है वह अवश्व मिलेगा, अत: दौड़-धूप करना व्यर्थ है। यह तर्क निराधार है। यह ठीक है कि भाग्य का भी हमारे जीवन में महत्व है, लेकिन आलसी बनकर बैठे रहना और असफलता के लिए भाग्य को कोसना किसी प्रकार भी उचित नहीं। परिश्रम के बल पर मनुष्य भाग्य की रेखाओं को भी बदल सकता है।
समस्याओं का समाधान– आज हमारे देश में अनेक समस्याएँ हैं। उन सबसे समाधान का साधन परिश्रम है परिश्रम के द्वारा ही बेकारी की, खाद्य की और अर्थ की समस्या का अंत किया जा सकता है।
उपसंहार– परिश्रमी व्यक्ति स्वावलंबी, ईमानदार, सत्यवादी, चरित्रवान् और सेवा भाव से युक्त होता है। परिश्रम करने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। परिश्रम के द्वारा ही मनुष्य अपनी, परिवार की, जाति की तथा राष्ट्र की उन्नति में सहयोग दे सकता है। अत: मनुष्य को परिश्रम करने की प्रवृत्ति विद्यार्थी जीवन में ग्रहण करनी चाहिए।