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अभ्यास का किसी भी मनुष्य के जीवन में बहुत महत्व होता है। अभ्यास करने से विद्या प्राप्त होती है और अनभ्यास से विद्या समाप्त हो जाती है। अभ्यास की कोई सीमा नहीं होती जब व्यक्ति निरंतर अभ्यास करता है तो वह कुछ भी प्राप्त कर सकता है। अभ्यास के बल पर असंभव काम को भी संभव किया जा सकता है।
कठिन अभ्यास व्यक्ति को सफलता या उन्नति की ऊँची से ऊँची सीढी तक ले जाता है। अभ्यास करने से ही जडमति सुजान बनता है , सुजान कुशल बनता है और कुशल अपनी कला को पूर्ण कर लेता है। इस संसार में कोई भी जन्म से विद्वान् नहीं होता है वह अभ्यास से ही विद्वान् और महान बनता है। आज के समय में जो व्यक्ति विद्वान् और प्रतिष्ठित है वो किसी समय में बहुत ही दुर्बल और गुमनाम थे।
इस पद को प्राप्त करने के लिए उन्हें बहुत ही परिश्रम करना पड़ा था। जिस तरह से जब कुए से पानी निकलते समय रस्सी के आने जाने से कुए की शिला पर निशान पड़ जाते हैं उसी तरह से अभ्यास करने से दुर्बल व्यक्ति भी विद्वान् हो जाता है। जिस प्रकार कोई साधु जगह-जगह से शिक्षा प्राप्त करने के लिए अभ्यास करना पड़ता है उसी तरह से कोई भी व्यक्ति बिना अभ्यास के कुछ नहीं सीख सकता है।
आत्म -विकास का साधन :- सभी लोगों को पता होता है कि इस संसार में लाखों लोग जन्म लेते हैं। ये लोग जन्म से ही विद्वान् नहीं होते हैं। ये भी निर्बल , जडमति और गुमनाम होते है। जो अपने जीवन में अत्यधिक अभ्यास करता है उसका जीवन अपने आप ही सफल हो जाता है। जो लोग अपने जीवन में अभ्यास नहीं करते हैं वे अपने जीवन में कभी भी सफलता प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
अभ्यास को आत्म-विकास का सर्वोत्तम साधन माना जाता है। यदि मनुष्य एक बार जीवन में असफल भी हो जाता है तो इसका मतलब यह नहीं होता है कि वह कभी भी सफल नहीं हो पायेगा। यदि वह बार-बार अभ्यास करे तो उसे सफलता अवश्य प्राप्त होगी। जिस प्रकार कोई बच्चा गिर-गिरकर चलना सीखता है वह उसका अभ्यास होता है। जब कोई मनुष्य गलती करके सीखता है वह भी उसका अभ्यास होता है।
कोई बच्चा तुतला-तुतला कर साफ बोलना सीखता है। जब कोई सवार गिरगिर कर सीखता है तो वह उसका अभ्यास होता है इसी तरह अभ्यास के बिना मनुष्य जीवन में कुछ भी नहीं कर सकता है। जिस तरह से शरीर का कोई अंग काम करने से बलवान हो जाता है और जिस अंग से काम नहीं लिया जाता है वह कमजोर हो जाता है उसी तरह से अभ्यास के बिना मनुष्य आलसी हो जाता है। जब मनुष्य एक बार किसी भी काम में असफल हो जाता है तो उसे बार-बार उस काम में श्रम और साधना करनी चाहिए। शरीर का विकास प्रकृति क्र द्वारा दी गयीं शक्तियों का सदुपयोग करने से होता है।
इतिहास से उदाहरण :- मनुष्य जीवन में अभ्यास का बहुत महत्व है। इतिहास में अनेक लोगों ने कठिन परिश्रम से जीवन में सफलता प्राप्त की थी। पुराने समय में बहुत से ऋषि -मुनियों ने कठिन परिश्रम करके अनेक सिद्धियाँ प्राप्त किया करते थे। बहुत से राक्षसों ने और बहुत से राजाओं ने अपने कठिन परिश्रम के बल पर भगवानों से अनेक प्रकार के वरदान भी प्राप्त किये थे।
मोहम्मद गौरी ने सत्रह बार युद्ध में पृथ्वीराज से असफलता प्राप्त की थी लेकिन उन्होंने अपना साहस नहीं खोया था। उन्होंने लगातार अभ्यास से 18वीं बार में पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया था। उसे लगातार अभ्यास से सफलता मिली थी। एक कविता जिसका नाम ‘ किंग ब्रूस एंड स्पाइडर ‘ था उसमें राबर्ट ब्रूस निरंतर असफल होने की वजह से एक गुफा में जाकर छिप गया था।
कठिन अभ्यास व्यक्ति को सफलता या उन्नति की ऊँची से ऊँची सीढी तक ले जाता है। अभ्यास करने से ही जडमति सुजान बनता है , सुजान कुशल बनता है और कुशल अपनी कला को पूर्ण कर लेता है। इस संसार में कोई भी जन्म से विद्वान् नहीं होता है वह अभ्यास से ही विद्वान् और महान बनता है। आज के समय में जो व्यक्ति विद्वान् और प्रतिष्ठित है वो किसी समय में बहुत ही दुर्बल और गुमनाम थे।
इस पद को प्राप्त करने के लिए उन्हें बहुत ही परिश्रम करना पड़ा था। जिस तरह से जब कुए से पानी निकलते समय रस्सी के आने जाने से कुए की शिला पर निशान पड़ जाते हैं उसी तरह से अभ्यास करने से दुर्बल व्यक्ति भी विद्वान् हो जाता है। जिस प्रकार कोई साधु जगह-जगह से शिक्षा प्राप्त करने के लिए अभ्यास करना पड़ता है उसी तरह से कोई भी व्यक्ति बिना अभ्यास के कुछ नहीं सीख सकता है।
आत्म -विकास का साधन :- सभी लोगों को पता होता है कि इस संसार में लाखों लोग जन्म लेते हैं। ये लोग जन्म से ही विद्वान् नहीं होते हैं। ये भी निर्बल , जडमति और गुमनाम होते है। जो अपने जीवन में अत्यधिक अभ्यास करता है उसका जीवन अपने आप ही सफल हो जाता है। जो लोग अपने जीवन में अभ्यास नहीं करते हैं वे अपने जीवन में कभी भी सफलता प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
अभ्यास को आत्म-विकास का सर्वोत्तम साधन माना जाता है। यदि मनुष्य एक बार जीवन में असफल भी हो जाता है तो इसका मतलब यह नहीं होता है कि वह कभी भी सफल नहीं हो पायेगा। यदि वह बार-बार अभ्यास करे तो उसे सफलता अवश्य प्राप्त होगी। जिस प्रकार कोई बच्चा गिर-गिरकर चलना सीखता है वह उसका अभ्यास होता है। जब कोई मनुष्य गलती करके सीखता है वह भी उसका अभ्यास होता है।
कोई बच्चा तुतला-तुतला कर साफ बोलना सीखता है। जब कोई सवार गिरगिर कर सीखता है तो वह उसका अभ्यास होता है इसी तरह अभ्यास के बिना मनुष्य जीवन में कुछ भी नहीं कर सकता है। जिस तरह से शरीर का कोई अंग काम करने से बलवान हो जाता है और जिस अंग से काम नहीं लिया जाता है वह कमजोर हो जाता है उसी तरह से अभ्यास के बिना मनुष्य आलसी हो जाता है। जब मनुष्य एक बार किसी भी काम में असफल हो जाता है तो उसे बार-बार उस काम में श्रम और साधना करनी चाहिए। शरीर का विकास प्रकृति क्र द्वारा दी गयीं शक्तियों का सदुपयोग करने से होता है।
इतिहास से उदाहरण :- मनुष्य जीवन में अभ्यास का बहुत महत्व है। इतिहास में अनेक लोगों ने कठिन परिश्रम से जीवन में सफलता प्राप्त की थी। पुराने समय में बहुत से ऋषि -मुनियों ने कठिन परिश्रम करके अनेक सिद्धियाँ प्राप्त किया करते थे। बहुत से राक्षसों ने और बहुत से राजाओं ने अपने कठिन परिश्रम के बल पर भगवानों से अनेक प्रकार के वरदान भी प्राप्त किये थे।
मोहम्मद गौरी ने सत्रह बार युद्ध में पृथ्वीराज से असफलता प्राप्त की थी लेकिन उन्होंने अपना साहस नहीं खोया था। उन्होंने लगातार अभ्यास से 18वीं बार में पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया था। उसे लगातार अभ्यास से सफलता मिली थी। एक कविता जिसका नाम ‘ किंग ब्रूस एंड स्पाइडर ‘ था उसमें राबर्ट ब्रूस निरंतर असफल होने की वजह से एक गुफा में जाकर छिप गया था।
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