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एक समझदार शत्रु मूर्ख मित्र से कहीं ज्याद अच्छा होता है । समझदार शत्रु हमें जान-बूझकर नुकसान पहुँचाता है जबकि एक मूर्ख मित्र अनजाने में ही हमें बहुत कष्ट पहुँचा सकता है । इसलिए बहुत सोच-समझकर दूसरे को परख कर दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहिए । नहीं तो अनगिनत कष्टोम का सामना करना पड़ सकता है ।एक राजा था । वह बहुत दयालू था । उसे पशु-पक्षी से लगाव था । राजा एक पालतू बंदर को बहुत पसंद करता था । जिसे वह अपने साथ लेकर घूमता था । महल के सब लोग बन्दर को इज़्ज़त और प्यार देते थे । अच्छा खाना खा बन्दर मोटा और घमंडी हो गया था । एक दिन राजा अपने बन्दर को लेकर बगीचे में सैर के लिए चल पड़ा । बीच में थकने के बाद राजा आराम करने पेड़ के नीचे लेटा और उसने बन्दर्को कहा कि कोई उसे उठाए नहीं ,वे सोना चाहते हैं । वह राजा के सिरहाने बैठकर पंखा झलने लगा । तभी उसने देखा कि एक मक्खी कभी राजा के माथे पर बैठती तो कभी कान पर ऐसे वह राजा को तंग कर रही थी । बन्दर को राजा का आदेश याद आया और उसने मक्खी को मारने के इधर-उधर देखा तो उसके हाथ राजा की तलवार आ गई । उसने आव देखा न ताव तलवार के एक वार से उस मक्खी को मार दिया । जब तक उसे समझ में आता कि उसने क्या किया है, उसने देखा कि राजा का सिर धड़ से अलग हो गया था । इस प्रकार मूर्ख मित्र के कारण राजा को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा । मूर्ख मित्र हमें गलत सुझाव देकर अनजाने में गलत रास्ते की ओर ले जा सकता है । एक समझदार शत्रु से हम फिर भी चौकन्ने रहते हैं । इसलिए वह हमें इतनी हानि नहीं पहुँचा सकते हैं , मूर्ख मित्र की बातों में आकर हम गलत सलाह को भी सही मानकर बड़ी गलती कर सकते हैं जिसका पछतावा हमें जीवन भर रह सकता है ।ऐसे ही एक और कहानी भी यही कहावत सिद्ध करती है । एक गाँव में एक लकड़हारा रहता था । उसका बारह साल का एक बेटा था । एक दिन वह लकड़हारा शाम को घर आकर थक कर लेट गया । खूब काम करने के कारण वह बहुत थका हुआ था । थकावट के कारण उसे नींद आ रही थी । तभी एक मच्छर उसकी नाक पर आ बैठा और उसे तंग करने लगा । लकड़हारे ने जोर से आवाज लगाकर अपने बेटे से उस मच्छर को मारने को कहा । बेटा मूर्ख था। अंदर जाकर कुल्हाड़ी ले आया । जैसे ही मच्छर दोबारा लकड़हारे की नाक पर बैठा, तो बेटे ने जोर से कुल्हाड़ी उठाकर मच्छर पर दे मारी । मच्छर तो उड़ गया पर लकड़हारा जो गहरी नींद में सो रहा था, उसका मुँह शरीर से अलग हो गया । बेटा यह देखकर फूट-फूट कर रोने लगा । पर अब क्या हो सकता था ? इसलिए कहा गया है कि मूर्ख मित्र से समझदार शत्रु ज़्यादा अच्छा होता है ।
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